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राजस्थान स्थापना दिवस : जानिए किन शर्तों के साथ राजस्थान में शामिल होने के लिए तैयार हुए थे महाराजा मानसिंह - Rajasthan Diwas - RAJASTHAN DIWAS

Rajasthan Foundation Day, शनिवार 30 मार्च को राजस्थान का 74वां स्थापना दिवस मनाया जा रहा है. इतिहास में आज के दिन राज्य की 22 रियासतों को मिलाकर राजस्थान के गठन की तस्वीर सामने आई थी. आज देश में क्षेत्रफल के लिहाज से राजस्थान सबसे बड़ा राज्य है. 30 मार्च 1949 को राजपूताना के गठन के साथ सात चरणों में राजस्थान का एकीकरण हुआ था. इतिहास में जयपुर के राजधानी बनने और पूर्व महाराजा मानसिंह के प्रथम राज प्रमुख बनने की पीछे की दिलचस्प कहानी भी छिपी हुई है. इतिहासकार जितेंद्र सिंह शेखावत से ईटीवी भारत ने इस मौके पर विशेष बातचीत की और इन पहलुओं को जानने की कोशिश की.

RAJASTHAN FOUNDATION DAY
राजस्थान स्थापना दिवस
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Mar 30, 2024, 11:19 AM IST

राजस्थान स्थापना दिवस

जयपुर. मौजूदा समय में दिखने वाले राजस्थान के इस स्वरूप के गठन की राह इतनी आसान नहीं रही थी. अलग-अलग रियासतों में बंटे राजपूताना को एक करना और सभी को उनकी शर्तों के मुताबिक एक मंच पर लाना, तब प्रथम उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल के लिए चुनौती था. कुछ इसी तरह का किस्सा जयपुर रियासत को राजस्थान में शामिल करने से जुड़ा हुआ है. तत्कालीन महाराजा मानसिंह शुरुआत में विलय की प्रक्रिया में शामिल नहीं हुए. दबाव बनने के साथ उन्होंने सरदार पटेल के सामने अपनी शर्तों को रखा, जिन्हें माना भी गया और वक्त के साथ भुला भी दिया गया.

इतिहासकार जितेंद्र सिंह शेखावत बताते हैं कि कैसे महाराजा मानसिंह ने आजादी के बाद राजस्थान के एकीकरण और भारत में विलय के पीछे सरकार के सामने शर्तों को रखा था और वह शर्तें कितनी पूरी हुई.

मानसिंह ने रखी थी ये शर्तें : महाराजा मानसिंह ने जयपुर रियासत के भारत में विलय के पीछे अपनी रियासती विरासत को लेकर सबसे पहले चिंता जाहिर की थी. उन्हें डर था की पीढ़ी दर पीढ़ी विरासत में मिली जयपुर की इस धरोहर को उनकी आने वाली पीढियां से कैसे जोड़ कर रखा जाएगा. उन्होंने जयपुर के विलय से पहले अपनी प्रमुख शर्तों में राज प्रमुख को लेकर पीढ़ी दर पीढ़ी की परंपरा को निभाने की शर्त का उल्लेख किया था. इसके बाद उन्होंने कहा था कि जयपुर राज परिवार का सदस्य ही राज प्रमुख होगा और किसी अन्य रियासत को उपराज प्रमुख या अन्य किसी प्रभावित पद पर नहीं रखा जाएगा. इसके साथ ही महाराजा मानसिंह ने राज परिवार के लिए 25 लाख रुपए सालाना की भी मांग की थी. एक और प्रमुख मांग के रूप में महाराजा मानसिंह ने कहा था कि जयपुर को ही राजस्थान की राजधानी बनाया जाएगा, जिन्हें सरदार पटेल ने स्वीकार करते हुए राजस्थान के एकीकरण की राह में अटके जयपुर को शामिल करने का रास्ता खोल दिया. इसके बाद 30 मार्च को सुबह 10:40 मिनट पर जयपुर के दरबार हॉल में तत्कालीन महाराजा मानसिंह को सरदार पटेल ने राज प्रमुख के रूप में शपथ दिलाई.

Jaipur ruler Mansingh
सत्यनारायण कमेटी की रिपोर्ट पर जयपुर को बनाया गया था राजधानी

इसे भी पढ़ें : 75 साल का हुआ राजस्थान, रियासतों के एकीकरण में छूटे थे पसीने, जानिए उस दौर की कहानी - Rajasthan Diwas 2024

