देहरादून: उत्तराखंड में 38वें राष्ट्रीय खेल यानी नेशनल गेम्स होने जा रहे हैं, लेकिन उससे पहले खेल विभाग स्पोर्ट्स साइंस को लेकर के काम कर रहा है. ताकि, खिलाड़ियों के टैलेंट को साइंटिफिक तरीके से भी तराशा जाए. इसी के चलते पुणे की एक स्पोर्ट्स साइंस टेक कंपनी ने उत्तराखंड के कुछ खिलाड़ियों पर साइंटिफिक टेस्टिंग की है.
खिलाड़ी के परफॉर्मेंस में शारीरिक के साथ मानसिक स्वास्थ्य की क्षमता अहम: किसी भी खिलाड़ी की परफॉर्मेंस के लिए जितनी अहम उसकी शारीरिक क्षमता होती है, उतनी ही अहमियत मानसिक स्वास्थ्य और क्षमता भी होती है. इसके अलावा साइंस के तमाम प्रोटोकॉल खिलाड़ी की परफॉर्मेंस को बढ़ाने में अहम घटक होते हैं. इसी को देखते हुए उत्तराखंड खेल विभाग की ओर से नेशनल गेम्स से पहले खिलाड़ियों की शारीरिक क्षमता के साथ उनके स्पोर्ट्स साइंस वाले पहलू पर भी जोर दिया जा रहा है.
उत्तराखंड के करीब 100 खिलाड़ियों पर हो चुकी टेस्टिंग: इसी के चलते पुणे की रेन स्पोर्ट्स साइंस सेंटर (Reign Sports Science Center) ने उत्तराखंड के करीब 100 खिलाड़ियों पर साइंटिफिक प्रोटोकॉल से टेस्टिंग की है. जिसमें खिलाड़ियों के अहम पहलुओं की जानकारी निकल कर सामने आई है. पुणे बेस्ड रेन स्पोर्ट्स एंड एक्सरसाइज साइंस सेंटर (Reign Sports & Exercise Science Center) की फाउंडर और स्पोर्ट्स परफॉर्मेंस साइंटिस्ट डॉ. श्रुति भांडुरगे ने अहम जानकारी दी.
उन्होंने बताया कि उनके कंपनी की ओर से उत्तराखंड खेल विभाग के साथ मिलकर पिछले तीन हफ्ते में तकरीबन 100 खिलाड़ी जिनमें ज्यादातर एथलीट, बैडमिंटन और बॉक्सिंग के खिलाड़ी हैं, इन सभी खिलाड़ियों पर साइंटिफिक प्रोटोकॉल और टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हुए टेस्टिंग की गई है.
उन्होंने कहा कि ये टेस्टिंग खिलाड़ियों के आधारभूत समझ के लिए की गई थी. यानी ये देखने के लिए कि अभी खिलाड़ियों की परफॉर्मेंस तकनीकी तौर पर क्या है? आसान भाषा में कहें तो एक खिलाड़ी किसी स्पोर्ट्स के कौन से सेगमेंट के लिए अच्छा परफॉर्म कर सकता है, इसकी गणना की जाती है.
प्लेयर सिलेक्शन में साइंटिफिक डाटा भी होगा अहम: उन्होंने बताया कि उनकी ओर से इस साइंटिफिक रिसर्च के परिणामों को देखते हुए कोच के साथ इस रिसर्च को शेयर किया गया है, उसी हिसाब से नेशनल गेम्स के लिए प्लेयर्स का सिलेक्शन किया जाएगा. यानी प्लेयर सिलेक्शन में उसका साइंटिफिक डाटा भी अहम होगा.
उदाहरण के तौर पर उन्होंने बताया कि जिस तरह से उनके रिसर्च में देखा गया कि बॉक्सिंग के खिलाड़ी अपनी अप्पर बॉडी का इस्तेमाल ज्यादा कर रहे थे, जिससे उनके कंधों पर ज्यादा प्रेशर पड़ रहा था. उससे इंजरी होने का ज्यादा खतरा बना हुआ था, लेकिन अब कोच के साथ यह चर्चा की जा रही है कि खिलाड़ियों को उनकी लोअर बॉडी का इस्तेमाल पर फोकस किया जाए.
खिलाड़ियों पर साइंटिफिक टेस्टिंग के रिजल्ट
- बॉक्सिंग के अपर बॉडी का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल हो रहा हैं, ट्रेनिंग में लोअर बॉडी के इस्तेमाल पर जोर
- एक्सीलरेशन और टेंडन कैपेसिटी टेस्ट से टेस्ट रिजल्ट के आधार पर एथलीट के इवेंट सलेक्शन का डेटाबेस
- स्किल बेस्ड एथलीट टेस्ट के परिणाम बताते हैं कि खिलाड़ियों की स्किल तो सही हैं, लेकिन ओवरऑल परफॉर्मेंस इंप्रूवमेंट के लिए फिजिकल और साइकोलॉजिकल कैपेसिटी को बढ़ाने की जरूरत है.
- एथलीट खिलाड़ियों में साइंटिफिक टेस्ट से पता चला है कि खिलाड़ी स्पीड जनरेट करने के लिए टेंडन पर डिपेंडेंट है, जो कि इंजरी का कारण बन सकता है. इसलिए उन्हें मस्कुलर फोर्स को इस्तेमाल करने की तकनीक सीखने की जरूरत है.
- बैडमिंटन खिलाड़ियों को अपने सचेतन और साइकोलॉजी कैपेसिटी पर ज्यादा काम करने की जरूरत है, जिसके लिए मेडिटेशन ट्रेनिंग का हिस्सा बन सकता है.
- साइकोलॉजिकल टेस्ट से मालूम हुआ कि जो बच्चा ज्यादा कमजोर फैमिली बैकग्राउंड से या फिर संघर्ष से आया है, उसके अंदर प्रेशर और फाइनल का दबाव खेलने की कैपेसिटी ज्यादा है. जबकि, सामान्य तौर पर इसका उल्टा माना जाता है.
स्पोर्ट्स परफॉर्मेंस साइंटिस्ट डॉ. श्रुति भांडुरगे ने बताया कि अभी जो रिसर्च उत्तराखंड के इन खिलाड़ियों पर की गई है, उसका अगला पड़ाव ये होगा कि कोच और मैनेजमेंट के साथ मिलकर इस डेटाबेस को किस तरह से खिलाड़ियों की परफॉर्मेंस को बेहतर बनाने में इस्तेमाल कर सकते हैं, उस पर काम किया जाना है.
डॉ. श्रुति बताती हैं कि स्पोर्ट्स साइंस खिलाड़ी को एक कोच के अलावा जो सपोर्ट देता है, वो उसे कंपटीशन को जीतने के लिए अनुकूल कर देता है. श्रुति बताती हैं कि एक खिलाड़ी को कोच की ओर से दी जाने वाली ट्रेनिंग के अलावा उसका मानसिक स्वास्थ्य उसकी डाइट के साथ उसकी ट्रेनिंग में साइंटिफिक तरीके से सही ट्रेनिंग की जानी अहम होती है, जो कि खिलाड़ी की ड्राइव को बढ़ाती है.
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