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गोड्डा लोकसभा क्षेत्र में सियासत की रेलः हर चुनाव चलती है दो कदम, देवघर पहुंची पर गोड्डा में किया आधा सफर तय!

Godda Lok Sabha seat. लोकसभा चुनाव में वैसे तो मुद्दों की भरमार है. देश के साथ साथ संसदीय क्षेत्र के मुद्दे भी हावी रहते हैं. मुद्दों को लेकर कुछ ऐसी ही तासीर गोड्डा लोकसभा सीट की भी है. यहां चुनाव में सियासी रेल खूब चलती है.

Politics on railway issue in elections on Godda Lok Sabha seat
गोड्डा लोकसभा चुनाव में रेल के मुद्दे पर बीजेपी और कांग्रेस में हो रही सियासी बयानबाजी
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Mar 17, 2024, 8:29 PM IST

गोड्डा लोकसभा क्षेत्र में रेल को लेकर राजनीति

गोड्डाः यहां सियासत की रेल का तड़का वाला मुद्दा पक्ष हो या विपक्ष दोनों के लिए सिर चढ़कर बोलने लगा है. जसीडीह से गोड्डा होते हुए पीरपैंती रेल लाइन को लेकर कांग्रेस हो या भाजपा, दोनों ही इसे अपनी कामयाबी की लिस्ट में सबसे ऊपर गिना रहे हैं. गोड्डा लोकसभा सीट पर इस बार भी सियासी रेल खूब चल रही है.

क्या है इस रेल की कहानीः

सियासी रेल और चुनावी ट्रेन गोड्डा लोकसभा सीट के लिए कोई नई बात नहीं है. गोड्डा में ट्रेन की मांग काफी लंबे समय चल रही थी. इसके लिए सर्वांगीण विकास मंच के तहत कांग्रेस नेता सच्चिदानंद साह के नेतृत्व में सबसे लंबी लड़ाई लड़ी गई. इसके बाद रेल गोड्डा लोकसभा सीट के लिए चुनावी मुद्दा भी बनता रहा. लेकिन 2009 के लोस चुनाव में सबसे ज्यादा ये मुद्दा लोगों के सिर चढ़कर बोला. केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली मनमोहन सिंह की सरकार बनी लेकिन गोड्डा लोकसभा सीट से भाजपा के सांसद निशिकांत दुबे बने.

मनमोहन सिंह सरकार के आखिरी साल में पूरे झारखंड को जो सबसे बड़ा रेल का तोहफा मिला वो जसीडीह से गोड्डा होते हुए पीरपैंती रेल तक रेललाइन का था. जिसकी लंबाई 127 किमी की है, उसका बजट 915.96 करोड़ रुपये का था. इसमें आधी राशि केंद्र और आधी राज्य सरकार को देनी थी. इसके बाद 2014 का चुनाव आ गया, जिसमें इसे बड़ी कामयाबी भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने दिखाने का प्रयास किया लेकिन कांग्रेस भी या दावा करती रही कि ये मनमोहन सरकार की क्षेत्र को बड़ी देन है.

इसके बाद 2014 में सरकार केंद्र में भाजपा की बनी, फिर जगह जगह नये बोर्ड लगे लेकिन आज भी पुराने बोर्ड लगे देखे जा सकते हैं. इस दौरान धरातल उतरी योजना का काम धीमी गति से चली और कुल पांच साल में महज 15 किमी रेल लाइन व पोड़ैयाहाट स्टेशन बना. जिसे हंसडीहा रेलवे स्टेशन जोड़ दिया गया और एक यात्री ट्रेन पोड़ैयाहाट से दुमका वाया हंसडीहा तक चलायी गयी. ये काम 2019 लोकसभा चुनाव से चंद दिन पहले किया गया, जिसमें ये दावा किया गया कि 72 साल बाद गोड्डा में रेल की सिटी बज गई.

