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आपसी सहमति से तलाक मामले में हाईकोर्ट का आदेश, 6 माह की अवधि पूरी होने से पूर्व दी जाए तलाक डिक्री

राजस्थान हाईकोर्ट ने आपसी सहमति से तलाक के मामले में आदेश दिया है कि 6 माह की अवधि पूरी होने से पूर्व तलाक की डिक्री दी जाए.

HC on divorce decree
हाईकोर्ट का आदेश
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Jan 20, 2024, 10:57 PM IST

जोधपुर. राजस्थान हाईकोर्ट न्यायाधीश अरूण भंसाली एवं योगेंन्द्र कुमार पुरोहित की खंडपीठ ने आपसी सहमति से तलाक की याचिका में 6 माह की अवधि समाप्त होने के पूर्व ही विधिनुसार तलाक की डिक्री जारी करने के आदेश पारित किए हैं. प्रार्थीगण पति-पत्नि की ओर से पारिवारिक न्यायालय संख्या 1 जोधपुर के समक्ष आपसी सहमति से तलाक के लिए याचिका पेश की गई.

याचिका पेश करने के पश्चात प्रार्थीगण की ओर से एक प्रार्थना-पत्र इस आशय का प्रस्तुत किया गया कि उनके मध्य सुलह की कोई संभावना नहीं है. इसलिए 6 माह की शि​थिलता अवधि की बाध्यता को समाप्त करते हुए तलाक की डिक्री जारी की जाए. पारिवारिक न्यायालय ने प्रार्थीगण के प्रार्थना पत्र को इस आधार पर खारिज कर दिया कि अभी भी प्रार्थीगण के मध्य सुलह की संभावना है. इसलिए उन्हें शांतिपूर्वक सोचने का अवसर दिया जाना आवश्यक है.

पढ़ें: Jaipur Court News : विवाहोत्तर संबंध के आधार पर तलाक याचिका तो तीसरे का नाम भी याचिका में जरूरी

इस आदेश के खिलाफ पत्नि की ओर से हाईकोर्ट में अधिवक्ता हस्तीमल सारस्वत ने एक अपील पेश की गई. जिसमें बताया गया कि प्रार्थीगण का विवाह 23 नवम्बर, 2010 को सम्पन्न हुआ था. लेकिन वैचारिक मतभेद होने के कारण वे 1 मार्च, 2011 से अलग-अलग निवास कर रहे हैं. उनके मध्य सुलह होने तथा भविष्य में उनके साथ-साथ रहने की कोई संभावना नहीं है. इसलिए 6 माह की शि​थिलता अवधि की बाध्यता को समाप्त किया जाए. सुनवाई के पश्चात खंडपीठ ने यह माना कि प्रार्थीगण के मध्य सुलह की कोई संभावना प्रतीत नहीं होती है तथा अपील के तथ्य न्याय निर्णयों में प्रतिपादित सिद्धांतों के अंतर्गत आते हैं. ऐसे में अपील को स्वीकार करते हुए तलाक की डिक्री पारित करने का आदेश दिया गया.

जोधपुर. राजस्थान हाईकोर्ट न्यायाधीश अरूण भंसाली एवं योगेंन्द्र कुमार पुरोहित की खंडपीठ ने आपसी सहमति से तलाक की याचिका में 6 माह की अवधि समाप्त होने के पूर्व ही विधिनुसार तलाक की डिक्री जारी करने के आदेश पारित किए हैं. प्रार्थीगण पति-पत्नि की ओर से पारिवारिक न्यायालय संख्या 1 जोधपुर के समक्ष आपसी सहमति से तलाक के लिए याचिका पेश की गई.

याचिका पेश करने के पश्चात प्रार्थीगण की ओर से एक प्रार्थना-पत्र इस आशय का प्रस्तुत किया गया कि उनके मध्य सुलह की कोई संभावना नहीं है. इसलिए 6 माह की शि​थिलता अवधि की बाध्यता को समाप्त करते हुए तलाक की डिक्री जारी की जाए. पारिवारिक न्यायालय ने प्रार्थीगण के प्रार्थना पत्र को इस आधार पर खारिज कर दिया कि अभी भी प्रार्थीगण के मध्य सुलह की संभावना है. इसलिए उन्हें शांतिपूर्वक सोचने का अवसर दिया जाना आवश्यक है.

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इस आदेश के खिलाफ पत्नि की ओर से हाईकोर्ट में अधिवक्ता हस्तीमल सारस्वत ने एक अपील पेश की गई. जिसमें बताया गया कि प्रार्थीगण का विवाह 23 नवम्बर, 2010 को सम्पन्न हुआ था. लेकिन वैचारिक मतभेद होने के कारण वे 1 मार्च, 2011 से अलग-अलग निवास कर रहे हैं. उनके मध्य सुलह होने तथा भविष्य में उनके साथ-साथ रहने की कोई संभावना नहीं है. इसलिए 6 माह की शि​थिलता अवधि की बाध्यता को समाप्त किया जाए. सुनवाई के पश्चात खंडपीठ ने यह माना कि प्रार्थीगण के मध्य सुलह की कोई संभावना प्रतीत नहीं होती है तथा अपील के तथ्य न्याय निर्णयों में प्रतिपादित सिद्धांतों के अंतर्गत आते हैं. ऐसे में अपील को स्वीकार करते हुए तलाक की डिक्री पारित करने का आदेश दिया गया.

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