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मध्य प्रदेश में बंद हो रही है दालों की खेती, पिछले 5 साल के आकड़ों ने बढ़ा दी टेंशन - RATLAM PULSE CROP FARMING REDUCTION

रतलाम, मंदसौर, नीमच और उज्जैन जिले में जंगली सुअर और घोड़ारोज से परेशान होकर किसान अब दलहनी फसलों का रकबा घटा रहे हैं.

RATLAM PULSE CROP FARMING REDUCTION
घोड़ारोज फसलों को कर देते हैं नष्ट (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Nov 30, 2024, 11:00 PM IST

रतलाम: मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में किसान अब चने की खेती छोड़ते जा रहे हैं. इससे पहले किसानों ने अरहर की खेती करना भी लगभग बंद कर दिया है. इसकी वजह कम दाम मिलना या कोई बीमारी नहीं बल्कि जंगली जानवर हैं जो किसानों की फसलें चौपट कर रहे हैं. जंगली सूअर और घोड़ारोज से परेशान होकर किसान अब दलहनी फसलों का रकबा घटा रहे हैं.

घोड़ारोज से दलहनी फसलें हो रही प्रभावित

रतलाम, मंदसौर, नीमच और उज्जैन जिले के किसान कुछ साल पहले बड़े स्तर पर चने और अरहर की खेती करते थे. लेकिन पहले किसानों ने अरहर की खेती करना कम कर दिया था और अब चने की खेती कम कर रहे हैं. इन दिनों मालवा क्षेत्र में चने के खेत ढूंढे नहीं मिल पा रहे हैं. जब इसकी पड़ताल की गई तो किसानों ने बताया कि घोड़ारोज (नील गाय) और जंगली सुअर ने उनकी खेती पर रोक लगा दी है.

रतलाम में घटी दलहनी फसलों की खेती (ETV Bharat)

दलहनी फसलों में होने वाले भारी नुकसान से बचने के लिए किसानों ने इन फसलों की खेती करना कम कर दिया है. अब वे वैकल्पिक फसलों जिनमें अपेक्षाकृत कम नुकसान होता है, की खेती करने लगे है. कुछ सक्षम किसानों ने खेत की फेंसिंग कर ली है जिसके बाद वे बागवानी या फिर सब्जियों की खेती करने लगे हैं.

क्या है यह घोड़ारोज जिससे प्रभावित हुई खेती

दरअसल, मध्य प्रदेश में इस जंगली जानवर को नीलगाय के नाम से जाना जाता है. मालवा क्षेत्र में इसे घोड़ारोज या फिर रोजड़ा भी कहा जाता है. ये झुंड में रहकर किसानों द्वारा बोई गई फसलों को चौपट कर देते हैं. चना, मक्का और अरहर को घोड़ारोज बड़े चाव से खाते हैं. एक बार में ही इनका झुंड पूरे खेत की फसल को साफ कर सकता है. इससे परेशान किसान कई फसलों की खेती बंद करने लगे हैं.

फसलों के बचाव के लिए करने पड़ते है कई जतन

यहां के किसान जंगली जानवरों से अपनी फसलों को बचाने के लिए तरह-तरह के जतन करते हैं. वे अपने खेतों की फेंसिंग करवाते हैं और फसलों को बचाने के लिए झटका मशीन का भी इस्तेमाल करते हैं. किसानों का आरोप है कि सरकार की तरफ से इनको कोई मदद नहीं मिलती. भारी-भरकम खर्च करने के बाद भी किसानों को जंगली जानवरों की समस्या से निजात नहीं मिल पा रही है. कई किसान देसी जुगाड़ करके भी जंगली जानवरों से छुटकारा पाने का प्रयास करते हैं.

घट गया चने और अरहर का रकबा

रतलाम कृषि विभाग के अधिकारी बिका वास्के बताते हैं "इस क्षेत्र में पिछले 5 सालों में चने और अरहर की खेती में 50 फीसदी तक की गिरावट आई है. पिछले वर्ष की तुलना में इस बार चने की बुवाई में 25 फीसदी की कमी आई है." किसानों का कहना है कि जंगली जानवरों से परेशान होकर उन्होंने ऐसा किया है.

