देहरादून: भांग को जहां नशे के लिए जाना जाता था तो वहीं अब इसके दूसरे महत्वपूर्ण पहलुओं पर उत्तराखंड में बात की जाने लगी है. उत्तराखंड में उगने वाले भांग के औषधीय गुणों के अलावा भांग के पौधे से बनने वाले नेचुरल फाइबर की डिमांड पिछले कुछ सालों में काफी बढ़ी है. उत्तराखंड में भी लगातार इस दिशा में शोध किया जा रहा है.
उत्तराखंड टेक्निकल यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर हेम्प प्रोसेसिंग डेवलपमेंट टेक्नोलॉजी के तहत इंडस्ट्रियल हेम्प से जुड़े दो अलग-अलग डोमेन में रिसर्च किया जा रहा है. जिसमें से एक, भांग के बीज को सुधार और दूसरा भांग के फाइबर को किस तरह से और अधिक उपयोगी बनाया जाए, इस पर शोध किया जा रहा है.
उत्तराखंड टेक्निकल यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर प्रोफेसर ओंकार सिंह ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए बताया कि विश्वविद्यालय के इनक्यूबेटर सेंटर में सेंटर फॉर हेम्प प्रोसेसिंग डेवलपमेंट टेक्नोलॉजी की स्थापना की गई है. भांग के बीज को और अधिक गुणवत्ता युक्त बनाने के लिए एक कंट्रोल एनवायरनमेंट में इंडस्ट्रियल हेम्प (औद्योगिक भांग) का सीड कल्टीवेशन किया जाता है. इसमें भुवनेश्वर (ओडिशा) की डेल्टा बोटैनिकल्स कंपनी डेडिकेटेड रूप से काम कर रही है.
उन्होंने बताया कि इनक्यूबेशन सेंटर में इंडस्ट्रियल हेम्प के फाइबर को लेकर भी रिसर्च की जा रही है. भांग के रेशे से बनाए जाने वाला फाइबर की डिमांड आज मार्केट में बेहद ज्यादा है. यही कारण है कि हेम्प लॉन्ग फाइबर को कैसे और अधिक सस्टेनेबल और ड्यूरेबल बनाया जाए, इसको लेकर लगातार रिसर्च चल रही है. जल्द ही इसका परिणाम भी देखने को मिलेंगे.
भांग को लेकर गलत धारणा: उत्तराखंड टेक्निकल यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर प्रोफेसर ओंकार सिंह ने बताया कि भांग को लेकर उत्तराखंड में लंबे समय से एक बुरी धारणा रही है. लेकिन आज इंडस्ट्रियल हेम्प को लेकर मार्केट में एक नई उम्मीद देखी जा रही है. उन्होंने बताया कि आज नेचुरल और कार्बनिक के तरफ बढ़ते समाज के रुझान को देखते हुए हेम्प फाइबर मार्केट में मौजूद बड़े-बड़े गारमेंट्स ब्रांड को अपनी नेचुरलिटी की वजह से टेंशन दे सकता है, इसमें इतना पोटेंशियल मौजूद है.
उन्होंने बताया कि हम फाइबर को और अधिक ड्यूरेबल बनाने के लिए और इसे उपयोग में बेहतर तरीके से लाने के लिए लगातार रिसर्च कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय में चल रही रिसर्च में भांग के रेशे से निकलने वाले फाइबर को और अधिक कैसे बनाया जाए, साथ ही भांग के पौधे को भी किस तरह से और अधिक प्रोडक्टिव बनाना है और इससे तैयार होने वाले चीजों को लेकर किस तरह से और अधिक सुधार किया जा सकता है, इस पर तेज गति से काम चल रहा है.
उत्तराखंड में भांग उत्पादन: उत्तराखंड में भांग उत्पादन के अगर बात की जाए तो पूरे राज्य में संगठित रूप से तकरीबन 400 टन सालाना भांग उत्पादन किया जाता है. हालांकि, उत्तराखंड में ज्यादातर भांग को चटनी और खाद्य पदार्थों में इस्तेमाल किया जाता है. इसके अलावा भांग के रेशे का फाइबर के रूप में भी इस्तेमाल होता है. लेकिन उसका इस्तेमाल अभी उत्तराखंड में बेहद कम है. हालांकि, भांग के रेशे से फाइबर उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए लगातार सरकार तमाम प्रयास कर रही है.
भांग का वैश्विक बाजार: मार्केट में अगर हम भांग उत्पादन के मार्केट डिमांड की बात करें तो साल 2022 में इंडस्ट्रियल हेम्प का ग्लोबल मार्केट 5600 करोड़ रुपए था, जिसे साल 2027 तक 21.6% की कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट (CAGR) से बढ़कर 15000 करोड़ होने का अनुमान है. साल 2022 में मेडिकल इंडस्ट्री में इस्तेमाल होने वाली भांग यानी मेडिकल कैनबिस का वैश्विक बाजार 35000 करोड़ रुपए का था जो कि साल 2030 तक 34% की सीएजीआर से बढ़कर 300 हजार करोड़ रुपए होने का अनुमान है.
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