जोधपुर : मारवाड़ में पड़ने वाली भीषण गर्मी से बड़े बूढ़े तो परेशान होते ही है, लेकिन अब इस भीषण ताप का छोटे बच्चों खासकर नवजात पर भी गंभीर असर पड़ रहा है. गर्मी के कारण शरीर में पानी की कमी होने से बड़ी संख्या में बच्चों की किडनियां खराब हो रही हैं. इतना ही नहीं इनमें से करीब 50 से 60 फीसदी बच्चों के ब्रेन पर भी इसका असर देखने को मिल रहा है. वहीं, ब्रेन पर असर से हाथ-पांव में लकवे और मिर्गी का खतरा भी बढ़ रहा है. यह खुलासा डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज के शिशु औषध, शिशु न्यूरोलॉजी व रेडियोलोजी विभाग, ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज भटिंडा के एक्सपर्ट्स और इंग्लैंड की एस्टन यूनिवर्सिटी की एमबीबीएस स्टूडेंट्स की संयुक्त रिसर्च की रिपोर्ट में हुआ है.
पीडियाट्रिक न्यूरोलॉजिस्ट प्रोफेसर डॉ. मनीष पारख ने बताया कि दुनिया में 100 में से 2-3 नवजातों में ही मस्तिष्क में खून की धमनियों व नसों में थक्का बनने की आशंका होती है, लेकिन पश्चिमी राजस्थान के भू-भाग में जन्मे नवजात बच्चों में अत्यधिक गर्मी के कारण पानी की कमी से मस्तिष्क में खून की धमनियों व नसों में थक्के जमने की संभावना करीब 16% है. पानी की कमी से नवजात शिशु के गुर्दे तुरंत खराब हो जाते हैं और शिशु बहुत गंभीर अवस्था में अस्पताल लाए जाते हैं. ज्यादातर डॉक्टर्स इन बच्चों में गुर्दे के खराब होने पर ही ध्यान देते हैं, लेकिन इन बच्चों के ब्रेन पर भी गंभीर असर होता है. ऐसी परेशानी से बचने के लिए गर्भवती होने के बाद पूरे 9 महीने तक नियमित रूप से डॉक्टर से चेकअप करवाते रहना चाहिए. प्रसव के तत्काल बाद प्रसूता को नवजात को ब्रेस्ट फीडिंग जरूर करवाना चाहिए. इसमें आधे घंटे से ज्यादा की देरी नहीं होनी चाहिए.
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बच्चों के देर से बोलना, मानसिक तनाव और मिर्गी जैसे लक्षण : रिसर्च में सामने आया है कि डायग्नोस के अभाव में 2 से 5 साल तक के बच्चों में देरी से बोलना, मानसिक विमंदित होना व मिर्गी आने जैसे लक्षण दिखाई पड़ते हैं. पीडियाट्रिक न्यूरोलॉजी विशेषज्ञ डॉ. मनीष पारख ने बताया कि इस तरह के लक्षण वाले बच्चों का अस्पताल में यूरिया व क्रिएटिनिन टेस्ट कराया जाता है. इससे बीमारी पकड़ में आती है, जबकि इस रिपोर्ट में हमारी रिसर्च टीम स्पष्ट अनुशंषा करती है कि हमें ब्रेन की एमआरआई (मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग) जांच करवानी चाहिए. इसमें वेन व आर्टरी को देखना चाहिए. क्योंकि ऐसा न करने से भविष्य में बच्चे को अन्य जटिलता आ जाती है. इसलिए हमने सिफारिश की है कि ऐसे मामलों गर्मियों में बच्चों की केवल गुर्दे की बजाय ब्रेन इमेजिंग भी करवानी चाहिए.
52 प्रतिशत में गुर्दे की परेशानी : शोध में करीब 74 बच्चे शामिल किए गए थे. 1,500 से 2,499 किलोग्राम के बीच वजन वाले इन नवजात शिशुओं में 52.7% में गुर्दे की गंभीर खराबी पाई गई. एक्यूट किडनी इंजरी के साथ भर्ती हुए नवजात शिशुओं में एन्सेफैलोपैथी के लक्षण और संकेत अधिक पाए गए. जैसे कि सुस्ती (78.4%), मिर्गी के दौरे (64.8%) और चिड़चिड़ापन (35.1%) थे. ये भी निष्कर्ष निकाला गया कि इन शिशुओं को कम से कम 5 वर्ष की उम्र तक चिकित्सकीय देखरेख में रखना चाहिए और मस्तिष्क व मानसिक विकास से संबंधित किसी भी विकार के लिए शिशु का तुरंत इलाज करना चाहिए. बता दें कि यह शोध एक वर्ष तक चला था.