ETV Bharat / state

राजेंद्र बाबू को करीब से जानिए, जिन्हें कहा गया था- 'एग्जामिनर से बेहतर एग्जामिनी', आखिरी पल कहां गुजारा?

आज भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की जयंती है. उनकी प्रतिभा का आज भी पूरी दुनिया उदाहरण देती है. उनके बारे में सबकुछ जानें.

RAJENDRA PRASAD
देशरत्न डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद (ETV Bharat)
author img

By ETV Bharat Bihar Team

Published : 20 hours ago

Updated : 16 hours ago

छपरा/पटना : भारतीय संविधान सभा के अध्यक्ष और देश के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद की आज यानी 3 दिसंबर को 140वीं जयंती है. राजेंद्र बाबू का जन्म तत्कालीन सारण जिले वर्तमान में सिवान के जीरादेई में महादेव सहाय और कमलेश्वरी देवी के घर 1884 में कायस्थ परिवार में हुआ था.

बचपन से ही होनहार थे राजेंद्र प्रसाद: राजेंद्र प्रसाद बचपन से ही पढ़ाई लिखाई में होनहार थे. डॉ राजेंद्र प्रसाद पांच भाई बहनों में सबसे छोटे थे. उनसे बड़े एक भाई महेंद्र प्रसाद और तीन बहने थीं. इसीलिए वे सबके दुलारे थे. बचपन में ही मां की मृत्यु के बाद उनकी बड़ी बहन भगवती देवी ने उनका पालन पोषण किया था. उनकी शादी 12 वर्ष अल्पायु में ही राजवंशी देवी से हो गई थी.

देखें छपरा से यह रिपोर्ट. (ETV Bharat)

शिक्षक से करियर की शुरुआत: उनकी शुरुआती शिक्षा छपरा के जिला स्कूल में हुई थी. उसके बाद वह उच्च शिक्षा के लिए कोलकाता चले गए. वे प्रेसिडेंसी कॉलेज, पटना और इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भी अध्ययनरत रहे. उन्होंने अपना करियर एक शिक्षक के रूप में शुरू किया. उसके बाद उन्होंने वकालत भी की.

छपरा जिला स्कूल से प्रारंभिक पढ़ाई: देशरत्न डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को फारसी हिंदी और गणित सीखने के लिए 5 साल की उम्र में एक मौलवी के संरक्षण में रखा गया था. बाद में उन्हें छपरा जिला स्कूल में स्थानांतरित कर दिया गया, जहां वे अपने बड़े भाई महेंद्र प्रसाद के साथ शिक्षा ग्रहण करते थे. उसके बाद टी के घोष एकेडमी पटना में उन्होंने अध्ययन किया.

ईटीवी भारत GFX.
ईटीवी भारत GFX. (Etv Bharat)

1911 में आधिकारिक तौर पर कांग्रेस में शामिल: देश रत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद 1906 में वार्षिक सत्र के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े, जिसमें उन्होंने एक स्वयं सेवक के रूप में भाग लिया. उसके बाद 1911 में जब कोलकाता में फिर वार्षिक सत्र आयोजित किया गया तो आधिकारिक तौर पर वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए. 8 अगस्त 1942 को जब भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित किया गया.

3 साल जेल में रहे कैद: उसके बाद भारतीय नेताओं की गिरफ्तारी हुई तो राजेंद्र प्रसाद को गिरफ्तार कर लिया गया. पटना के सदाकत आश्रम से बांकीपुर सेंट्रल जेल भेज दिया गया. लगभग 3 साल तक वह जेल में बंद रहे. 2 सितंबर 1946 को जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में 12 मनोनीत मंत्रियों के अंतरिम सरकार के गठन के बाद उन्हें खाद और कृषि विभाग में नियुक्त किया गया. 11 सितंबर 1946 को हुए संविधान सभा के अध्यक्ष चुने गए. 26 जनवरी 1950 को स्वतंत्र भारत के संविधान को मंजूरी दी गई. उसके बाद राजेंद्र प्रसाद देश के पहले राष्ट्रपति चुने गए.