इसके बाद फिर से काम में तेजी आई क्योंकि तब तक गोड्डा में अडाणी पावर प्लांट काम तेजी से आरंभ हो चुका था. ऐसे में गोड्डा तक रेल मजबूरी हो गई थी ये विपक्ष का आरोप भी है. फिर 2021 में गोड्डा स्टेशन बना और रेल लाइन बना, ये दूरी पोड़ैयाहाट से 15 किमी की थी. इस तरह हंसडीहा से गोड्डा 30 किमी रेल लाइन बन गई. लेकिन 2024 के चुनाव से एक पखवाड़ा पूर्व हंसडीहा से मोहनपुर 36.96 की तक रेल लाइन का उद्घाटन पीएम नरेंद्र मोदी ने ऑनलाइन कर दिया है, इस तरह अब गोड्डा सीधे देवघर से जुड़ गया है. 127 किमी की जसीडीह-पीरपैंती रेल लाइन अब तक 67 किमी का ही सफर तय कर पाई है और गोड्डा पहुंची है, अभी गोड्डा से पीरपैंती रेल लाइन का बनना बाकी है. लोकसभा चुनाव 2024 से ठीक पहले गोड्डा से महगामा तक रेल लाइन की निविदा निकाली गई.

यहां बता दें कि इस योजना को पैसा देने से पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने इनकार करते हुए हुए इसे रोक दिया था. जिसकी प्रक्रिया फिर से आरंभ की गई है, जिसकी दूरी 28 किमी है. इसके बावजूद 32 किमी महगामा से पीरपैंती रेल बिछाने है. हालांकि सांसद निशिकांत दुबे ने कहा कि अगला चुनाव 2029 में पीरपैंती तक रेल लाइन बिछ जाएगा. इसके बाद पीरपैंती से बटेश्वर स्थान पर गंगा पूल के माध्यम से नवगछिया तक रेल जुड़ जाएगा. बता दें कि सांसद निशिकांत दुबे का घर बटेश्वर स्थान भवानीपुर में ही है. वो कहते हैं कि अगली बार टिकट मिला तो नामांकन करने के बाद ट्रेन से ही घर जाएंगे.

ट्रेन के मुद्दे पर सियासतः

रेल के मुद्दे को लेकर राजनीति भी खूब हो रही है. कांग्रेस की राष्ट्रीय सचिव व महगामा विधायक दीपिका पांडेय सिंह कहती हैं कि जिस विकास और रेल की बात भाजपा सांसद निशिकांत दुबे करते हैं वह मनमोहन सरकार व कांग्रेस की देन है. 2012-2013 में मनमोहन सिंह की सरकार ने 915 करोड़ जसीडीह-पीरपैंती रेल लाइन के लिए दिए उसे सांसद अपना काम गिना रहे हैं. विधायक का आरोप है कि इतने साल में ये काम कब का हो जाना चाहिए था लेकिन रेल अभी गोड्डा पहुंची है और चुनाव आता है तो जमीन का नाप शुरू हो जाता है. कांग्रेस के इन आरोपों का जवाब देते हुए सांसद निशिकांत दुबे कहते हैं कि 5 साल में रेल देवघर से गोड्डा आया है, ये कम बड़ी उपलब्धि नहीं है. इसके साथ ही सांसद कई अन्य रेल योजनाओं की धीमी प्रगति का उदाहरण भी देते हैं.

इसे भी पढे़ं- गोड्डा से देवघर जाना होगा आसान, पीएम मोदी 1 मार्च को करेंगे नई रेल लाइन का उद्घाटन

इसे भी पढ़ें- गोड्डा गोमतीनगर एक्सप्रेस ट्रेन से अयोध्या पहुंचना हुआ आसान, सांसद निशिकांत दुबे ने कहा-रेलवे हब बनेगा गोड्डा

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गोड्डा लोकसभा क्षेत्र में रेल को लेकर राजनीति

गोड्डाः यहां सियासत की रेल का तड़का वाला मुद्दा पक्ष हो या विपक्ष दोनों के लिए सिर चढ़कर बोलने लगा है. जसीडीह से गोड्डा होते हुए पीरपैंती रेल लाइन को लेकर कांग्रेस हो या भाजपा, दोनों ही इसे अपनी कामयाबी की लिस्ट में सबसे ऊपर गिना रहे हैं. गोड्डा लोकसभा सीट पर इस बार भी सियासी रेल खूब चल रही है.

