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"देश चलाने 55 से 60 डिग्री टेंपरेचर में कर रहे काम", ट्रैक पर रेलवेकर्मी झेल रहे भीषण गर्मी का डबल टॉर्चर - Heat Wave In Chhattisgarh

Heat Wave In Chhattisgarh छत्तीसगढ़ में भीषण गर्मी ने कोहराम मचा रखा है. बिना जरूरी काम के लोग घरों से बाहर निकलने से कतरा रहे हैं. वहीं दूसरी ओर इतनी गर्मी में भी रेलवे कर्मचारी ट्रैक मेंटनेंस के काम में जुटे हुए हैं. लोको पायलट भी केबिन में बाहर के तापमान से 5 से 6 डिग्री ज्यादा गर्मी झेल रहे हैं. लेकिन यात्रियों की सुखद और मंगलमय यात्रा के लिए वह गर्मी झेलने को भी तैयार हैं.

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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : May 31, 2024, 1:35 PM IST

Updated : May 31, 2024, 2:19 PM IST

Heat Wave In Chhattisgarh
छत्तीसगढ़ में हीट वेव (ETV Bharat)
हीट वेव की वजह से रेलवे कर्मचारी परेशान (ETV Bharat)

दुर्ग : देश के अधिकतर शहरों का तापमान 48 डिग्री सेलिसयस पार कर चुका है. छत्तीसगढ़ में तापमान 47 डिग्री पहुंच गया है. ऐसी गर्मी में जब ट्रेन के नॉन एसी कोच में बैठे यात्री गर्म हवा के थपेड़ों से बेहाल हो रहे हैं, तो जरा सोचिए ट्रेन को चलाने वाले ड्राइवर और ट्रैक मेंटनेंस करने वाले कर्मचारियों का गर्मी से क्या हाल होता होगा. विशेषज्ञ और डॉक्टर लोगों को भीषण गर्मी और हीटवेव के कारण बहुत जरूरी होने पर ही घर से निकलने की सलाह दे रहे हैं. लेकिन दुर्ग रेलवे स्टेशन के पास रेलवे ट्रैक पर कड़ी धूप में कर्मचारी मेंटेनेंस के काम में जुटे हुए हैं.

भीषण गर्मी में चल रहा ट्रैक मेंटेनेंस : ट्रैक मेंटेनेंस कर रहे कर्मचारियों का कहना है, "55 से 60 डिग्री टेंपरेचर में हम लोग काम कर रहे हैं, क्योंकि टेंपरेचर 45 है. गिट्टी और पटरी की गर्मी से टेंपरेचर और अधिक हो जाता है. परिवार के भरण पोषण के लिए काम तो करना ही है. टेंपरेचर कितना भी हो. यह हमारा रोज का काम है."

"लगभग 50 से 60 डिग्री टेंपरेचर में हम लोग काम करते हैं. 10 किलोमीटर पटरी चेक करते हुए जाते हैं और 10 किलोमीटर पट्टी चेक करते हुए वापस आते हैं. हम लोग यही चाहते हैं कि 11:30 बजे से 3 बजे तक काम ना कराया जाए." - रेलवे कर्मचारी, ट्रैक मेंटेनेंस


ट्रेन के ड्राइवर भी कर रहे संघर्ष : लोको पायलट का जीवन काफी कठिनाइयों से घिरा रहता है. ट्रेन के ड्राइवरों को भी बेहद विषम परिस्थितियों से जूझना पड़ता है. इंजन की गर्मी के कारण ड्राइवर के केबिन का तापमान बाहरी तापमान से 5 से 6 डिग्री ज्यादा होता है. ऐसे में इंजन के केबिन का तापमान भी करीब 60 डिग्री सेल्सियस पार कर जाता है. ड्राइवर्स पर यात्रियों की सुखद और मंगलमय यात्रा की जिम्मेदारी भी रहती है. सिर्फ तापमान ही नहीं, इंजन में लगी 6 मोटरों के चलने की भारी कर्कश आवाज और गड़गड़ाहट भी ड्राइवर्स को सहन करनी पड़ती है.