ईटीवी भारत GFX.
ईटीवी भारत GFX. (Etv Bharat)

डॉ राजेंद्र बाबू के तीन पुत्र: 1952 और 1957 में दो बार देश के राष्ट्रपति चुने गए. भारत की आजादी के 12 वर्षों के बाद 14 मई 1962 में उन्होंने राष्ट्रपति से इस्तीफा दे दिया और इस्तीफा देने के बाद पटना लौट आए. डॉ राजेंद्र बाबू के तीन पुत्र जिसमें मृत्युंजय प्रसाद, धनंजय प्रसाद और जनार्दन प्रसाद हमेशा लाइमलाइट से दूर रहे. मृत्युंजय प्रसाद ने तो बाकायदा चुनाव लड़कर जीत भी दर्ज की थी, लेकिन उसके बाद भी वह राजनीतिक में नहीं रहे.

स्कूल के छात्र खुद को महसूस करते हैं गौरवान्वित: डॉ राजेंद्र बाबू पढ़ने में बचपन से ही मेधावी थे. एक बार परीक्षा में एग्जामिनर ने लिखा था, एग्जामिनर से बेहतर एग्जामिनी है. देश रत्न डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद छपरा के जिस स्कूल में पढ़ा करते थे. वहां के शिक्षक और छात्र अपने आप को काफी गौरवान्वित महसूस करते हैं कि वह जिस स्कूल में पढ़ते हैं, उसी में देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र बाबू भी पढ़ा करते थे. वहीं अगर स्कूल की दशा और दिशा की बात की जाए तो स्कूल का नवनिर्माण पूरे जोर शोर से हो रहा है.

RAJENDRA PRASAD
राजेंद्र प्रसाद की फाइल फोटो (ETV Bharat)

"देश के पहले राष्ट्रपति ने यहां से पढ़ाई की थी. हमें बहुत गर्व होता है कि हम यहीं से पढ़ाई कर रहे हैं."- तारुषी, छात्रा

"इस स्कूल में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद पढ़े थे. यहां की पढ़ाई काफी अच्छी है. मैं कॉमर्स की छात्रा हूं. रोज स्कूल आती हूं."- नंदिनी गुप्ता, छात्रा

पटना में बीता अंतिम समय: देश के प्रथम राष्ट्रपति भारत रत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद की विद्वता जितनी लोकप्रिय है, उतनी ही उनकी सादगी भी लोकप्रिय है. उनका व्यक्तित्व ऐसा रहा है कि आज भी उनकी सादगी भरी व्यक्तित्व को आदर्श पुरुष के लिये मिसाल दी जाती है. सादा जीवन उच्च विचार के पर्याय थे. सिवान के जीरादेई गांव में जन्मे डॉ राजेंद्र प्रसाद का अंतिम समय पटना में बीता. पटना में अंतिम समय में जहां वह रहते थे, उस जगह को देखने मात्र से ही उनके सादगी भरे व्यक्तित्व का चेहरा झलक पड़ता है.

देखें पटना से यह रिपोर्ट. (ETV Bharat)

खपरैल के मकान में रहते थे पूर्व राष्ट्रपति: डॉ राजेंद्र प्रसाद को भारतीय इतिहास में सबसे लंबे समय तक राष्ट्रपति बने रहने का गौरव हासिल है. 26 जनवरी 1950 को राष्ट्रपति मनोनीत किए गए, फिर 1952 में हुए राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल की. इसके बाद 1957 में भी चुनाव जीत कर राष्ट्रपति बने. 1962 में उन्होंने संन्यास की घोषणा की. 13 मई 1962 को राष्ट्रपति का कार्यकाल पूरा करने के बाद बिहार लौट आए. बिहार लौट पर वह खपरैल के मकान में रहने लगे. आज यहां बिहार विद्यापीठ है और यह मकान संग्रहालय के रूप में अवस्थित है.

