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RSS के पॉलिटिकल कनेक्शन पर विवेक तन्खा का बड़ा सवाल, कहा-बीजेपी कनेक्शन को लेकर संघ दे शपथ पत्र - RSS Political Connection with BJP

आरएसएस को प्रतिबंधित संगठनों की सूची से हटाने के बाद अब सीनियर एडवोकेट विवेक तन्खा ने सवाल उठाया है. उन्होंंने कहा कि अब स्वयंसेवक संघ को शपथ पत्र देकर ये स्पष्ट करना चाहिए कि उसका बीजेपी के साथ राजनैतिक रिश्ता है या नहीं.

RSS POLITICAL CONNECTION WITH BJP
बीजेपी कनेक्शन को लेकर संघ दे शपथ पत्र (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Jul 27, 2024, 5:51 PM IST

Updated : Jul 27, 2024, 11:03 PM IST

इंदौर: केंद्र सरकार के एक फैसले के बाद आखिरकार आरएसएस को प्रतिबंधित संगठनों की सूची से हटा दिया गया है. इस फैसले के बाद अब संघ के भाजपा के साथ पॉलिटिकल कनेक्शन को लेकर भी स्वयंसेवक संघ पर सवाल उठ रहे हैं. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के बाद मध्य प्रदेश से राज्यसभा सांसद और वकील विवेक तन्खा ने स्वयंसेवक संघ से भाजपा के राजनीतिक संबंधों पर स्थिति स्पष्ट करने की मांग की है. उन्होंने कहा अब जबकि संघ के पक्ष में कोर्ट का फैसला आ चुका है तो कहीं ना कहीं संघ को इस बात का शपथ पत्र देना चाहिए कि संघ के भाजपा से कोई राजनीतिक कनेक्शन नहीं हैं और संघ एक स्वयंसेवी और सांस्कृतिक संगठन है.

RSS के पॉलिटिकल कनेक्शन पर विवेक तन्खा ने उठाए सवाल (ETV Bharat)

'बीजेपी से पॉलिटिकल कनेक्शन को लेकर सवाल'

इंदौर पहुंचे एडवोकेट विवेक तन्खा ने आरएसएस के बीजेपी से पॉलिटिकल कनेक्शन को लेकर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि "जजमेंट में जो बातें कही गई हैं वह जरूरी नहीं थी क्योंकि आरएसएस का प्रतिबंध कोर्ट ने नहीं बल्कि केंद्र सरकार ने हटाया है. जजों ने आरएसएस के लिए जो टिप्पणी की उसे कोर्ट की भाषा में ओबिटर डिक्टम कहते हैं जो केस के लिए जरूरी नहीं थी. यह कोई कानून नहीं बल्कि सिर्फ जजों की व्यक्तिगत राय थी. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट भी कई बार बोल चुका है कि जजों को अपने निजी विचार फसलों में व्यक्त नहीं करना चाहिए, यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए भी जरूरी है."

'बीजेपी कनेक्शन को लेकर संघ दे शपथ पत्र'

एडवोकेट विवेक तन्खा ने कहा कि "प्रतिबंध हटाने के बाद अब आरएसएस को यह बताना चाहिए कि वह राजनीतिक संगठन है कि नहीं. यदि नहीं है तो अगर आरएसएस चुनाव में बीजेपी का प्रबंधन या समर्थन करती है तो यह गलत है, क्योंकि फिर सरकारी कर्मचारी आरएसएस के सदस्य नहीं बन सकते. आरएसएस को शपथ पत्र के जरिए अब बताना चाहिए कि हम सांस्कृतिक संगठन हैं और हमारा बीजेपी से कोई लेना-देना नहीं है. यदि ऐसा नहीं होता है तो हमेशा यह विवाद रहेगा. आप सरकारी नौकरी में होकर किसी पार्टी से संबंध रखते हुए उसमें शामिल नहीं कर सकते. यह बात संघ को जनता के सामने स्पष्ट करना चाहिए. आरएसएस को अब खुद बताना पड़ेगा कि उसका कैरेक्टर क्या है."

High court Verdict On RSS
आरएसएस को लेकर हाईकोर्ट का निर्णय (ETV Bharat)

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यह था मामला और कोर्ट की टिप्पणी

बता दें कि स्वयंसेवक संघ को बीते 9 जुलाई को ही प्रतिबंधात्मक संगठनों की सूची से बाहर किया गया है. इस मामले में इंदौर हाई कोर्ट में रिटायर्ड अधिकारी पुरुषोत्तम गुप्ता की ओर से दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा था कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि लोकहित और राष्ट्रहित में काम करने वाले संगठन को प्रतिबंधात्मक सूची से हटाने में 50 साल लग गए. जस्टिस सुश्रुत अरविंद धर्माधिकारी की बेंच द्वारा इस मामले में टिप्पणी करते हुए कहा कि "किसी भी प्रतिष्ठित स्वैच्छिक संगठन को वर्तमान सरकार की सनक और पसंद के आदेश से सूली पर नहीं चढ़ाया जाए, जैसा कि आरएसएस के साथ हुआ और बीते 5 दशकों से हो रहा है. कोर्ट ने कहा संघ की सदस्यता लेने वाले का लक्ष्य स्वयं को राजनीतिक गतिविधियों में शामिल करना नहीं हो सकता और सांप्रदायिक या राष्ट्र विरोधी या धर्मनिरपेक्ष गतिविधियों में शामिल होना तो दूर की बात है." इस मामले में केंद्र की ओर से जनरल हिमांशु जोशी और डिप्टी एडवोकेट जनरल अनिकेत नायक ने शपथ पत्र प्रस्तुत किया था.