"भयानक गर्मी पड़ रही है. इंजन में 4 से 5 डिग्री और बढ़ जाती है. इंजन का एसी भी काम नहीं कर पाता. गर्मी के मौसम में काम का लोड और बढ़ जाता है. कोयला ले जाने का काम निरंतर जारी है. इंजन में एसी तो लगा है, लेकिन मेंटेनेंस नहीं होने के कारण एसी नहीं चल रहा है. रेलवे को मेंटेनेंस पर ध्यान देना चाहिए. रेलवे महज 2 लीटर पानी देती है, जबकि भीषण गर्मी में गला सूखने पर प्यास ज्यादा लगती है. " - लोको पायलट, रेलवे

यह है ट्रेन ड्राइवरों की परेशानी : इंजन में सवार होते समय ड्राइवर को रनिंग रूम में खाने के लिए राशन भी साथ ही रखना पड़ता है. ट्रेन के इंजन के अंदर तेज साउंड से बचाव के लिए कोई साउंड प्रूफ कैबिन भी नहीं होता. इंजन का तेज साउंड भी लगातार कई घंटे तक सहते हैं, इस कारण कई ड्राइवर्स को ऊंचा सुनने की आदत हो जाती है.

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भीषण गर्मी में चल रहा ट्रैक मेंटेनेंस : ट्रैक मेंटेनेंस कर रहे कर्मचारियों का कहना है, "55 से 60 डिग्री टेंपरेचर में हम लोग काम कर रहे हैं, क्योंकि टेंपरेचर 45 है. गिट्टी और पटरी की गर्मी से टेंपरेचर और अधिक हो जाता है. परिवार के भरण पोषण के लिए काम तो करना ही है. टेंपरेचर कितना भी हो. यह हमारा रोज का काम है."

"लगभग 50 से 60 डिग्री टेंपरेचर में हम लोग काम करते हैं. 10 किलोमीटर पटरी चेक करते हुए जाते हैं और 10 किलोमीटर पट्टी चेक करते हुए वापस आते हैं. हम लोग यही चाहते हैं कि 11:30 बजे से 3 बजे तक काम ना कराया जाए." - रेलवे कर्मचारी, ट्रैक मेंटेनेंस


ट्रेन के ड्राइवर भी कर रहे संघर्ष : लोको पायलट का जीवन काफी कठिनाइयों से घिरा रहता है. ट्रेन के ड्राइवरों को भी बेहद विषम परिस्थितियों से जूझना पड़ता है. इंजन की गर्मी के कारण ड्राइवर के केबिन का तापमान बाहरी तापमान से 5 से 6 डिग्री ज्यादा होता है. ऐसे में इंजन के केबिन का तापमान भी करीब 60 डिग्री सेल्सियस पार कर जाता है. ड्राइवर्स पर यात्रियों की सुखद और मंगलमय यात्रा की जिम्मेदारी भी रहती है. सिर्फ तापमान ही नहीं, इंजन में लगी 6 मोटरों के चलने की भारी कर्कश आवाज और गड़गड़ाहट भी ड्राइवर्स को सहन करनी पड़ती है.

"भयानक गर्मी पड़ रही है. इंजन में 4 से 5 डिग्री और बढ़ जाती है. इंजन का एसी भी काम नहीं कर पाता. गर्मी के मौसम में काम का लोड और बढ़ जाता है. कोयला ले जाने का काम निरंतर जारी है. इंजन में एसी तो लगा है, लेकिन मेंटेनेंस नहीं होने के कारण एसी नहीं चल रहा है. रेलवे को मेंटेनेंस पर ध्यान देना चाहिए. रेलवे महज 2 लीटर पानी देती है, जबकि भीषण गर्मी में गला सूखने पर प्यास ज्यादा लगती है. " - लोको पायलट, रेलवे

यह है ट्रेन ड्राइवरों की परेशानी : इंजन में सवार होते समय ड्राइवर को रनिंग रूम में खाने के लिए राशन भी साथ ही रखना पड़ता है. ट्रेन के इंजन के अंदर तेज साउंड से बचाव के लिए कोई साउंड प्रूफ कैबिन भी नहीं होता. इंजन का तेज साउंड भी लगातार कई घंटे तक सहते हैं, इस कारण कई ड्राइवर्स को ऊंचा सुनने की आदत हो जाती है.

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Last Updated : May 31, 2024, 2:19 PM IST
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