जैसलमेर: जिले के मोहनगढ़ के 27 बीडी बाहला में धरती से अचानक प्रेशर से निकले पानी ने सबके होश उड़ा दिए. हालांकि अब तीन दिन बाद पानी की आवक तो रुक गई है, पीछे कई सवाल छोड़ गई है. बताया जा रहा है कि तेज प्रेशर के साथ सफेद चिकनी मिट्टी भी बाहर आई है. कई लोग इसे सरस्वती नदी का पानी बता रहे हैं. हालांकि पानी खारा होने से सरस्वती नदी के दावों को भूजल वैज्ञानिक सिरे से ही खारिज कर रहे हैं.
इसलिए नहीं है सरस्वती नदी का पानी: जैसलमेर के भूजल वैज्ञानिक डॉ नायरणदास इनखियां ने बताया कि मोहनगढ़ के बाहला क्षेत्र में बोरवेल से निकले पानी व मिट्टी के सैंपल लेकर जांच के लिए भिजवाएं जा रहे हैं. बोरवेल का निकला पानी सरस्वती नदी का नहीं हो सकता. उन्होंने बताया कि सरस्वती नदी का इतिहास सिर्फ 5 हजार साल पुराना है. जबकि बोरवेल से निकला पानी का इतिहास करीब 60 लाख साल पुराना है. ऐसे में यह पानी सरस्वती नदी का नहीं है.
उन्होंने कहा कि समुद्र होने का यह सबसे बड़ा प्रमाण है. बोरवेल से जो मिट्टी निकली है, वह समुद्री मिट्टी है. वहीं पानी का टीडीएस भी 5 हजार के करीब है. हालांकि समुद्र का पानी का टीडीएस बहुत ज्यादा होता है. लेकिन इस बोरवेल के पानी के साथ कई खनिज लवण भी मिले हैं. जिससे इसके टीडीएस में कमी आ सकती है. उन्होंने कहा कि रही बात सरस्वती नदी की तो उसका रूट तनोट के आसपास के क्षेत्र में है, जहां जमीन से कुछ नीचे ही पानी बाहर आ रहा है और वह मीठा भी है.
नाचना के जालूवाला में हुआ था ऐसा ही: जैसलमेर में इससे पहले नाचना के जालूवाला में धरती से ऐसे ही बोरवेल खुदाई के समय पानी की प्रेशर के साथ आवक शुरू हो गई थी. जैसलमेर का यह इलाका करीब 25 करोड़ साल पहले टेथिस सागर का तट हुआ करता था. इसे लेकर कई वैज्ञानिक शोध में जुटे हुए हैं. ऐसे में बोरवेल का खारा पानी व निकली सफेद चिकनी मिट्टी समुद्र के दावे को और ज्यादा मजबूत कर रही है. जानकारों का कहना है कि जिस जगह यह पानी निकला है, वह सरस्वती नदी का रूट नहीं है.
25 करोड़ साल पहले टेथिस सागर का तट था: कई वैज्ञानिकों का दावा है कि आज से 25 करोड़ साल पहले जैसलमेर का यह इलाका दुनिया के सबसे विशाल टेथिस सागर का तट हुआ करता था. आज के जैसलमेर शहर से एक तरफ हजारों मीटर गहरे टेथिस सागर का किनारा लगता था, तो दूसरी तरफ डायनासोर राज करते थे. करोड़ों सालों पहले ऊंट की जगह फाइटर प्लेन से बड़े पंख वाले डायनासोर रहते थे. रेत के टीलों की जगह 30 से 40 फीट लंबे पेड़ों वाला घना जंगल हुआ करता था. जैसलमेर के समुद्र में विशाल शार्क मछलियां तैरती थीं. एशिया में इस शार्क के जीवाश्म सिर्फ जैसलमेर, जापान और थाईलैंड में मिले हैं.
शोध करने वैज्ञानिक आज भी आते हैं जैसलमेर: जानकारों का कहना है कि जैसलमेर के इस इलाके में सालों पहले समुद्र के दावे के साथ देश-विदेश के कई वैज्ञानिक शोध करने पहुंचते हैं. यहां समुद्र होने का सबसे बड़ा उदाहरण आकल गांव में स्थित फूड फोसिल पार्क है. जिसमें करोड़ों साल पहले के पेड़ के जीवाश्म मौजूद हैं, जो समय के साथ पत्थर में तब्दील हो गए हैं.
इसे लेकर भी दो थ्योरी पर दावे किए जाते हैं. पहला दावा है कि जैसलमेर में टेथिस सागर में कई नदियां आकर मिलती थीं. इन नदियों में बाढ़ आने पर पेड़ टूट कर बह जाते थे. इन्हीं पेड़ों के तने बहते हुए आकल में आए. दूसरा दावा है कि जमीन के नीचे दबने के बाद पेड़ के नर्म भाग जैसे- पत्ते, टहनियां आदि सड़ जाते थे लेकिन लकड़ी, बीज कठोर भाग होने के कारण पत्थरों में बदल गए. इसके बाद करोड़ों सालों की प्रक्रिया में यह जीवाश्म बनकर जमीन से बाहर आ गए.