जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने करौली जिले के हिंडौन थाना इलाके में दुष्कर्म पीड़िता के 164 के बयान होने के दौरान प्रताड़ना और एससी-एसटी एक्ट के आरोप मामले में दर्ज एफआईआर में हिंडौन के तत्कालीन न्यायिक मजिस्ट्रेट के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई पर अंतरिम रोक लगा दी है. वहीं, मामले में राज्य सरकार, केन्द्रीय सूचना व प्रसारण मंत्रालय के सचिव, राज्य के सीएस, गृह सचिव, डीजीपी, एसपी करौली व पीडिता सहित अन्य को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है. इसके साथ ही अदालत ने मामले की सुनवाई 27 मई तय की है. जस्टिस अनिल कुमार उपमन ने यह आदेश आरजेएस एसोसिएशन की ओर से दायर दायर याचिका पर दिए.
अदालत ने कहा कि प्रेस को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है, लेकिन इस पर कुछ पाबंदियां भी हैं. इस प्रकरण की राष्ट्रीय स्तर पर रिपोर्टिंग हुई है, जिससे न्यायपालिका की छवि पर धक्का लगा है. इसलिए कोर्ट मामले में आंख बंद कर नहीं रह सकती है. इसलिए मीडिया से यह अपेक्षा की जाती है कि वह याचिका के निस्तारण तक इस मामले का सनसनीखेज तौर पर प्रकाशन नहीं करे, बल्कि जिम्मेदारी से रिपोर्टिंग की जाए. जिससे न्यायपालिका की छवि धूमिल ना हो.
एसोसिएशन की ओर से अधिवक्ता दीपक चौहान ने अदालत को बताया कि हिंडौन के तत्कालीन मजिस्ट्रेट के खिलाफ दर्ज एफआईआर अवैधानिक है. न्यायिक अधिकारी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से पहले संबंधित हाईकोर्ट के सीजे से मंजूरी लेना जरूरी होता है. इसके बावजूद इस मामले में पुलिस ने सीजे से अनुमति नहीं ली. इसके साथ ही प्रकरण में एससी-एसटी का मुकदमा भी नहीं बनता. इसलिए एफआईआर को रद्द किया जाए और न्यायपालिका की छवि को देखते हुए मीडिया रिपोर्टिंग पर रोक लगाई जाए.
इसके जवाब में राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि एसोसिएशन को इस मुद्दे पर आपराधिक याचिका पेश करने का अधिकार नहीं है. इसलिए याचिका को खारिज किया जाए. दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने संबंधित मजिस्ट्रेट के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई पर रोक लगाते हुए अधिकारियों से जवाब तलब किया है.
गौरतलब है कि नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता ने एफआईआर में आरोप लगाए हैं कि बयान दर्ज करने के दौरान संबंधित मजिस्ट्रेट ने चोट दिखाने की बात कहकर कपड़े खोलने के लिए कहा था.