प्रयागराज: वाराणसी में ज्ञानवापी परिसर स्थित व्यासजी तहखाने में काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट को पूजा की अनुमति देने के जिला जज के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में दाखिल अपीलों पर मुस्लिम पक्ष ने कहा कि अंतरिम आदेश के जरिए अंतिम राहत नहीं दी जा सकती है. सोमवार को इस मामले में लंबी बहस चली. कोर्ट ने अगली सुनवाई के लिए 15 फरवरी की तारीख लगा दी है. अंजुमन इंतिजामिया मस्जिद की अपीलों पर न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल सुनवाई कर रहे हैं. मुस्लिम पक्ष की ओर से पूरक हलफनामा और जिला जज के आदेश की प्रमाणित प्रति दाखिल की गई. कोर्ट ने अपील के दाखिले की कमी समाप्त कर नियमित नंबर देने का निर्देश दिया.
अपीलार्थी के अधिवक्ता पुनीत गुप्ता ने सुप्रीम कोर्ट की नजीरों के हवाला देते हुए कहा कि जिला जज की अदालत ने तहखाने में पूजा की अनुमति देकर वस्तुत: सिविल वाद स्वीकार कर लिया है, जबकि सीपीसी की धारा 152 के अंतर्निहित अधिकार का प्रयोग करते हुए अदालत मूल आदेश की प्रकृति में बदलाव का आदेश नहीं दे सकती. कहा कि जिला जज की अदालत ने 17 जनवरी को अर्जी स्वीकार कर केवल एक राहत ही दी. दूसरी मांग पर आदेश नहीं देना ही अनुतोष से इनकार माना जाएगा.
वरिष्ठ अधिवक्ता एसएफए नकवी ने कहा कि 17 जनवरी के मूल आदेश से जिला जज ने डीएम वाराणसी को ज्ञानवापी का रिसीवर नियुक्त किया है. जिसमें विवादित स्थल की सुरक्षा व देखरेख करने तथा किसी प्रकार का बदलाव न होने देने का निर्देश दिया है. 31 जनवरी के आदेश से बैरिकेडिंग काटकर तहखाने में पूजा के लिए दरवाजा बनाने और ट्रस्ट को पुजारी के माध्यम से व्यासजी तहखाने में देवी-देवताओं की पूजा करने की अनुमति देकर विरोधाभासी आदेश दे दिया है, जो कानून के विपरीत है. यह भी कहा कि तहखाने पर किसका अधिकार है, यह साक्ष्यों के बाद सिविल वाद के निर्णय से तय होगा. ऐसे में जिला जज की अदालत ने अंतरिम आदेश से फाइनल रिलीफ देकर गलती की है. उन्होंने कुछ कागजात दाखिल करने के लिए समय मांगा। कोर्ट ने उनकी मांग स्वीकार करते हुए सुनवाई स्थगित कर दी.
वाराणसी कोर्ट के फैसले के बाद मुस्लिम पक्ष के वकील इसे न्याय संगत नहीं मान रहे थे. वहीं वादी यानी हिंदू पक्ष की तरफ से अधिवक्ता हरिशंकर जैन ने और उनके बेटे विष्णु शंकर जैन ने बहस जारी रखते हुए आदेश को सही बताया था. तमाम दलीलें देते हुए तहखाने पर व्यास जी के परिवार का ही कब्जा हमेशा से रहा, यही बात उन्होंने साबित करने की कोशिश की थी.
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया था कि प्रशासनिक अधिकारियों और वादी की ओर से 28 नवंबर 2014 को चाबी से ताला खोलकर तहखाने से जितेंद्र नाथ विकास की मौजूदगी में सामान निकला गया था. 5 नवंबर 2016 को रामचरितमानस पाठ का सामान रखा गया. इसके बाद एक चाबी व्यास जी के परिवार के पास और दूसरी चाबी प्रशासन के पास ही रहती थी. हालांकि, यह बात ट्रायल कोर्ट की पत्रावली में नहीं है लेकिन रामायण पाठ किया जाता रहा.
फिलहाल इस मामले में इस वक्त जिला अधिकारी वाराणसी को इस तहखाने का रिसीवर बनाया गया है. 17 जनवरी को तहखाने का जिम्मा जिलाधिकारी को कोर्ट के निर्देश पर सौंपा गया था और कोर्ट ने जिलाधिकारी को ही यहां पूजा पाठ शुरू करवाने के लिए भी आदेशित किया था. फिलहाल आज हाईकोर्ट में इस मामले में बहस आगे भी जारी रहेगी.