रतलाम (दिव्यराज सिंह राठौर): मध्य प्रदेश के रतलामी सेव और नमकीन के स्वाद का तो हर कोई मुरीद है. लेकिन रतलाम की कचौरी के जायके का भी जमाना दीवाना है, खासकर रतलाम की तर कचौरी. गर्मा-गर्म फूली हुई कचौरी को फोड़ कर उसमें गर्म तेल डाला जाता है, जो कचौरी के मसाले के साथ मिलकर अलग ही स्वाद देता है. यह कचौरी आपको केवल रतलाम में ही खाने को मिलेगी.
पोहावाला रेस्टोरेंट के संचालक बताते हैं कि "स्वाद के शौकीनों को तर कचौरी खूब भाती है. रतलाम की तर कचोरी ही नहीं बल्कि यहां बनने वाली शुद्ध घी की कचौरी, हींग की कचौरी, दाल की कचौरी, प्याज और आलू की कचौरी की मांग दिल्ली, मुंबई और जयपुर जैसे बड़े शहरों तक है."
क्या खासियत है तर कचौरी की
दरअसल, यह कचोरी बनाने की कोई खास रेसिपी नहीं है बल्कि सामान्य कचौरी ही है. लेकिन शुद्ध मूंगफली के तेल में तले जाने के बाद भी ग्राहकों की डिमांड पर इसे फोड़ कर गरमा गरम तेल से तरबतर किया जाता है. इसी कचौरी को तर कचौरी के नाम से जाना जाता है. तर कचौरी के शौकीन इसे बड़े चाव के साथ खाते हैं. रतलाम के सुजीत उपाध्याय, निमिष व्यास और सुनील शर्मा बताते हैं कि "कचोरी में गरमा गरम तेल डालने से अंदर के मसाले सॉफ्ट हो जाते हैं जिससे कचौरी का अलग ही स्वाद मिलता है."
मोहन यादव भी कर चुके हैं जिक्र
अधिक मात्रा में तेल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होने के सवाल पर यहां के लोग कहते हैं कि शुद्ध मूंगफली का तेल उपयोग किए जाने की वजह से यह हानिकारक नहीं होती है. नमकीन के शौकीनों के इस खास अंदाज का जिक्र प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने भी अपने रतलाम प्रवास के दौरान किया था. मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा था कि "दुनिया में कचौरी तो कहीं भी मिल सकती है, लेकिन उसे फोड़कर तेल डालकर तर कचौरी केवल रतलाम में ही मिल सकती है."
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कचौरी की एक नहीं कई प्रसिद्ध दुकान
पुराने दौर में तर कचौरी के लिए रतलाम के दौलतगंज स्थित मूलचंद कचौरी वाला की दुकान बड़ी प्रसिद्ध थी. जहां लोग लाइन लगाकर तर कचौरी खाने का इंतजार करते थे. कसारा बाजार स्थित कारु मामा की कचौरी, पोहावाला की कचौरी और चांदनी चौक स्थित चुन्नीलाल जी की घी की कचौरी जैसी करीब एक दर्जन दुकान हैं. जहां की कचौरी का जायका रतलाम ही नहीं बल्कि आसपास के बड़े शहरों में भी मशहूर है.