जेपी रह गए थे भौंचक्के: डॉ राजेंद्र प्रसाद के प्रपौत्र मनीष सिन्हा बताते हैं कि डॉ राजेंद्र प्रसाद जब पटना रहने लगे. लोकनायक जेपी को पता चला कि भारत देश के पूर्व राष्ट्रपति अब खपरैल के मकान में रह रहे हैं तो वह भौंचक्के हो गये थे. इस मसले पर उन्होंने समाज की बुद्धिजीवियों से चर्चा की और फिर समाज ने चंदा इकट्ठा कर राजेंद्र प्रसाद के लिए खपरैल के मकान के चंद दूरी पर ही छत का मकान बनवा दिया.

"फिर डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद इसी मकान में रहने लगे और जीवन की अंतिम सांस भी उन्होंने लोगों द्वारा बनवाए गए मकान में ही ली. आज खपरैल का मकान राजेंद्र संग्रहालय -1 और छत का मकान राजेंद्र संग्रहालय 2 के नाम से जाना जाता है."- मनीष सिन्हा, डॉ राजेंद्र प्रसाद के प्रपौत्र

RAJENDRA PRASAD
पटना के इसी घर में रहते थे राजेंद्र बाबू (ETV Bharat)

इस कारण से तबीयत रहने लगी खराब: खपरैल के मकान वाले संग्रहालय के केयरटेकर रजनीश कुमार ने बताया कि यह डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का अपना मकान था. राष्ट्रपति बनने के पहले पटना के इसी मकान में वह रहते थे. उस समय का उनका स्टैंड फैन आज भी हवा देता है और अब तक खराब नहीं हुआ है. खपरैल का मकान बरसात के समय में चूने लगा था. राजेंद्र प्रसाद की तबीयत खराब रहने लगी.

"उनका चरखा और उनकी झूलने वाली कुर्सी जस की तस संभाल कर रखी गई है. उन्होंने अपने पुत्रों के लिए जो पत्र लिखे हैं उसकी प्रति फ्रेम करके रखी हुई है. मकान में आंदोलन की तैयारी के लिए लोग आते थे तो उस समय की भी तस्वीरें हैं. राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति पद छोड़ने के बाद यही रहने आ गए थे. लोगों ने उनके लिए पास में दूसरा नया मकान बनवाया जिसमें आज राजेंद्र स्मृति संग्रहालय है."- रजनीश कुमार,संग्रहालय के केयरटेकर

RAJENDRA PRASAD
पटना में बीता अंतिम समय (ETV Bharat)

सनातन में आस्था रखते थे डॉ राजेंद्र प्रसाद: राजेंद्र स्मृति संग्रहालय की अध्यक्ष उर्मिला कुमारी ने बताया कि डॉ राजेंद्र प्रसाद काफी सादा जीवन जीते थे और सनातन में आस्था रखने वाले व्यक्ति थे. मकान में प्रवेश करते ही फोटो फ्रेम है जिस पर लिखा हुआ है "हारिए न हिम्मत बिसरिए ना हरी को नाम, जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिए". यह उनके सादगी और सनातन के विचार को बताता है.

RAJENDRA PRASAD
राजेंद्र प्रसाद का जूता (ETV Bharat)

"यहां एक कमरे में उनकी पूरी कुंडली, उन्हें सर्वपल्ली राधाकृष्णन के हाथों प्राप्त हुआ 'भारत रत्न' सम्मान, उनके द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली वस्तु और वस्त्र पूरी सुरक्षा के साथ संग्रहीत हैं. यहां विभिन्न देशों द्वारा उन्हें मिले उपहार और विभिन्न देशों की यात्राओं और देश के अन्य जगहों की यात्राओं के 64 फोटो एल्बम हैं. सभी फोटो एल्बम अलमीरा में लॉक है. दूर से यह फोटो एल्बम लगते हैं कि कोई पुस्तक है लेकिन इसमें इतिहास की कई तस्वीरें हैं."- उर्मिला कुमारी, अध्यक्ष, राजेंद्र स्मृति संग्रहालय

