जोधपुर: राजस्थान का राज्य वृक्ष खेजड़ी (प्रोसोपिस सिनेरिया) जिसे शमी वृक्ष भी कहा जाता है. मारवाड़ के ग्रामीणों के जीवन का आधार है. इसके सरंक्षण के लिए कई स्तर पर प्रयास भी किए जा रहे हैं. जोधपुर क्षेत्र में गहरी फाउंडेशन इसको लेकर सक्रिय है. इस बार संयोग से 31 अक्टूबर की दिवाली है और इसी दिन खेजड़ी दिवस होता है. दिवाली-धन तेरस पर शमी का पूजन होता है. ऐसे में फाउंडेशन इस बार लोगों को काजरी द्वारा परिवर्तित शोभा खेजड़ी के पौधे निशुल्क वितरण करेगा. खास बात यह है कि इस खेजड़ी के कांटे नहीं होते हैं. इसे गमले में भी लगाया जा सकता है. भगवान शिव की शमी के पत्ते अर्पित किए जाते हैं.
निशुल्क वितरण कर जागरूक करेंगे : फाउंडेशन के चेयरमैन बलदेव गौरा ने बताया कि हमने एक लाख शोभा खेजड़ी खेत में तैयार की है. ग्राफ्टिंग के बाद इसका वितरण करने की तैयारी है. हमारा प्रयास है कि राजस्थान खासकर मारवाड़ में खेजड़ी को संरक्षण जरूरी है. वर्तमान में सोलर प्लांट लगाने के लिए हजारों कि संख्या में इनको काटा जाता है, जबकि खेत में किसान के लिए खेजड़ी का वृक्ष बहुत फायदेमंद होता है. यह जागरूकता शहरी लोगों में रहे, इसलिए हम यह प्रयास कर रहे हैं.
लंबा जीवित रहने वाला वृक्ष, पूरे साल देता है फल : देशी खेजड़ी जो खेतों में बड़ी संख्या में पाई जाती है. यह काफी लंबा जीवित रहने वाला पेड़ है. इसकी उम्र 50 साल से ज्यादा होती है. कंपनी में भी यह वृक्ष जीवित रहता है और हर साल फल के रूप में सांगरी देता है, जिसे सुखाने के बाद काफी महंगा बेचा जाता है. इसके पेड़ के सूखे हुए पत्ते पशुओं का पौष्टिक चारा के रूप में काम आता है. कहा जाता है कि खेजड़ी से किसान अपना परिवार पाल सकता है. इस वृक्ष ने नीचे की जमीन काफी उपजाऊ होती है.
पढ़ें : Rajasthan: Diwali 2024 : बाजारों में उत्सव का माहौल, चर्चा में एक लाख का चांदी का नोट
चार दशक पहले मिला राज्य वृक्ष का दर्जा, सरंक्षण न के बराबर : खेजड़ी को राज्य सरकार ने चार दशक पहले 31 अक्टूबर को 1983 में राज्य वृक्ष का दर्जा दिया था, लेकिन उसके बावजूद भी इसके संरक्षण के लिए गंभीर प्रयास नहीं किए गए. खेजड़ी ज्यादातर खेतों में ही पाई जाती है. इसलिए सरकार ने इसे भी टिनेंसी एक्ट के भरोसे छोड़ दिया. राजस्थान टेनेंसी एक्ट 1955 की धारा 80 से 86 तक खेतों में मौजूद वृक्षों को लेकर प्रावधान किए गए हैं. जिसमें वृक्ष काटने पर सिर्फ 100 रुपये का जुर्माना है. दोबारा काटने पर 200 रुपये का अधिकतम जुर्माना है. इसमें बरसों बाद भी बदलाव नहीं हुआ है. अब इसे काटने के लिए प्रशासनिक अनुमति जरूरी है, लेकिन पालना नहीं हो रही.