लखनऊ : साल 2024 समाजवादी पार्टी (सपा) के लिए एक निर्णायक वर्ष साबित हुआ. 2012 की उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में भारी जीत के बाद से पार्टी को 2014 के लोकसभा चुनाव, 2017 के विधानसभा चुनाव, 2019 के लोकसभा चुनाव और 2022 के विधानसभा चुनाव में लगातार हार का सामना करना पड़ा. ऐसे में 2024 का लोकसभा चुनाव सपा के लिए एक बड़ा चुनौतीपूर्ण मोड़ था.
'इंडिया' गठबंधन का साथ और ऐतिहासिक जीत : 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा ने विपक्षी दलों के 'इंडिया' गठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और उत्तर प्रदेश में 37 सीटों पर जीत दर्ज कर इतिहास रच दिया. इस प्रदर्शन ने सपा को राष्ट्रीय स्तर पर तीसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में स्थापित किया. पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने चुनावी रणनीति में बड़ा दांव खेलते हुए प्रदेश अध्यक्ष बदलकर श्यामलाल पाल को मैदान में उतारा. इस फैसले ने पाल समाज के वोटों को सपा के पक्ष में खींचने में मदद की.
उपचुनावों में कमजोर प्रदर्शन : लोकसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन के बावजूद, सपा को उपचुनावों में झटका लगा. जहां पार्टी ने पहले नौ सीटों में से चार पर कब्जा जमाया था, वहां से केवल दो सीटें जीत पाई. राजनीतिक विशेषज्ञ योगेश मिश्रा का मानना है कि उपचुनाव अक्सर राज्य सरकारों के पक्ष में जाते हैं. हालांकि, सपा ने अपने प्रदर्शन में सुधार के संकेत दिए हैं और वोट प्रतिशत बढ़ाने में सफल रही है.
दलित और ब्राह्मण वोट को साधने की कोशिश : सपा ने सामाजिक समीकरणों को मजबूत करने के लिए नई रणनीतियां अपनाई. ब्राह्मण समाज को साधने के लिए विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडे को नियुक्त किया गया. इसके साथ ही दलित समुदाय को लुभाने के लिए "बाबा तेरा मिशन अधूरा, अखिलेश करेंगे पूरा" जैसे नारों का सहारा लिया गया.
संसद और विपक्ष में प्रभावशाली भूमिका : 2024 में सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने लोकसभा में विपक्ष के नेता के तौर पर अपनी भूमिका बखूबी निभाई. सपा ने भीमराव आंबेडकर की विचारधारा को आगे बढ़ाते हुए दलित मुद्दों पर केंद्र सरकार को घेरने की कोशिश की.
2027 की चुनावी रणनीति पर नजर : राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर सपा 2027 के विधानसभा चुनाव कांग्रेस के साथ गठबंधन कर लड़ती है, तो यूपी की राजनीति में बड़ा उलटफेर हो सकता है. योगेश मिश्रा के अनुसार, ब्राह्मण और दलित वोटों को सीधे तौर पर सपा के पक्ष में लाना मुश्किल हो सकता है, लेकिन कांग्रेस के साथ गठबंधन इन वोटों को आकर्षित कर सकता है.
योगेश मिश्रा कहते हैं कि 2024 ने समाजवादी पार्टी को नई पहचान और राजनीतिक ऊर्जा दी है. हालांकि, उपचुनावों में कमजोर प्रदर्शन और भविष्य की चुनौतियां पार्टी के लिए सबक हैं. अगर सपा सामाजिक समीकरणों को सही ढंग से साधने और गठबंधन राजनीति में सही फैसले लेने में सफल होती है, तो 2027 में पार्टी यूपी की राजनीति में नया अध्याय लिख सकती है.
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