अंतिम समय तक प्रतिदिन चरखा पर काटते थे सूत: उर्मिला कुमारी ने बताया कि इसके अलावा उनके कमरे में उनके बिस्तर के ठीक नीचे चरण पादुका शीशे के फ्रेम में रखी हुई है. जीवन के अंतिम समय में भी वह वह चरखा चलाते थे और सूत काटकर कपड़ा तैयार करते थे. बिस्तर के पास में ही उनका चरखा जस का तस रखा हुआ है. मई 1955 में डॉ राजेंद्र प्रसाद ने अपनी पोती की शादी में कन्यादान के लिए खुद से सूत काटकर साड़ी तैयार की थी.

RAJENDRA PRASAD
वह चरखा जिसे चलाते थे राजेंद्र प्रसाद (ETV Bharat)

छोटा ऑक्सीजन सिलेंडर भी संग्रहालय में: उर्मिला कुमारी ने बताया कि डॉ राजेंद्र प्रसाद को दमा था और इसके लिए ऑक्सीजन सिलेंडर का उपयोग करते थे तो वह छोटा ऑक्सीजन सिलेंडर भी संग्रहित है. डॉ राजेंद्र प्रसाद प्रतिदिन सुबह में प्रार्थना सभा किया करते थे और वह स्थान भी आज सजा कर ज्यों कि त्यों रखी हुई है. इस संग्रहालय में दीवारों पर डॉ राजेंद्र प्रसाद की कई तस्वीर टंगी हुई है जो इतिहास की विभिन्न घटनाओं की स्मरण कराती है. वह हमेशा अपने साथ गीता पुस्तक रखते थे और यह गीता भी संग्रहित रखी हुई है.

राष्ट्रपति रहते ठुकरा दिया भारत रत्न: डॉ राजेंद्र प्रसाद के प्रपौत्र मनीष सिन्हा बताते हैं कि डॉ राजेंद्र प्रसाद की विद्वता ऐसी थी स्वतंत्र भारत के लिए संविधान तैयार करने की बारी आई तो संविधान सभा का उन्हें अध्यक्ष बनाया गया. उनके राष्ट्रपति रहते कई बार प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से उन्हें भारत रत्न सम्मान देने की पेशकश हुई लेकिन उन्होंने ठुकरा दिया. ऐसा इसलिए क्योंकि यह सम्मान राष्ट्रपति के हाथों ही दिया जाता है. नैतिकता का हवाला देते हुए उन्होंने खुद से भारत रत्न सम्मान लेना स्वीकार नहीं किया.

RAJENDRA PRASAD
राजेंद्र प्रसाद को मिला भारत रत्न (ETV Bharat)

त्यागपत्र के बाद लिया भारत रत्न: राष्ट्रपति पद से त्यागपत्र देने के बाद ही उन्होंने भारत रत्न सम्मान लिया और यह सम्मान तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने दिया. डॉ राजेंद्र प्रसाद को स्वतंत्रता से पहले देश के अंतरिम सरकार में कृषि एवं खाद्य उपभोक्ता मंत्री बनने का गौरव भी हासिल है. आज उनकी जयंती के मौके पर देश ऐसे महान विभूति को नमन कर रहा है.

ये भी पढ़ें:

जीरादेई स्टेशन का बदलेगा नाम ! देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के नाम पर रखने की तैयारी

डॉ राजेंद्र प्रसाद की 139वीं जयंती, अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा उनका पैतृक गांव, सौंदर्यीकरण के नाम पर लूट

निधन के 60 साल बाद भी इस बैंक में सक्रिय है भारत के प्रथम राष्ट्रपति का अकाउंट, जानें कितनी जमा है रकम?

