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वंचित बच्चों के कल्याण के लिए क्या कदम उठाए- हाईकोर्ट - Rajasthan High Court

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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : 3 hours ago

राजस्थान हाईकोर्ट ने एक मामले में प्रसंज्ञान लेते हुए मुख्य सचिव समेत अन्य अधिकारियों से पूछा है कि वंचित बच्चों के कल्याण के लिए क्या कदम उठाए हैं?.

COURT HAS ASKED CHIEF SECRETARY,  WELFARE OF DEPRIVED CHILDREN
राजस्थान हाईकोर्ट ने दिए आदेश. (ETV Bharat gfx)

जयपुरः राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य के मुख्य सचिव, केंद्रीय बाल विकास कल्याण मंत्रालय और राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को रिपोर्ट पेश करके बताने को कहा है कि बच्चों को सभी प्रकार के दुर्व्यवहार से बचाने व सड़क किनारे रहने वाले बच्चों को आश्रय गृह, शिक्षा एवं अन्य सुविधाएं प्रदान करने के लिए क्या प्रभावी कदम उठाए. इसके अलावा बच्चों के अधिकारों व संरक्षण के लिए बनाए कानून व नीतियों के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए क्या पहल की है?.

इसके साथ ही अदालत ने मामले में राज्य के सीएस, प्रमुख बाल अधिकारिता सचिव, राजस्थान बाल संरक्षण आयोग के चेयरमैन, केन्द्र सरकार व रालसा के सदस्य सचिव से भी जवाब देने के लिए कहा है. जस्टिस अनूप कुमार ढंड ने यह आदेश फुटपाथ पर अपनी बेटियों के साथ रहने वाली विधवा महिला के मामले में प्रसंज्ञान लेते हुए दिया. इसके अलावा अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह तंबू में रहने वाले बच्चों व महिला की देखभाल व सुरक्षा पर भी ध्यान दे.

पढ़ेंः सालों तक किया जेल का निरीक्षण, लेकिन नहीं सुधरे हालात - Rajasthan High Court

अदालत ने कहा कि किसी भी बच्चे को भारत के संविधान के अनुसार दिए गए उनके मौलिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता. कोई भी बच्चा दुर्व्यवहार का शिकार नहीं हो, चाहे वह शारीरिक हो या भावनात्मक तौर रूप से हो. अदालत ने सीनियर एडवोकेट वीरेंद्र लोढ़ा, एडवोकेट सुनील समदरिया व सोनल सिंह, एएजी मनोज शर्मा, एएसजी आरडी रस्तोगी को मामले में सहयोग करने के लिए कहा है. सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि राज्य सरकार के अनुसार, राजस्थान पहला राज्य है जिसके पास बाल अधिकार के मुद्दों के लिए अलग और स्वतंत्र विभाग है. कई बाल कानून और नीतियां होने के बावजूद यह कल्याणकारी राज्य, कानून की भावना के तहत अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में विफल रहा है. गौरतलब है कि अदालत के सामने आया था कि एक विधवा महिला ने अपनी दो बेटियों सहित चार बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए जिला बाल कल्याण समिति से गुहार लगाई थी. महिला ने कहा था कि वह बच्चों सहित सड़क पर तंबू में रहते हैं, लेकिन उसे बेटियों के साथ अनहोनी की चिंता सताती है, इसलिए चारों बच्चों को सरकार किसी गृह में रखवाए.

जयपुरः राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य के मुख्य सचिव, केंद्रीय बाल विकास कल्याण मंत्रालय और राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को रिपोर्ट पेश करके बताने को कहा है कि बच्चों को सभी प्रकार के दुर्व्यवहार से बचाने व सड़क किनारे रहने वाले बच्चों को आश्रय गृह, शिक्षा एवं अन्य सुविधाएं प्रदान करने के लिए क्या प्रभावी कदम उठाए. इसके अलावा बच्चों के अधिकारों व संरक्षण के लिए बनाए कानून व नीतियों के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए क्या पहल की है?.

इसके साथ ही अदालत ने मामले में राज्य के सीएस, प्रमुख बाल अधिकारिता सचिव, राजस्थान बाल संरक्षण आयोग के चेयरमैन, केन्द्र सरकार व रालसा के सदस्य सचिव से भी जवाब देने के लिए कहा है. जस्टिस अनूप कुमार ढंड ने यह आदेश फुटपाथ पर अपनी बेटियों के साथ रहने वाली विधवा महिला के मामले में प्रसंज्ञान लेते हुए दिया. इसके अलावा अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह तंबू में रहने वाले बच्चों व महिला की देखभाल व सुरक्षा पर भी ध्यान दे.

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अदालत ने कहा कि किसी भी बच्चे को भारत के संविधान के अनुसार दिए गए उनके मौलिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता. कोई भी बच्चा दुर्व्यवहार का शिकार नहीं हो, चाहे वह शारीरिक हो या भावनात्मक तौर रूप से हो. अदालत ने सीनियर एडवोकेट वीरेंद्र लोढ़ा, एडवोकेट सुनील समदरिया व सोनल सिंह, एएजी मनोज शर्मा, एएसजी आरडी रस्तोगी को मामले में सहयोग करने के लिए कहा है. सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि राज्य सरकार के अनुसार, राजस्थान पहला राज्य है जिसके पास बाल अधिकार के मुद्दों के लिए अलग और स्वतंत्र विभाग है. कई बाल कानून और नीतियां होने के बावजूद यह कल्याणकारी राज्य, कानून की भावना के तहत अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में विफल रहा है. गौरतलब है कि अदालत के सामने आया था कि एक विधवा महिला ने अपनी दो बेटियों सहित चार बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए जिला बाल कल्याण समिति से गुहार लगाई थी. महिला ने कहा था कि वह बच्चों सहित सड़क पर तंबू में रहते हैं, लेकिन उसे बेटियों के साथ अनहोनी की चिंता सताती है, इसलिए चारों बच्चों को सरकार किसी गृह में रखवाए.

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