किसान नेता और जंगली जानवरों के मामले में राज्य स्तर पर लड़ाई लड़ रहे राजेश पुरोहित बताते हैं "यदि सरकार किसानों को खेतों की फेंसिंग करने और झटका मशीन लगाने के लिए सब्सिडी योजना शुरू करे तो किसानों को बड़ी राहत मिल सकती है."

रतलाम: मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में किसान अब चने की खेती छोड़ते जा रहे हैं. इससे पहले किसानों ने अरहर की खेती करना भी लगभग बंद कर दिया है. इसकी वजह कम दाम मिलना या कोई बीमारी नहीं बल्कि जंगली जानवर हैं जो किसानों की फसलें चौपट कर रहे हैं. जंगली सूअर और घोड़ारोज से परेशान होकर किसान अब दलहनी फसलों का रकबा घटा रहे हैं.

घोड़ारोज से दलहनी फसलें हो रही प्रभावित

रतलाम, मंदसौर, नीमच और उज्जैन जिले के किसान कुछ साल पहले बड़े स्तर पर चने और अरहर की खेती करते थे. लेकिन पहले किसानों ने अरहर की खेती करना कम कर दिया था और अब चने की खेती कम कर रहे हैं. इन दिनों मालवा क्षेत्र में चने के खेत ढूंढे नहीं मिल पा रहे हैं. जब इसकी पड़ताल की गई तो किसानों ने बताया कि घोड़ारोज (नील गाय) और जंगली सुअर ने उनकी खेती पर रोक लगा दी है.

रतलाम में घटी दलहनी फसलों की खेती (ETV Bharat)

दलहनी फसलों में होने वाले भारी नुकसान से बचने के लिए किसानों ने इन फसलों की खेती करना कम कर दिया है. अब वे वैकल्पिक फसलों जिनमें अपेक्षाकृत कम नुकसान होता है, की खेती करने लगे है. कुछ सक्षम किसानों ने खेत की फेंसिंग कर ली है जिसके बाद वे बागवानी या फिर सब्जियों की खेती करने लगे हैं.

क्या है यह घोड़ारोज जिससे प्रभावित हुई खेती

दरअसल, मध्य प्रदेश में इस जंगली जानवर को नीलगाय के नाम से जाना जाता है. मालवा क्षेत्र में इसे घोड़ारोज या फिर रोजड़ा भी कहा जाता है. ये झुंड में रहकर किसानों द्वारा बोई गई फसलों को चौपट कर देते हैं. चना, मक्का और अरहर को घोड़ारोज बड़े चाव से खाते हैं. एक बार में ही इनका झुंड पूरे खेत की फसल को साफ कर सकता है. इससे परेशान किसान कई फसलों की खेती बंद करने लगे हैं.

फसलों के बचाव के लिए करने पड़ते है कई जतन

यहां के किसान जंगली जानवरों से अपनी फसलों को बचाने के लिए तरह-तरह के जतन करते हैं. वे अपने खेतों की फेंसिंग करवाते हैं और फसलों को बचाने के लिए झटका मशीन का भी इस्तेमाल करते हैं. किसानों का आरोप है कि सरकार की तरफ से इनको कोई मदद नहीं मिलती. भारी-भरकम खर्च करने के बाद भी किसानों को जंगली जानवरों की समस्या से निजात नहीं मिल पा रही है. कई किसान देसी जुगाड़ करके भी जंगली जानवरों से छुटकारा पाने का प्रयास करते हैं.

घट गया चने और अरहर का रकबा

रतलाम कृषि विभाग के अधिकारी बिका वास्के बताते हैं "इस क्षेत्र में पिछले 5 सालों में चने और अरहर की खेती में 50 फीसदी तक की गिरावट आई है. पिछले वर्ष की तुलना में इस बार चने की बुवाई में 25 फीसदी की कमी आई है." किसानों का कहना है कि जंगली जानवरों से परेशान होकर उन्होंने ऐसा किया है.

किसान नेता और जंगली जानवरों के मामले में राज्य स्तर पर लड़ाई लड़ रहे राजेश पुरोहित बताते हैं "यदि सरकार किसानों को खेतों की फेंसिंग करने और झटका मशीन लगाने के लिए सब्सिडी योजना शुरू करे तो किसानों को बड़ी राहत मिल सकती है."

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