प्रथम राष्ट्रपति के जन्मदिवस 3 दिसम्बर को 'राष्ट्रीय मेधा दिवस घोषित किया जाए, रवि शंकर प्रसाद ने की मांग

CONSTITUTION DAY 2024 : लागू होने से पहले संविधान की मूल प्रति लाई गई थी पटना, विशेष विमान से खुद राजेंद्र बाबू को आना पड़ा था

छपरा/पटना : भारतीय संविधान सभा के अध्यक्ष और देश के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद की आज यानी 3 दिसंबर को 140वीं जयंती है. राजेंद्र बाबू का जन्म तत्कालीन सारण जिले वर्तमान में सिवान के जीरादेई में महादेव सहाय और कमलेश्वरी देवी के घर 1884 में कायस्थ परिवार में हुआ था.

बचपन से ही होनहार थे राजेंद्र प्रसाद: राजेंद्र प्रसाद बचपन से ही पढ़ाई लिखाई में होनहार थे. डॉ राजेंद्र प्रसाद पांच भाई बहनों में सबसे छोटे थे. उनसे बड़े एक भाई महेंद्र प्रसाद और तीन बहने थीं. इसीलिए वे सबके दुलारे थे. बचपन में ही मां की मृत्यु के बाद उनकी बड़ी बहन भगवती देवी ने उनका पालन पोषण किया था. उनकी शादी 12 वर्ष अल्पायु में ही राजवंशी देवी से हो गई थी.

देखें छपरा से यह रिपोर्ट. (ETV Bharat)

शिक्षक से करियर की शुरुआत: उनकी शुरुआती शिक्षा छपरा के जिला स्कूल में हुई थी. उसके बाद वह उच्च शिक्षा के लिए कोलकाता चले गए. वे प्रेसिडेंसी कॉलेज, पटना और इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भी अध्ययनरत रहे. उन्होंने अपना करियर एक शिक्षक के रूप में शुरू किया. उसके बाद उन्होंने वकालत भी की.

छपरा जिला स्कूल से प्रारंभिक पढ़ाई: देशरत्न डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को फारसी हिंदी और गणित सीखने के लिए 5 साल की उम्र में एक मौलवी के संरक्षण में रखा गया था. बाद में उन्हें छपरा जिला स्कूल में स्थानांतरित कर दिया गया, जहां वे अपने बड़े भाई महेंद्र प्रसाद के साथ शिक्षा ग्रहण करते थे. उसके बाद टी के घोष एकेडमी पटना में उन्होंने अध्ययन किया.

ईटीवी भारत GFX.
ईटीवी भारत GFX. (Etv Bharat)

1911 में आधिकारिक तौर पर कांग्रेस में शामिल: देश रत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद 1906 में वार्षिक सत्र के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े, जिसमें उन्होंने एक स्वयं सेवक के रूप में भाग लिया. उसके बाद 1911 में जब कोलकाता में फिर वार्षिक सत्र आयोजित किया गया तो आधिकारिक तौर पर वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए. 8 अगस्त 1942 को जब भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित किया गया.

3 साल जेल में रहे कैद: उसके बाद भारतीय नेताओं की गिरफ्तारी हुई तो राजेंद्र प्रसाद को गिरफ्तार कर लिया गया. पटना के सदाकत आश्रम से बांकीपुर सेंट्रल जेल भेज दिया गया. लगभग 3 साल तक वह जेल में बंद रहे. 2 सितंबर 1946 को जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में 12 मनोनीत मंत्रियों के अंतरिम सरकार के गठन के बाद उन्हें खाद और कृषि विभाग में नियुक्त किया गया. 11 सितंबर 1946 को हुए संविधान सभा के अध्यक्ष चुने गए. 26 जनवरी 1950 को स्वतंत्र भारत के संविधान को मंजूरी दी गई. उसके बाद राजेंद्र प्रसाद देश के पहले राष्ट्रपति चुने गए.

