SAGAR UNIQUE TRADITION: जब मेडिकल साइंस ने तरक्की नहीं की थी और हमारे देश में स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर नीम हकीम और वैद्यराज ही सहारा होते थे. जब ये लोग किसी बीमारी पर काबू नहीं पा पाते थे, तो लोग भगवान के दरवाजे जाते थे. महामारियों और आपदा से छुटकारे के लिए विशेष पूजा-अर्चना के जरिए भगवान को मनाते थे. जैसा की खसरा बीमारी को लेकर ग्रामीण इलाकों में आज भी लोग माता पूजने का काम करते हैं. इसी तरह सागर शहर में 184 साल पहले महामारी के चलते शीतला माता की एक विशेष पूजा की परंपरा शुरू हुई, जिसे तिसाला पूजा के नाम से जानते हैं.
इस पूजा की खास बात ये है कि इसमें महिलाएं शीतला माता की विशेष पूजा-अर्चना 10 दिनों तक करती हैं. 10वें दिन मां की शोभायात्रा निकाली जाती है. शोभायात्रा के दो दिन पहले महिलाएं माता के भोग के लिए बाजार लूटती हैं. सागर शहर में केशरवानी समाज द्वारा ये परम्परा लगातार निभाई जा रही है. आपदा और बीमारियों से बचाव के लिए आज भी लोग शीतला माता की पूजा करते हैं.
184 साल पुरानी परम्परा
सागर शहर की इस अनोखी परंपरा की बात करें, तो ये परंपरा करीब 184 साल पुरानी है. इस परंपरा की शुरुआत को लेकर कहा जाता है कि सागर शहर में महामारी के चलते लोगों की मौत हो रही थी. महामारी अपना दायरा बढ़ाती जा रही थी. अंग्रेजी राज में स्वास्थ्य सुविधाएं इतनी बेहतर नहीं थी कि लोगों का इलाज किया जा सके. ऐसे में लोग नीम, हकीम और वैद्यराज के भरोसे रहते थे. जब यह भी बीमारी पर नियंत्रण नहीं कर पाते थे, तो लोगों को भगवान ही सहारा बचता था. कहते हैं कि 184 साल पहले आई महामारी से बचाव के लिए लोग काफी परेशान थे. तब शीतला माता ने अपनी एक महिला भक्त को सपना दिया और बताया की महामारी पर अंकुश लगाने के लिए 10 दिन का अनुष्ठान करें, तब जाकर बीमारी ठीक होगी. शीतला माता ने अपनी महिला भक्तों को पूजा की विधि भी बताई.
महिलाएंं मांगती हैं भीख और लूटती है बाजार
महामारी से बचने के लिए शहर के केशरवानी समाज द्वारा मां शीतला के 10 दिन के अनुष्ठान का फैसला लिया गया और माता के बताए तरीके से अनुष्ठान शुरू किया गया. जो आज 184 साल बाद भी अनवरत जारी है. सागर में तिसाला पूजा के नाम से जानते हैं. स्थानीय युवा विकास केसरवानी बताते हैं कि 'यह 10 दिन का अनुष्ठान होता है. जिसकी शुरुआत शहर की नाकाबंदी से होती है. समाज की नवविवाहित महिलाएं अनुष्ठान के शुरुआती 5 दिन में शहर की नाकाबंदी करती हैं. 5 दिन में शहर की सीमा पर जाकर सात बार पानी की धारा से नाकाबंदी की जाती है. इसके बाद महिलाएं अपने रिश्तेदारों के यहां जाकर भीख मांगती हैं.
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जिसमें उन्हें गेहूं आटा और पैसे मिलते हैं. पूजा के छठवें दिन भीख में मिले अनाज और पैसे से महिलाएं अपने घर के हर पुरुष सदस्य के लिए 20-20 गुझिया बनाती हैं. इन 20 गुजिया में से पांच गुझिया पुरुष सदस्य अपने परिवार की महिलाओं के लिए देते हैं और बाकी 15 गुजिया उन्हें दसवें दिन तक खाना होती है. पूजा के आठवें दिन महिलाएं बाजार लूटने की परंपरा निभाती हैं. बाजार लूटने में महिलाओं को जो भी मिलता है. उससे माता का भोग तैयार किया जाता है और पूजा के दसवें यानि आखिरी दिन माता को भोग लगाकर उनकी शोभायात्रा शहर में निकाली जाती है.