जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने निजी स्कूलों की ओर से फीस एक्ट, 2016 के प्रावधानों की पालना नहीं करने से जुडे़ मामले में गंभीर मौखिक टिप्पणियां की है. अदालत ने प्रमुख शिक्षा सचिव कृष्ण कुणाल की मौजूदगी में कहा कि आज स्कूल व्यापार बन गया है. ऐसे में इनके खातों की जांच होना बहुत जरूरी है. शिक्षा विभाग चाहे तो इसके लिए आयकर आयुक्त की भी मदद ले सकता है. अदालत ने कहा कि स्कूलों को टैक्स में छूट मिल रही है तो उनके खातों की भी जांच होनी चाहिए. जस्टिस समीर जैन ने यह टिप्पणी जितेन्द्र जैन व अन्य की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान की.
सुनवाई के दौरान विभाग की ओर से पेश रिपोर्ट को नकारते हुए अदालत ने कहा कि यह सतही तौर पर तैयार की गई है. अदालत ने कहा कि कुछ दिनों पहले स्कूलों में बम होने की सूचना मिली थी, लेकिन स्कूलों के पास इस तरह की परिस्थितियों से निपटने का कोई वैकल्पिक उपाय नहीं है. स्कूलों में स्टेशनरी की दुकान खोलकर वहां से सामान खरीदने के लिए अभिभावकों को मजबूर किया जाता है, लेकिन एक भी स्कूल में डिस्पेंसरी की सुविधा नहीं है. अदालत ने स्कूल संचालकों की ओर से अभिभावकों को किताबें और यूनिफॉर्म के लिए दुकान विशेष से खरीदारी करने के लिए पाबंद करने पर भी नाराजगी जताई.
अदालत ने कहा कि हर स्कूल में अभिभावकों को उनके यहां से किताबें लेने के लिए मजबूर किया जाता है और संचालकों ने स्कूल में ही दुकान खोल ली है. अदालत ने कहा कि यह स्कूल का काम नहीं है कि वह स्कूल यूनिफॉर्म के लिए दुकान चिह्नित करे. जब एनसीआरटी के सिलेबस के अनुसार किताबें तय हैं तो अलग से किताबें क्यों दी जा रही हैं?. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से स्कूलों में सुरक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर सवाल उठाया गया. इस पर अदालत ने कहा कि इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन है, लेकिन उसकी पालना नहीं की जा रही है. याचिका में कहा गया है कि विद्याश्रम सहित अन्य निजी स्कूलों ने राजस्थान फीस अधिनियम, 2016 और नियम 2017 के प्रावधानों के विपरीत जाकर फीस में बढ़ोतरी की है. ऐसे में स्कूलों को पाबंद किया जाए कि वह कानून के अनुसार ही फीस वसूली करें.