ईटीवी भारत GFX.
ईटीवी भारत GFX. (Etv Bharat)

डॉ राजेंद्र बाबू के तीन पुत्र: 1952 और 1957 में दो बार देश के राष्ट्रपति चुने गए. भारत की आजादी के 12 वर्षों के बाद 14 मई 1962 में उन्होंने राष्ट्रपति से इस्तीफा दे दिया और इस्तीफा देने के बाद पटना लौट आए. डॉ राजेंद्र बाबू के तीन पुत्र जिसमें मृत्युंजय प्रसाद, धनंजय प्रसाद और जनार्दन प्रसाद हमेशा लाइमलाइट से दूर रहे. मृत्युंजय प्रसाद ने तो बाकायदा चुनाव लड़कर जीत भी दर्ज की थी, लेकिन उसके बाद भी वह राजनीतिक में नहीं रहे.

स्कूल के छात्र खुद को महसूस करते हैं गौरवान्वित: डॉ राजेंद्र बाबू पढ़ने में बचपन से ही मेधावी थे. एक बार परीक्षा में एग्जामिनर ने लिखा था, एग्जामिनर से बेहतर एग्जामिनी है. देश रत्न डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद छपरा के जिस स्कूल में पढ़ा करते थे. वहां के शिक्षक और छात्र अपने आप को काफी गौरवान्वित महसूस करते हैं कि वह जिस स्कूल में पढ़ते हैं, उसी में देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र बाबू भी पढ़ा करते थे. वहीं अगर स्कूल की दशा और दिशा की बात की जाए तो स्कूल का नवनिर्माण पूरे जोर शोर से हो रहा है.

RAJENDRA PRASAD
राजेंद्र प्रसाद की फाइल फोटो (ETV Bharat)

"देश के पहले राष्ट्रपति ने यहां से पढ़ाई की थी. हमें बहुत गर्व होता है कि हम यहीं से पढ़ाई कर रहे हैं."- तारुषी, छात्रा

"इस स्कूल में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद पढ़े थे. यहां की पढ़ाई काफी अच्छी है. मैं कॉमर्स की छात्रा हूं. रोज स्कूल आती हूं."- नंदिनी गुप्ता, छात्रा

पटना में बीता अंतिम समय: देश के प्रथम राष्ट्रपति भारत रत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद की विद्वता जितनी लोकप्रिय है, उतनी ही उनकी सादगी भी लोकप्रिय है. उनका व्यक्तित्व ऐसा रहा है कि आज भी उनकी सादगी भरी व्यक्तित्व को आदर्श पुरुष के लिये मिसाल दी जाती है. सादा जीवन उच्च विचार के पर्याय थे. सिवान के जीरादेई गांव में जन्मे डॉ राजेंद्र प्रसाद का अंतिम समय पटना में बीता. पटना में अंतिम समय में जहां वह रहते थे, उस जगह को देखने मात्र से ही उनके सादगी भरे व्यक्तित्व का चेहरा झलक पड़ता है.

देखें पटना से यह रिपोर्ट. (ETV Bharat)

खपरैल के मकान में रहते थे पूर्व राष्ट्रपति: डॉ राजेंद्र प्रसाद को भारतीय इतिहास में सबसे लंबे समय तक राष्ट्रपति बने रहने का गौरव हासिल है. 26 जनवरी 1950 को राष्ट्रपति मनोनीत किए गए, फिर 1952 में हुए राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल की. इसके बाद 1957 में भी चुनाव जीत कर राष्ट्रपति बने. 1962 में उन्होंने संन्यास की घोषणा की. 13 मई 1962 को राष्ट्रपति का कार्यकाल पूरा करने के बाद बिहार लौट आए. बिहार लौट पर वह खपरैल के मकान में रहने लगे. आज यहां बिहार विद्यापीठ है और यह मकान संग्रहालय के रूप में अवस्थित है.

