गरियाबंद : गरियाबंद के मैनपुर ब्लॉक में चचरापारा प्राथमिक स्कूल सिर्फ सरकारी कागजों में दर्ज होकर रह गया है.हकीकत में ये स्कूल प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत दिए गए आवास में चल रहा है. जिसे गांव की ही रहने वाली एक विधवा महिला ने दिया है. इस महिला का नाम गुनो बाई है.महिला की माने तो उन्हें बच्चों की तकलीफ देखी नहीं गई.इसलिए अपने घर को ही उन्होंने सरकारी स्कूल बनाने की इजाजत दे दी.
पीएम आवास में लग रही क्लास : इस प्राइमरी स्कूल में एक से पांचवीं तक की क्लास लगती है.बारी-बारी से टीचर यहां बच्चों की क्लास लेते हैं.पिछले तीन साल से इसी तरह से एक निजी आवास में स्कूल का संचालन हो रहा है. ग्रामीणों की माने तो वो समय-समय पर प्रशासन को इस स्कूल की दुर्दशा के बारे में बताते आ रहे हैं लेकिन अभी तक किसी भी अधिकारी ने उनकी नहीं सुनी.
घर में ही बनाया किचन शेड : स्कूल का संचालन तो किसी तरह से हो गया.लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत आई मध्यान्ह भोजन के किचन शेड में.क्योंकि जगह इतनी नहीं थी कि एक किचन भी इस स्कूल के अंदर बनाया जा सके.लिहाजा स्कूल प्रबंधन ने गुनो बाई के घर के पास ही टेंपरेरी तरीके से एक किचन शेड का निर्माण कर दिया. इसी टेंपररी किचन में बच्चों के लिए मध्यान्ह भोजन बनाया जाता है.
'' स्कूल में काफी परेशानी होती है. एक-एक करके कक्षाओं का संचालन होता है.मध्यान्ह भोजन पॉलीथिन के नीचे बन रहा है.स्कूल भवन नहीं होने से परेशानी हो रही है.''-कुंती जगत,प्रधान पाठक
क्यों नहीं है गांव में स्कूल : इस गांव में स्कूल ना होने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. 1997 में बने भवन जर्जर होने के कगार पर था,तो सर्व शिक्षा अभियान मद से 2006 में भवन के लिए 4 लाख 60 हजार की मंजूरी दी गई. 2010 तक स्कूल की नींव का काम हुआ.लेकिन साल 2015 में जिस जगह पर स्कूल की नींव बनाई जा रही थी.वहां एक ईंट भी ना बची.उस जगह पर सिर्फ खाली जमीन नजर आ रही थी.यानी 9 साल के अंदर स्कूल बनाने का सामान ही गायब हो चुका था. अब ये सारी चीजें रिकॉर्ड में थी. लिहाजा प्रशासन की ओर ने फिर से नए भवन की मंजूरी नहीं मिली.
'' 2010 में स्कूल का काम शुरु हुआ था.लेकिन थोड़े समय बाद काम रुक गया.अब स्कूल बनाने के लिए आया एक भी मटेरियल मौके पर नही है.''- कपूरचंद मांझी, पंच
जान जोखिम में डालकर पढ़ रहे नौनिहाल : चचरापारा प्राथमिक स्कूल जिस जगह पर संचालित हो रहा है वहां पर किसी भी तरह की बुनियादी सुविधा नहीं है.साथ ही साथ जिस जगह पर बच्चों की पढ़ाई करवाई जा रही है वो भी मकान अच्छी स्थिति में नहीं है.छत से प्लास्टर गिर रहा है. दीवारें कमजोर हो चुकी हैं.फिर भी शिक्षा के लिए नौनिहाल अपनी जान खतरे में डाल रहे हैं.
क्या है अफसरों का कहना ? : इस बारे में जब अफसरों से बात की गई तो उनका कहना था कि स्कूल भवन की मंजूरी दी गई थी.लेकिन काम पूरा नहीं हुआ.जिम्मेदारों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.
''चचरापारा प्राथमिक स्कूल का काम शुरु हुआ था.लेकिन किन्हीं कारणवश काम पूरा नहीं हुआ.जानकारी मिली है कि स्कूल के लिए जो सामान लाया गया था वो भी नहीं है.जिम्मेदार लोगों से रिकवरी की जाएगी.''- बीएस पैकरा, ईई , RES
गरियाबंद के मैनपुर ब्लॉक में चचरापारा प्राथमिक स्कूल की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है. तीन साल से एक महिला के दिए गए घर के अंदर स्कूल चल रहा है. लेकिन ना ही प्रशासन का ध्यान गया और ना ही किसी जनप्रतिनिधि ने इस ओर किसी का ध्यान आकर्षित किया.अब जब मामला मीडिया में आया है तो जिम्मेदार त्वरित कार्रवाई की बात कह रहे हैं. ऐसे में आप सोच सकते हैं छत्तीसगढ़ में हम जिस वर्ल्ड क्लास एजुकेशन सिस्टम की बात करते हैं,उन बातों में कितना दम है.