इतिहासकार जितेंद्र सिंह शेखावत बताते हैं कि अलवर, भरतपुर और उदयपुर ने शुरुआती दौर में ही एकीकृत राजस्थान में शामिल होना कबूल कर लिया था, लेकिन जयपुर और जोधपुर रियासत ने आखिर तक इस एकीकरण का विरोध किया. यहां तक की जोधपुर एक दौर में पाकिस्तान का हिस्सा भी होने जा रहा था और बाद में सरदार पटेल के प्रयासों से राजस्थान में शामिल हो गया. इस बीच महाराजा मानसिंह ने लंदन में पढ़ रहे अपने युवा पुत्र भवानी सिंह को पत्र लिखकर चिंता जाहिर की, तो माउंटबेटन से भी बातचीत की. जब उन्हें कोई विकल्प नजर नहीं आया, तो जनवरी 1949 को जयपुर आए भारत सरकार के तत्कालीन सचिव वी. पी. मेनन से चर्चा के बाद उन्होंने सशर्त राजस्थान में शामिल होने का निर्णय लिया. इस दौरान मानसिंह ने प्रयास किया कि राजस्थान संघ में प्रवेश के साथ न्यायालय और गृह विभाग जैसे अधिकार राज परिवार या राज प्रमुख के पास हो, ताकि उनका सम्मान बरकरार रहे.

इसे भी पढ़ें : 30 मार्च को नहीं चैत्र शुक्ल प्रतिपदा पर मनाया जाए राजस्थान दिवस, उठी मांग - Rajasthan day

वक्त के साथ टूटती गई शर्तें : इतिहासकार जितेंद्र सिंह शेखावत के मुताबिक राजस्थान के एकीकरण के वक्त जिन शर्तों के साथ महाराजा मानसिंह शामिल हुए थे. बदलते वक्त ने उन शर्तों को भी बदल दिया. राजस्थान में कोटा के तत्कालीन महाराजा महाराज भीम सिंह को उपराज प्रमुख बना दिया गया. इसी तरह से सालाना मिलने वाले 25 लाख रुपए के भुगतान को घटाकर 8 लाख कर दिया गया और बाद में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वह भी बंद कर दिया. इसके अलावा मानसिंह के बाद राज प्रमुख के पद पर जयपुर राज परिवार का कोई और सदस्य काबिज नहीं हो सका. हालांकि जयपुर को राजधानी बनाना और राजस्थान की जनता को सुशासन सुलभ करवाना जैसी शर्तें इस बीच कायम रह सकी.

Jaipur ruler Mansingh
सवाई मानसिंह ने राजस्थान विलय पर रखी थी शर्तें

राजधानी की दौड़ में शामिल थी ये रियासतें : अजमेर, उदयपुर, जोधपुर और बीकानेर जैसी रियासतों ने राजधानी बनने के लिए भरपूर प्रयास किए, पर जयपुर में मौजूद सुविधा, इंफ्रास्ट्रक्चर और पानी की व्यवस्था के कारण जयपुर का यह दावा कायम रहा. तब सत्यनारायण कमेटी ने जयपुर का दौरा किया और राजधानी की जरूरत के लिए जरूरी हर शर्त को जयपुर में पूरा होता हुआ महसूस किया. शासन सचिवालय के लिए भगवंत दास बैरेक और विधानसभा के लिए काउंसिल हाउस जैसी इमारतें यहां मौजूद थी. ऐसे में सरदार पटेल ने भी जयपुर को राजधानी बनाने के लिए हामी भरी और दरबार हॉल में शपथ ग्रहण के साथ राजस्थान की एकीकरण प्रक्रिया पूरी हुई और हीरालाल शास्त्री को पहला मुख्यमंत्री मनोनीत किया गया.

राजस्थान स्थापना दिवस

जयपुर. मौजूदा समय में दिखने वाले राजस्थान के इस स्वरूप के गठन की राह इतनी आसान नहीं रही थी. अलग-अलग रियासतों में बंटे राजपूताना को एक करना और सभी को उनकी शर्तों के मुताबिक एक मंच पर लाना, तब प्रथम उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल के लिए चुनौती था. कुछ इसी तरह का किस्सा जयपुर रियासत को राजस्थान में शामिल करने से जुड़ा हुआ है. तत्कालीन महाराजा मानसिंह शुरुआत में विलय की प्रक्रिया में शामिल नहीं हुए. दबाव बनने के साथ उन्होंने सरदार पटेल के सामने अपनी शर्तों को रखा, जिन्हें माना भी गया और वक्त के साथ भुला भी दिया गया.

इतिहासकार जितेंद्र सिंह शेखावत बताते हैं कि कैसे महाराजा मानसिंह ने आजादी के बाद राजस्थान के एकीकरण और भारत में विलय के पीछे सरकार के सामने शर्तों को रखा था और वह शर्तें कितनी पूरी हुई.