जेपी रह गए थे भौंचक्के: डॉ राजेंद्र प्रसाद के प्रपौत्र मनीष सिन्हा बताते हैं कि डॉ राजेंद्र प्रसाद जब पटना रहने लगे. लोकनायक जेपी को पता चला कि भारत देश के पूर्व राष्ट्रपति अब खपरैल के मकान में रह रहे हैं तो वह भौंचक्के हो गये थे. इस मसले पर उन्होंने समाज की बुद्धिजीवियों से चर्चा की और फिर समाज ने चंदा इकट्ठा कर राजेंद्र प्रसाद के लिए खपरैल के मकान के चंद दूरी पर ही छत का मकान बनवा दिया.

"फिर डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद इसी मकान में रहने लगे और जीवन की अंतिम सांस भी उन्होंने लोगों द्वारा बनवाए गए मकान में ही ली. आज खपरैल का मकान राजेंद्र संग्रहालय -1 और छत का मकान राजेंद्र संग्रहालय 2 के नाम से जाना जाता है."- मनीष सिन्हा, डॉ राजेंद्र प्रसाद के प्रपौत्र

RAJENDRA PRASAD
पटना के इसी घर में रहते थे राजेंद्र बाबू (ETV Bharat)

इस कारण से तबीयत रहने लगी खराब: खपरैल के मकान वाले संग्रहालय के केयरटेकर रजनीश कुमार ने बताया कि यह डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का अपना मकान था. राष्ट्रपति बनने के पहले पटना के इसी मकान में वह रहते थे. उस समय का उनका स्टैंड फैन आज भी हवा देता है और अब तक खराब नहीं हुआ है. खपरैल का मकान बरसात के समय में चूने लगा था. राजेंद्र प्रसाद की तबीयत खराब रहने लगी.

"उनका चरखा और उनकी झूलने वाली कुर्सी जस की तस संभाल कर रखी गई है. उन्होंने अपने पुत्रों के लिए जो पत्र लिखे हैं उसकी प्रति फ्रेम करके रखी हुई है. मकान में आंदोलन की तैयारी के लिए लोग आते थे तो उस समय की भी तस्वीरें हैं. राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति पद छोड़ने के बाद यही रहने आ गए थे. लोगों ने उनके लिए पास में दूसरा नया मकान बनवाया जिसमें आज राजेंद्र स्मृति संग्रहालय है."- रजनीश कुमार,संग्रहालय के केयरटेकर

RAJENDRA PRASAD
पटना में बीता अंतिम समय (ETV Bharat)

सनातन में आस्था रखते थे डॉ राजेंद्र प्रसाद: राजेंद्र स्मृति संग्रहालय की अध्यक्ष उर्मिला कुमारी ने बताया कि डॉ राजेंद्र प्रसाद काफी सादा जीवन जीते थे और सनातन में आस्था रखने वाले व्यक्ति थे. मकान में प्रवेश करते ही फोटो फ्रेम है जिस पर लिखा हुआ है "हारिए न हिम्मत बिसरिए ना हरी को नाम, जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिए". यह उनके सादगी और सनातन के विचार को बताता है.

RAJENDRA PRASAD
राजेंद्र प्रसाद का जूता (ETV Bharat)

"यहां एक कमरे में उनकी पूरी कुंडली, उन्हें सर्वपल्ली राधाकृष्णन के हाथों प्राप्त हुआ 'भारत रत्न' सम्मान, उनके द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली वस्तु और वस्त्र पूरी सुरक्षा के साथ संग्रहीत हैं. यहां विभिन्न देशों द्वारा उन्हें मिले उपहार और विभिन्न देशों की यात्राओं और देश के अन्य जगहों की यात्राओं के 64 फोटो एल्बम हैं. सभी फोटो एल्बम अलमीरा में लॉक है. दूर से यह फोटो एल्बम लगते हैं कि कोई पुस्तक है लेकिन इसमें इतिहास की कई तस्वीरें हैं."- उर्मिला कुमारी, अध्यक्ष, राजेंद्र स्मृति संग्रहालय

अंतिम समय तक प्रतिदिन चरखा पर काटते थे सूत: उर्मिला कुमारी ने बताया कि इसके अलावा उनके कमरे में उनके बिस्तर के ठीक नीचे चरण पादुका शीशे के फ्रेम में रखी हुई है. जीवन के अंतिम समय में भी वह वह चरखा चलाते थे और सूत काटकर कपड़ा तैयार करते थे. बिस्तर के पास में ही उनका चरखा जस का तस रखा हुआ है. मई 1955 में डॉ राजेंद्र प्रसाद ने अपनी पोती की शादी में कन्यादान के लिए खुद से सूत काटकर साड़ी तैयार की थी.

