छिंदवाड़ा: देश में किसानों की स्थिति किसी से छिपी नहीं है. खेती में जब नुकसान होता है तो किसान खून के आंसू रोने को मजबूर हो जाते हैं. आज बात छिंदवाड़ा के एक ऐसी बेटी की करते हैं, जिसने अपने किसान पिता को इस गरीबी से उबारने के लिए क्रिकेटर बनने की जिद पाली है. इसकी कहानी भी बहुत रोचक और संघर्ष भरी है. जिसे जानने के बाद आप भी कहेंगे कि वाकई जुनून हो तो कुछ भी किया जा सकता है.
बेटी की ज़िद इंडिया खेलना है
छिंदवाड़ा शहर से करीब 30 किलोमीटर दूर मोहखेड़ के रहने वाले हैं किसान पवन और लक्ष्मी चौरसिया. इनकी इकलौती बेटी का नाम है सान्या चौरसिया. जिसने अपने किसान पिता की आर्थिक स्थिति सुधारने, टीम इंडिया से क्रिकेट खेलने की जिद पाल रखी है. वर्तमान में विदर्भ के कैम्प से क्रिकेट खेलती हैं, और टीम इंडिया के लिये घर से दूर नागपुर में कड़ी ट्रेनिंग कर रही है.
30 किलोमीटर हर दिन अप डाउन
सान्या के इस सफर की शुरुआत होती है साल 2014 से, जब सान्या गर्ल्स कॉलेज से बीएससी की पढ़ाई के साथ उसने इंदिरा क्रिकेट मैदान में क्रिकेट की प्रैक्टिस शुरु की थी. हर दिन 30 किलोमीटर तक अप-डाऊन करती थी, जो किसी भी छोटी बच्ची के लिए इतना आसान नहीं होता है. बेटी के इस सफर में उसके पिता कदम से कदम मिलाकर चलते हैं और हर दिन उसे क्रिकेट खिलाने साथ लेकर जाते हैं.
गरीब की मदद करने समाज आया सामने
सान्या के पिता एक किसान हैं, पारिवारिक स्थिति कमजोर है. जब चौरसिया समाज ने बेटी की जिद और जुनून को देखा तो मदद को सामने आया और फिर परिवार और चौरसिया समाज और कुछ मददगार संस्थानों के सहयोग से बेटी को धोनी एकेडमी नागपुर में दाखिला दिलाया गया. जिससे सान्या क्रिकेट की बारीकियां अच्छे से सीख सके.
रणजी ट्रॉफी का सफर
ऐसा नहीं है कि सान्या सिर्फ प्रैक्टिस ही कर रही थी. उनकी मेहनत रंग भी लाई, और साल 2020 से अब तक सान्या रणजी क्रिकेट भी खेल चुकी हैं. तीन सीजन सेलेक्ट होकर रणजी क्रिकेट खेल रही हैं और शानदार प्रदर्शन भी कर रही है. वह विदर्भ टीम की एक मजबूत हथियार भी है.
झूलन को देख बन गईं तेज गेंदबाज
सान्या आज विदर्भ की रणजी टीम में मीडियम पेसर के तौर पर कैम्प में शामिल हैं. सान्या का कहना है कि वे अपने किसान पिता को आर्थिक तौर पर संपन्न बनाने इंडियन टीम में शामिल होना चाहती हैं. ताकि इसके बाद अपनी आय से पिता की पारंपरिक खेती को नया आयाम दे सकें. खेल के साथ सान्या ने बीएससी के बाद बीपीएड और एमपीएड भी किया है.
मां कबड्डी की फैन, बेटी क्रिकेटर, पिता मेहनतकश किसान
सान्या ने बताया कि, ''उनके पिता महज चौथी-पांचवी तक पढ़े हैं. वे क्रिकेट के बारे में कुछ नहीं जानते. परिवार को अच्छा जीवन देने के लिए दिन-रात खेत में मेहनत करते हैं. दुख होता है कि वे इतनी मेहनत के बाद भी नुकसान ही ज्यादा उठाते हैं. मां को कबड्डी बहुत पसंद है. परिवार में कोई भी स्पोर्ट्स से जुड़ा नहीं है. पिता की माली हालत सुधारने के लिए क्रिकेटर बनने का जुनून पैदा हुआ.''
चौरसिया समाज ने कायम की मिसाल
मोहखेड़ से छिंदवाड़ा रोजाना अप-डाउन करने वाली सान्या के जज्बे को देखकर चौरसिया समाज के वरिष्ठ पदाधिकारी गोविंद चौरसिया ने बेटी की मदद की. गोविंद चौरसिया ने बताया कि, ''सान्या का परिवार आर्थिक रूप से इतना मजबूत नहीं है कि क्रिकेट जैसे महंगे खेल में अपनी बेटी को भेज सके. इसके लिए जितनी मदद हो सकती है हम लोग कर रहे हैं. समाज के अन्य लोगों को भी इसका भागीदार बनाया. जिसके कारण गरीब किसान की बेटी को एकेडमी में दाखिला मिल पाया.''
अभी भी करती हैं खेतों में काम
कैम्प से जब भी सान्या घर लौटती है तो सीधे खेतों में पहुंच जाती हैं, पिता का हाथ बंटाती हैं. खेतों में नई किस्म के पौधे रोपती हैं. बागवानी के साथ आधुनिक खेती का भी सान्या को बहुत शौक है.
आर्थिक परेशानियां जरूर, लेकिन देश के लिए खेलने सब मंजूर
सान्या चौरसिया ने ईटीवी भारत से बताया कि, ''उनका सपना है कि वे एक दिन भारत के लिए खेलें और देश के लिए कुछ कर सकें. लेकिन इसके लिए उनके सामने सबसे बड़ा आर्थिक संकट सामने आता है. कुछ मददगारों की वजह से वे धोनी अकैडमी में ट्रेनिंग ले रही हैं. लेकिन फिर भी दूसरे खर्च इतने होते हैं कि उनको पूरा करना भी कई बार कठिन साबित होता है. लेकिन फिर भी सभी कठिनाइयों को दूर करते हुए देश के लिए खेलना चाहती हैं.''