जयपुरः राजस्थान हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा कि धार्मिक भावनाओं के आधार पर वन भूमि पर अतिक्रमण की अनुमति नहीं दी जा सकती. इसके साथ ही अदालत ने श्री शांतिनाथ दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र, सुदर्शन तीर्थ पर पांच लाख रुपए का हर्जाना लगाया है. इसके साथ ही अदालत ने तीर्थ की ओर से दायर याचिका को खारिज कर दिया है. अदालत ने कहा कि हर्जाना राशि में से दो लाख रुपए मामले में जनहित याचिका दायर करने वाले व्यक्ति शंकर लाल को दी जाए और शेष राशि राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण में जमा कराई जाए. जस्टिस पंकज भंडारी और जस्टिस प्रवीर भटनागर की खंडपीठ ने यह आदेश श्री शांतिनाथ दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र, सुदर्शन तीर्थ की याचिका और शंकर लाल की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए.
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि जब संबंधित पहाड़ याचिकाकर्ता से संबंधित नहीं है तो उनकी ओर से किस अधिकार से पहाड़ खोदा गया. याचिकाकर्ता ने आरंभ में राजस्व रिकॉर्ड में गैर मुमकिन पहाड़ के रूप में दर्ज इस भूमि को आवंटित करने के लिए विभाग में आवेदन किया था, जिससे जाहिर है कि उन्हें इस बात की जानकारी थी कि यह गैर मुमकिन पहाड़ है. इसके अलावा श्री शांतिनाथ दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र, सुदर्शन तीर्थ की याचिका इस आधार पर भी खारिज की जानी चाहिए कि उन्होंने अपनी याचिका में इसका खुलासा नहीं किया कि मामले में अतिक्रमण को लेकर जनहित याचिका लंबित है.
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श्री शांतिनाथ दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र, सुदर्शन तीर्थ की ओर से याचिका दायर कर कहा गया कि टोंक के दूनी में पहाड़ पर महावीर स्वामी और पार्श्वनाथ की मूर्तियां जमीन के नीचे से निकली हैं. जैन शास्त्रों के अनुसार यह सैकड़ों साल पुरानी है. ऐसे में इसे याचिकाकर्ता को दी जाए. वहीं, शंकर लाल की ओर से दायर जनहित याचिका में कहा गया कि इस धार्मिक स्थल ने वन विभाग की इस जमीन पर कब्जा कर रखा है. राजस्व रिकॉर्ड में यह गैर मुमकिन पहाड़ के रूप में दर्ज है. वन विभाग भी मामले में एफआईआर दर्ज करा चुका है और पेनल्टी भी लगा चुका है. सभी पक्षों को सुनने के बाद अदालत याचिका को खारिज कर याचिकाकर्ता पर पांच लाख रुपए का हर्जाना लगाया है.