इंदौर: केंद्र सरकार के एक फैसले के बाद आखिरकार आरएसएस को प्रतिबंधित संगठनों की सूची से हटा दिया गया है. इस फैसले के बाद अब संघ के भाजपा के साथ पॉलिटिकल कनेक्शन को लेकर भी स्वयंसेवक संघ पर सवाल उठ रहे हैं. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के बाद मध्य प्रदेश से राज्यसभा सांसद और वकील विवेक तन्खा ने स्वयंसेवक संघ से भाजपा के राजनीतिक संबंधों पर स्थिति स्पष्ट करने की मांग की है. उन्होंने कहा अब जबकि संघ के पक्ष में कोर्ट का फैसला आ चुका है तो कहीं ना कहीं संघ को इस बात का शपथ पत्र देना चाहिए कि संघ के भाजपा से कोई राजनीतिक कनेक्शन नहीं हैं और संघ एक स्वयंसेवी और सांस्कृतिक संगठन है.

RSS के पॉलिटिकल कनेक्शन पर विवेक तन्खा ने उठाए सवाल (ETV Bharat)

'बीजेपी से पॉलिटिकल कनेक्शन को लेकर सवाल'

इंदौर पहुंचे एडवोकेट विवेक तन्खा ने आरएसएस के बीजेपी से पॉलिटिकल कनेक्शन को लेकर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि "जजमेंट में जो बातें कही गई हैं वह जरूरी नहीं थी क्योंकि आरएसएस का प्रतिबंध कोर्ट ने नहीं बल्कि केंद्र सरकार ने हटाया है. जजों ने आरएसएस के लिए जो टिप्पणी की उसे कोर्ट की भाषा में ओबिटर डिक्टम कहते हैं जो केस के लिए जरूरी नहीं थी. यह कोई कानून नहीं बल्कि सिर्फ जजों की व्यक्तिगत राय थी. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट भी कई बार बोल चुका है कि जजों को अपने निजी विचार फसलों में व्यक्त नहीं करना चाहिए, यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए भी जरूरी है."

'बीजेपी कनेक्शन को लेकर संघ दे शपथ पत्र'

एडवोकेट विवेक तन्खा ने कहा कि "प्रतिबंध हटाने के बाद अब आरएसएस को यह बताना चाहिए कि वह राजनीतिक संगठन है कि नहीं. यदि नहीं है तो अगर आरएसएस चुनाव में बीजेपी का प्रबंधन या समर्थन करती है तो यह गलत है, क्योंकि फिर सरकारी कर्मचारी आरएसएस के सदस्य नहीं बन सकते. आरएसएस को शपथ पत्र के जरिए अब बताना चाहिए कि हम सांस्कृतिक संगठन हैं और हमारा बीजेपी से कोई लेना-देना नहीं है. यदि ऐसा नहीं होता है तो हमेशा यह विवाद रहेगा. आप सरकारी नौकरी में होकर किसी पार्टी से संबंध रखते हुए उसमें शामिल नहीं कर सकते. यह बात संघ को जनता के सामने स्पष्ट करना चाहिए. आरएसएस को अब खुद बताना पड़ेगा कि उसका कैरेक्टर क्या है."

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आरएसएस को लेकर हाईकोर्ट का निर्णय (ETV Bharat)

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यह था मामला और कोर्ट की टिप्पणी

बता दें कि स्वयंसेवक संघ को बीते 9 जुलाई को ही प्रतिबंधात्मक संगठनों की सूची से बाहर किया गया है. इस मामले में इंदौर हाई कोर्ट में रिटायर्ड अधिकारी पुरुषोत्तम गुप्ता की ओर से दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा था कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि लोकहित और राष्ट्रहित में काम करने वाले संगठन को प्रतिबंधात्मक सूची से हटाने में 50 साल लग गए. जस्टिस सुश्रुत अरविंद धर्माधिकारी की बेंच द्वारा इस मामले में टिप्पणी करते हुए कहा कि "किसी भी प्रतिष्ठित स्वैच्छिक संगठन को वर्तमान सरकार की सनक और पसंद के आदेश से सूली पर नहीं चढ़ाया जाए, जैसा कि आरएसएस के साथ हुआ और बीते 5 दशकों से हो रहा है. कोर्ट ने कहा संघ की सदस्यता लेने वाले का लक्ष्य स्वयं को राजनीतिक गतिविधियों में शामिल करना नहीं हो सकता और सांप्रदायिक या राष्ट्र विरोधी या धर्मनिरपेक्ष गतिविधियों में शामिल होना तो दूर की बात है." इस मामले में केंद्र की ओर से जनरल हिमांशु जोशी और डिप्टी एडवोकेट जनरल अनिकेत नायक ने शपथ पत्र प्रस्तुत किया था.

Last Updated : Jul 27, 2024, 11:03 PM IST
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