मानसिंह ने रखी थी ये शर्तें : महाराजा मानसिंह ने जयपुर रियासत के भारत में विलय के पीछे अपनी रियासती विरासत को लेकर सबसे पहले चिंता जाहिर की थी. उन्हें डर था की पीढ़ी दर पीढ़ी विरासत में मिली जयपुर की इस धरोहर को उनकी आने वाली पीढियां से कैसे जोड़ कर रखा जाएगा. उन्होंने जयपुर के विलय से पहले अपनी प्रमुख शर्तों में राज प्रमुख को लेकर पीढ़ी दर पीढ़ी की परंपरा को निभाने की शर्त का उल्लेख किया था. इसके बाद उन्होंने कहा था कि जयपुर राज परिवार का सदस्य ही राज प्रमुख होगा और किसी अन्य रियासत को उपराज प्रमुख या अन्य किसी प्रभावित पद पर नहीं रखा जाएगा. इसके साथ ही महाराजा मानसिंह ने राज परिवार के लिए 25 लाख रुपए सालाना की भी मांग की थी. एक और प्रमुख मांग के रूप में महाराजा मानसिंह ने कहा था कि जयपुर को ही राजस्थान की राजधानी बनाया जाएगा, जिन्हें सरदार पटेल ने स्वीकार करते हुए राजस्थान के एकीकरण की राह में अटके जयपुर को शामिल करने का रास्ता खोल दिया. इसके बाद 30 मार्च को सुबह 10:40 मिनट पर जयपुर के दरबार हॉल में तत्कालीन महाराजा मानसिंह को सरदार पटेल ने राज प्रमुख के रूप में शपथ दिलाई.

Jaipur ruler Mansingh
सत्यनारायण कमेटी की रिपोर्ट पर जयपुर को बनाया गया था राजधानी

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इतिहासकार जितेंद्र सिंह शेखावत बताते हैं कि अलवर, भरतपुर और उदयपुर ने शुरुआती दौर में ही एकीकृत राजस्थान में शामिल होना कबूल कर लिया था, लेकिन जयपुर और जोधपुर रियासत ने आखिर तक इस एकीकरण का विरोध किया. यहां तक की जोधपुर एक दौर में पाकिस्तान का हिस्सा भी होने जा रहा था और बाद में सरदार पटेल के प्रयासों से राजस्थान में शामिल हो गया. इस बीच महाराजा मानसिंह ने लंदन में पढ़ रहे अपने युवा पुत्र भवानी सिंह को पत्र लिखकर चिंता जाहिर की, तो माउंटबेटन से भी बातचीत की. जब उन्हें कोई विकल्प नजर नहीं आया, तो जनवरी 1949 को जयपुर आए भारत सरकार के तत्कालीन सचिव वी. पी. मेनन से चर्चा के बाद उन्होंने सशर्त राजस्थान में शामिल होने का निर्णय लिया. इस दौरान मानसिंह ने प्रयास किया कि राजस्थान संघ में प्रवेश के साथ न्यायालय और गृह विभाग जैसे अधिकार राज परिवार या राज प्रमुख के पास हो, ताकि उनका सम्मान बरकरार रहे.

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वक्त के साथ टूटती गई शर्तें : इतिहासकार जितेंद्र सिंह शेखावत के मुताबिक राजस्थान के एकीकरण के वक्त जिन शर्तों के साथ महाराजा मानसिंह शामिल हुए थे. बदलते वक्त ने उन शर्तों को भी बदल दिया. राजस्थान में कोटा के तत्कालीन महाराजा महाराज भीम सिंह को उपराज प्रमुख बना दिया गया. इसी तरह से सालाना मिलने वाले 25 लाख रुपए के भुगतान को घटाकर 8 लाख कर दिया गया और बाद में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वह भी बंद कर दिया. इसके अलावा मानसिंह के बाद राज प्रमुख के पद पर जयपुर राज परिवार का कोई और सदस्य काबिज नहीं हो सका. हालांकि जयपुर को राजधानी बनाना और राजस्थान की जनता को सुशासन सुलभ करवाना जैसी शर्तें इस बीच कायम रह सकी.

Jaipur ruler Mansingh
सवाई मानसिंह ने राजस्थान विलय पर रखी थी शर्तें

राजधानी की दौड़ में शामिल थी ये रियासतें : अजमेर, उदयपुर, जोधपुर और बीकानेर जैसी रियासतों ने राजधानी बनने के लिए भरपूर प्रयास किए, पर जयपुर में मौजूद सुविधा, इंफ्रास्ट्रक्चर और पानी की व्यवस्था के कारण जयपुर का यह दावा कायम रहा. तब सत्यनारायण कमेटी ने जयपुर का दौरा किया और राजधानी की जरूरत के लिए जरूरी हर शर्त को जयपुर में पूरा होता हुआ महसूस किया. शासन सचिवालय के लिए भगवंत दास बैरेक और विधानसभा के लिए काउंसिल हाउस जैसी इमारतें यहां मौजूद थी. ऐसे में सरदार पटेल ने भी जयपुर को राजधानी बनाने के लिए हामी भरी और दरबार हॉल में शपथ ग्रहण के साथ राजस्थान की एकीकरण प्रक्रिया पूरी हुई और हीरालाल शास्त्री को पहला मुख्यमंत्री मनोनीत किया गया.

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