जयपुर: राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिए हैं कि वह लैब टेक्नीशियन भर्ती-2023 में याचिकाकर्ता अभ्यर्थी के अनुभव प्रमाण पत्र को स्वीकार कर उसे नियुक्ति प्रदान करे. जस्टिस समीर जैन की एकलपीठ ने यह आदेश अशोक कुमार यादव व अन्य की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए. वहीं, एक दूसरे मामले में हाईकोर्ट ने दिव्यांग से डेढ़ साल तक काम लेकर वेतन नहीं देने पर जवाब मांगा है.
याचिका में अधिवक्ता रामप्रताप सैनी ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता ने लैब टेक्नीशियन भर्ती में भाग लिया था. विभाग ने चयन का मापदंड शैक्षणिक योग्यता और बोनस अंक के आधार पर मेरिट में आना तय किया था. याचिका में कहा गया कि राज्य सरकार ने उसका अनुभव प्रमाण पत्र इस आधार पर स्वीकार नहीं किया कि वह आरपीएमसी में हुए पंजीकरण से पहले का है.
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याचिकाकर्ता की ओर से अदालत को बताया गया कि उसने लैब टेक्नीशियन का संबंधित कोर्स करने के बाद राजस्थान पैरा मेडिकल कौंसिल में पंजीकरण करना चाहा था, लेकिन उसका पंजीकरण नहीं हो पाया. इस दौरान उसने संविदा पर लैब टेक्नीशियन के तौर पर काम किया और संबंधित अधिकारी ने उसे अनुभव प्रमाण पत्र भी दे दिया. दूसरी ओर राजस्थान पैरा मेडिकल कौंसिल ने अनुभव प्रमाण पत्र मिलने के बाद उसका पंजीकरण भी कर लिया. ऐसे में उसके अनुभव प्रमाण पत्र को भर्ती के लिए स्वीकार कर उसे बोनस अंक का लाभ देते हुए नियुक्ति दी जाए. जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने याचिकाकर्ता को उसके अनुभव प्रमाण पत्र के आधार पर नियुक्ति देने को कहा है.
दिव्यांग से डेढ़ साल तक काम लेकर वेतन नहीं देने पर मांगा जवाब : राजस्थान हाईकोर्ट ने दिव्यांग संविदा कर्मी से करीब डेढ़ साल तक काम करवाकर उसे वेतन नहीं देने और बाद में सेवा से हटाने पर पर प्रमुख चिकित्सा सचिव, स्वास्थ्य निदेशक, सीएमएचओ जयपुर और अमर एसोसिएट सहित अन्य से जवाब-तलब किया है. जस्टिस सुदेश बंसल ने यह आदेश प्रवेश कुमार बुनकर की याचिका पर प्रारंभिक सुनवाई करते हुए दिए.
याचिका में अधिवक्ता बाबूलाल बैरवा ने अदालत को बताया कि चिकित्सा विभाग ने प्लेसमेंट एजेंसी अमर एसोसिएट के जरिए संविदाकर्मी लेने का करार किया था. याचिकाकर्ता दिव्यांग ने 10 जनवरी, 2023 को वार्ड बॉय के लिए आवेदन किया. वहीं, उसे 13 अप्रैल, 2023 को गोविंदगढ़ पंचायत समिति के इटावा भोपजी स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में नियुक्ति दी गई. याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ता से सितंबर, 2024 तक काम लिया गया और बाद में उसकी सेवा समाप्त कर दी गई.
याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि इस अवधि में किए गए काम के बदले न तो प्लेसमेंट एजेंसी ने उसे वेतन के तौर पर कोई राशि दी और ना ही विभाग ने उसे वेतन दिया. इस पर याचिकाकर्ता की ओर से प्लेसमेंट एजेंसी और स्वास्थ्य विभाग को कई बार पत्र लिखकर भी वेतन देने की मांग की, लेकिन उसके पत्रों पर कोई भी कार्रवाई नहीं की गई. याचिका में कहा गया कि बिना वेतन दिए सेवाएं लेना बेगार के समान है. ऐसे में उसे बकाया वेतन दिलाया जाए, जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने संबंधित अधिकारियों से जवाब-तलब किया है.