History of Rani Durgavati : रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस यानि 24 जून पर लोग उनकी बहादुरी के किस्सों के साथ उन्हें याद कर रहे हैं. उनकी बहादुरी के कई किस्से इतिहास में दर्ज हैं. उनसे जुड़ा एक ऐसा ही किस्सा बताते हैं. ये कहानी मालवा के सुल्तान बाज बहादुर से जुड़ी है. इतिहासकार बताते हैं कि मालवा के सुल्तान बाज बहादुर को रानी दुर्गावती ने दौड़ा-दौड़ा कर मारा था. बाज बहादुर आशिक मिजाज आदमी था और उसकी नजर रानी दुर्गावती और गोंडवाना साम्राज्य को लेकर थी. इसी लालच की वजह से उसने गोंडवाना साम्राज्य पर हमला कर दिया और उसे मुंह की खानी पड़ी. वह न केवल युद्ध में हारा बल्कि उसे रानी ने दौड़ा-दौड़ा कर मारा यह तो गनीमत थी कि वह युद्ध स्थल से भाग गया और बच गया इसके बाद उसने फिर कभी रानी की तरफ टेढ़ी निगाह से नहीं देखा.
रानी दुर्गावती को 900 साल बाद भी करते हैं याद
1524 यानि आज से 900 साल पहले कालिंजर के राजा कीरत राय चंदेल के महल में एक बेटी का जन्म हुआ था. उस बेटी को हम 900 साल बाद भी गर्व से याद करते हैं. कीरत राय ने अपनी इस बेटी का नाम दुर्गावती रखा था. उनमें दुर्गा जैसे गुण थे, वह घोडों की सवारी करती थीं, अच्छी तलवारबाजी करती थीं कुशल नेता थीं और उन्हें राज्य चलाने की समझ थी.
गोंड राजा दलपत शाह से हुआ था विवाह
कालिंजर राज्य गोंडवाना की तुलना में एक छोटा राज्य था. चंदेल वंश के होने के बाद भी कालिंजर के राजा कीरत राय ने गोंड राजा दलपत शाह के साथ रानी दुर्गावती का विवाह किया था. यह रानी का दुर्भाग्य था की मात्र 7 साल बाद ही दलपत शाह की मौत हो गई थी और रानी अपने 5 साल के बच्चे के साथ राजकाज संभालने लगीं. उस जमाने में गोंडवाना साम्राज्य मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र का कुछ हिस्सा, उड़ीसा और झारखंड तक फैला हुआ था. रानी दुर्गावती इस पूरे साम्राज्य को जबलपुर से ही संभालती थीं. इस पूरे इलाके में जो अनाज पैदा होता था इसका एक छोटा सा हिस्सा लोग अपने मन से राज्य चलाने के लिए रानी को दान करते थे. इसलिए गोंडवाना शासकों के पास धन की भी कोई कमी नहीं थी.
बाज बहादुर को मालवा तक खदेड़ा
गोंडवाना से ठीक सटा हुआ प्रदेश मालवा था. उस दौरान यहां का मुस्लिम शासक बाज बहादुर गोंडवाना पर टेढ़ी नजर रखता था. बाज बहादुर के बारे में कहा जाता है कि वह एक आशिक मिजाज आदमी था और उसे लगा कि रानी दुर्गावती सुंदर हैं और एक बहुत बड़े राज्य की मालिक है, क्यों ना रानी पर हमला किया जाए और राज्य को भी अपने कब्जे में कर लिया जाए और रानी को भी. इसी मनसा से बाज बहादुर ने 1556 में गोंडवाना राज्य के ऊपर हमला कर दिया लेकिन बाज बहादुर को इस बात का अंदाजा नहीं था कि उसका यह दांव उल्टा पड़ जाएगा. इतिहासकार सतीश त्रिपाठी बताते हैं कि "बाज बहादुर को मुंह की खानी पड़ी थी. रानी दुर्गावती ने उसे दौड़ा-दौड़ा कर मारा, वह तो छुपते छुपाते युद्ध से भाग गया इसलिए उसकी जान बच गई वरना रानी उसे मार डालती."
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वीरांगना ने आत्म बलिदान देकर रचा था इतिहास
आसिफ खान के साथ भी युद्ध होते-होते रानी ने उसे अपने जाल में फंसा लिया था और लड़ते-लड़ते रानी और उसकी फौज बरेला के पास के जंगलों में छिप गई थी. उन्हें उम्मीद थी कि आसिफ खान जब यहां आएगा तो चारों तरफ से हमला कर देंगे और युद्ध खत्म हो जाएगा लेकिन किसी ने बीच में ही मुखबिरी कर दी. इस वजह से रानी का पता आसिफ खान को लग गया इसी दौरान उन्हें एक तीर लग गया जिससे वह घायल हो गईं. रानी के पास अब एक ही विकल्प था कि वह मुगलों से संधि कर लेती लेकिन रानी को अपना स्वाभिमान और अपनी इज्जत ज्यादा प्यारी थी इसलिए उन्होंने मुगलों से संधि करने की बजाय अपनी जान देना बेहतर समझा और 24 जून 1564 को रानी ने आत्म बलिदान देकर एक इतिहास रच दिया. जिसकी वजह से 900 साल बाद भी हम भारत की इस महान वीरांगना को याद करते हैं.