RAJENDRA PRASAD
वह चरखा जिसे चलाते थे राजेंद्र प्रसाद (ETV Bharat)

छोटा ऑक्सीजन सिलेंडर भी संग्रहालय में: उर्मिला कुमारी ने बताया कि डॉ राजेंद्र प्रसाद को दमा था और इसके लिए ऑक्सीजन सिलेंडर का उपयोग करते थे तो वह छोटा ऑक्सीजन सिलेंडर भी संग्रहित है. डॉ राजेंद्र प्रसाद प्रतिदिन सुबह में प्रार्थना सभा किया करते थे और वह स्थान भी आज सजा कर ज्यों कि त्यों रखी हुई है. इस संग्रहालय में दीवारों पर डॉ राजेंद्र प्रसाद की कई तस्वीर टंगी हुई है जो इतिहास की विभिन्न घटनाओं की स्मरण कराती है. वह हमेशा अपने साथ गीता पुस्तक रखते थे और यह गीता भी संग्रहित रखी हुई है.

राष्ट्रपति रहते ठुकरा दिया भारत रत्न: डॉ राजेंद्र प्रसाद के प्रपौत्र मनीष सिन्हा बताते हैं कि डॉ राजेंद्र प्रसाद की विद्वता ऐसी थी स्वतंत्र भारत के लिए संविधान तैयार करने की बारी आई तो संविधान सभा का उन्हें अध्यक्ष बनाया गया. उनके राष्ट्रपति रहते कई बार प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से उन्हें भारत रत्न सम्मान देने की पेशकश हुई लेकिन उन्होंने ठुकरा दिया. ऐसा इसलिए क्योंकि यह सम्मान राष्ट्रपति के हाथों ही दिया जाता है. नैतिकता का हवाला देते हुए उन्होंने खुद से भारत रत्न सम्मान लेना स्वीकार नहीं किया.

RAJENDRA PRASAD
राजेंद्र प्रसाद को मिला भारत रत्न (ETV Bharat)

त्यागपत्र के बाद लिया भारत रत्न: राष्ट्रपति पद से त्यागपत्र देने के बाद ही उन्होंने भारत रत्न सम्मान लिया और यह सम्मान तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने दिया. डॉ राजेंद्र प्रसाद को स्वतंत्रता से पहले देश के अंतरिम सरकार में कृषि एवं खाद्य उपभोक्ता मंत्री बनने का गौरव भी हासिल है. आज उनकी जयंती के मौके पर देश ऐसे महान विभूति को नमन कर रहा है.

ये भी पढ़ें:

जीरादेई स्टेशन का बदलेगा नाम ! देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के नाम पर रखने की तैयारी

डॉ राजेंद्र प्रसाद की 139वीं जयंती, अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा उनका पैतृक गांव, सौंदर्यीकरण के नाम पर लूट

निधन के 60 साल बाद भी इस बैंक में सक्रिय है भारत के प्रथम राष्ट्रपति का अकाउंट, जानें कितनी जमा है रकम?

प्रथम राष्ट्रपति के जन्मदिवस 3 दिसम्बर को 'राष्ट्रीय मेधा दिवस घोषित किया जाए, रवि शंकर प्रसाद ने की मांग

CONSTITUTION DAY 2024 : लागू होने से पहले संविधान की मूल प्रति लाई गई थी पटना, विशेष विमान से खुद राजेंद्र बाबू को आना पड़ा था

Last Updated : 16 hours ago
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.