सागर। प्राकृतिक संपदा से भरपूर बुंदेलखंड में कई प्राचीन और रहस्यमय ऐसे स्थान हैं. जिनके बारे में एक से एक बढ़कर किवदंतिया हैं. ऐसा ही एक स्थान सागर दमोह मार्ग से कुछ दूरी आबचंद के घने जंगलों में एक नदी किनारे बनी गुफा है. जहां 144 साल से भगवान हनुमान विराजे हुए हैं. कहा जाता है कि गुफा की सफाई करते समय हनुमान जी की मूर्ति मिली थी. फिर मूर्ति की वहीं स्थापना कर दी गयी. कहा जाता है कि गुफा में जामवंत और हनुमान जी ने तपस्या की थी. मंदिर के महंत बताते हैं कि यहां से कुछ दूरी पर एक गुफा में मां गौरी तपस्या कर रही थी, तो उनकी सुरक्षा में इस गुफा में जामवंत और हनुमान जी भी तपस्या कर रहे थे. हालांकि ये स्थान प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है. बड़ी-बड़ी चट्टानों के बीच बहती नदी के चारों तरफ लगे अर्जुन के वृक्षों के बीच प्राचीन गुफा को देखने दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं.
![sagar cave lord hanuman temple](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/02-02-2024/mp-sgr-01-hanuman-gufa-spl-7208095_02022024193248_0202f_1706882568_247.jpg)
गायें चराते वक्त मिली गुफा
गुफा के बारे में मंदिर की व्यवस्थापक रामाधार दास पाठक बताते हैं कि गुफा काफी प्राचीन काल की है. जब ये गुफा मिली थी, उस समय यहां कोई नहीं आता था, क्योंकि यहां दोनों तरफ विशाल झुके हुए अर्जुन के पेड़ थे. काफी अंधेरा रहता था और एक बाघ भी रहता था. इसलिए डर के मारे लोग नहीं आते थे. ऐसा हमारे हरेराम महाराज ने बताया था. वह यहां 144 साल पहले गाय चराने आते थे. एक दिन उन्होंने देखा कि यहां पर एक कंदरा है. उन्होंने उसकी साफ सफाई की, तो हनुमान जी की मूर्ति मिली. जिसकी स्थापना करके हरे राम महाराज यही रहने लगे. वैसे उनका नाम जमनादास महाराज था. वह हनुमान की भक्ति में ऐसे लीन हुए कि यहां पर खाने-पीने की व्यवस्था न होने के बावजूद पत्ते खाकर और नदी के कुंड का पानी पीकर प्रभु के सेवा में लग गये.
![sagar cave lord hanuman temple](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/02-02-2024/mp-sgr-01-hanuman-gufa-spl-7208095_02022024193248_0202f_1706882568_677.jpg)
जामवंत और हनुमान जी ने की थी तपस्या
इस स्थान को हरेराम महाराज (जमुना दास महाराज) की तपोभूमि कहा जाता है. उनके शिष्य रामाधार दास बताते हैं कि हरेराम महाराज बताते थे कि यहां पर जामवंत और हनुमान जी ने तपस्या की थी. यहां से 20 किलोमीटर दूरी पर गोरीदांत में एक गुफा है. जहां पर मां गौरी तपस्या कर रही थी और जामवंत और हनुमान जी उनकी सेवा और सुरक्षा में थे. यहां से 27 किलोमीटर दूर दमोह जिले में लांजी इमलिया के पास मंडपा स्थान है. जो बाबा मंगलदास की तपोभूमि है. लेकिन महाराज जी ने मना किया था कि वहां कभी नहीं जाना, क्योंकि गुफा में महात्मा की तपस्या कर रहे हैं. उनको टोकना नहीं, जब भी जाना तो अगरबत्ती लगाकर प्रणाम कर कर वापस आ जाना. यहां पर एक समाधि परमहंस दादा की 1000 साल पुरानी है. बीच में हरेराम महाराज की समाधि है और एक और समाधि गरीबदास महाराज की है. जो इन जंगलों में रात के समय तपस्या करते थे.
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अब सड़क बनने से पहुंच हुई आसान
रामाधार दास महाराज बताते हैं कि पहले यहां आना जाना इतना आसान नहीं था. जंगल और रास्ता न होने के कारण दिन में भी लोग नहीं आते थे. आसपास के जिन लोगों को जानकारी थी, वह कभी कभार दर्शन करने आते थे, लेकिन मंदिर प्रांगण तक सड़क बन जाने के कारण अब काफी संख्या में भक्त लोग आ रहे हैं. मैं खुद यहां पिछले 44 साल से सेवा कर रहा हूं और यहां पर 109 साल से अखंड दीपक जल रहा है. पहले प्राचीन मूर्ति थी, लेकिन अब हनुमान जी की मूर्ति नयी है. तीन साल पहले यहां राम दरबार की स्थापना की गई है.