जयपुरः राजस्थान हाईकोर्ट ने 28 साल पहले रिटायर हुए आरएएस अधिकारी की जीवनभर के लिए पेंशन रोकने के 24 साल पुराने आदेश को रद्द कर दिया है. अदालत ने कहा कि इस अवधि की उसे पचास फीसदी पेंशन दी जाए और अदालती आदेश के बाद वह पूरी पेंशन लेने का अधिकारी होगा. सीजे एमएम श्रीवास्तव और जस्टिस आशुतोष कुमार की खंडपीठ ने यह आदेश ब्रज मोहन सिंह बारेठ की अपील को स्वीकार करते हुए दिए.
अदालत ने यह दिया आदेशः अदालत ने अपने आदेश में कहा कि यदि यह मामला लंबे समय से लंबित नहीं होता तो प्रकरण को फिर से सक्षम अधिकारी के पास विचार करने के लिए भेजा जा सकता था. वहीं, 24 साल से पेंशन से वंचित 90 वर्षीय अपीलार्थी की प्रकरण को वापस भेजना न्याय हित में नहीं है. अदालत ने कहा कि किसी भी रिटायर कर्मचारी की पेंशन रोकने का आदेश तब तक नहीं दिया जा सकता, जब तक की यह साबित नहीं हो की उसने अपने सेवाकाल के दौरान गंभीर कदाचार या लापरवाही की है. मामले में सक्षम अधिकारी ने बिना स्पष्ट कारणों के केवल आरोपों के आधार पर पेंशन रोकने का फैसला लिया, जिसे कानून के अनुरूप नहीं कहा जा सकता.
यह है मामलाः अपील में अधिवक्ता त्रिभुवन नारायण सिंह ने बताया कि अपीलार्थी के सेवाकाल में रहने के दौरान उसे 30 मार्च, 1993 को चार्जशीट दी गई, जिसमें नौ आरोप लगाए गए. वहीं, मामले में जांच अधिकारी के रिपोर्ट देने से पहले याचिकाकर्ता 29 फरवरी, 1996 को रिटायर हो गया. इसके बाद जांच अधिकारी ने आरोप प्रमाणित मानते हुए जुलाई, 1996 में अपनी रिपोर्ट दे दी. इस दौरान उसे 1 मार्च, 1996 से अंतरिम पेंशन दी गई. याचिका में कहा गया कि अनुशासनात्मक अधिकारी ने नवंबर, 1997 को नोटिस देकर उसकी पूरी पेंशन पांच साल के लिए रोक दी. जिसका जवाब देने के बाद उसे 10 अप्रैल, 1999 को जीवनभर के लिए पूरी पेंशन रोकने का नोटिस दे दिया और 8 दिसंबर, 2000 को पेंशन रोकने के आदेश जारी कर दिए.
अपील में कहा गया कि राजस्थान सेवा नियम, 1951 के तहत गंभीर कदाचार, गंभीर लापरवाही या वित्तीय हानि के मामले में ही पेंशन रोकी जा सकती है, जबकि याचिकाकर्ता का मामला गंभीर श्रेणी में नहीं आता है. अपीलार्थी राजस्व अपील अधिकारी था. ऐसे में उसकी ओर से किसी मामले में दिए गए आदेश की अपील की जा सकती थी, लेकिन अपील ना कर अपीलार्थी के खिलाफ कार्रवाई करना गलत है. वहीं, राज्य सरकार की ओर से अधिवक्ता यश जोशी ने कहा कि अपीलार्थी पर नियमानुसार कार्रवाई की गई है और एकलपीठ ने विधि अनुसार उसकी याचिका को खारिज किया है. दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद खंडपीठ ने पेंशन रोकने का आदेश रद्द कर दिया है.