क्या है इस रेल की कहानीः

सियासी रेल और चुनावी ट्रेन गोड्डा लोकसभा सीट के लिए कोई नई बात नहीं है. गोड्डा में ट्रेन की मांग काफी लंबे समय चल रही थी. इसके लिए सर्वांगीण विकास मंच के तहत कांग्रेस नेता सच्चिदानंद साह के नेतृत्व में सबसे लंबी लड़ाई लड़ी गई. इसके बाद रेल गोड्डा लोकसभा सीट के लिए चुनावी मुद्दा भी बनता रहा. लेकिन 2009 के लोस चुनाव में सबसे ज्यादा ये मुद्दा लोगों के सिर चढ़कर बोला. केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली मनमोहन सिंह की सरकार बनी लेकिन गोड्डा लोकसभा सीट से भाजपा के सांसद निशिकांत दुबे बने.

मनमोहन सिंह सरकार के आखिरी साल में पूरे झारखंड को जो सबसे बड़ा रेल का तोहफा मिला वो जसीडीह से गोड्डा होते हुए पीरपैंती रेल तक रेललाइन का था. जिसकी लंबाई 127 किमी की है, उसका बजट 915.96 करोड़ रुपये का था. इसमें आधी राशि केंद्र और आधी राज्य सरकार को देनी थी. इसके बाद 2014 का चुनाव आ गया, जिसमें इसे बड़ी कामयाबी भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने दिखाने का प्रयास किया लेकिन कांग्रेस भी या दावा करती रही कि ये मनमोहन सरकार की क्षेत्र को बड़ी देन है.

इसके बाद 2014 में सरकार केंद्र में भाजपा की बनी, फिर जगह जगह नये बोर्ड लगे लेकिन आज भी पुराने बोर्ड लगे देखे जा सकते हैं. इस दौरान धरातल उतरी योजना का काम धीमी गति से चली और कुल पांच साल में महज 15 किमी रेल लाइन व पोड़ैयाहाट स्टेशन बना. जिसे हंसडीहा रेलवे स्टेशन जोड़ दिया गया और एक यात्री ट्रेन पोड़ैयाहाट से दुमका वाया हंसडीहा तक चलायी गयी. ये काम 2019 लोकसभा चुनाव से चंद दिन पहले किया गया, जिसमें ये दावा किया गया कि 72 साल बाद गोड्डा में रेल की सिटी बज गई.

इसके बाद फिर से काम में तेजी आई क्योंकि तब तक गोड्डा में अडाणी पावर प्लांट काम तेजी से आरंभ हो चुका था. ऐसे में गोड्डा तक रेल मजबूरी हो गई थी ये विपक्ष का आरोप भी है. फिर 2021 में गोड्डा स्टेशन बना और रेल लाइन बना, ये दूरी पोड़ैयाहाट से 15 किमी की थी. इस तरह हंसडीहा से गोड्डा 30 किमी रेल लाइन बन गई. लेकिन 2024 के चुनाव से एक पखवाड़ा पूर्व हंसडीहा से मोहनपुर 36.96 की तक रेल लाइन का उद्घाटन पीएम नरेंद्र मोदी ने ऑनलाइन कर दिया है, इस तरह अब गोड्डा सीधे देवघर से जुड़ गया है. 127 किमी की जसीडीह-पीरपैंती रेल लाइन अब तक 67 किमी का ही सफर तय कर पाई है और गोड्डा पहुंची है, अभी गोड्डा से पीरपैंती रेल लाइन का बनना बाकी है. लोकसभा चुनाव 2024 से ठीक पहले गोड्डा से महगामा तक रेल लाइन की निविदा निकाली गई.

यहां बता दें कि इस योजना को पैसा देने से पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने इनकार करते हुए हुए इसे रोक दिया था. जिसकी प्रक्रिया फिर से आरंभ की गई है, जिसकी दूरी 28 किमी है. इसके बावजूद 32 किमी महगामा से पीरपैंती रेल बिछाने है. हालांकि सांसद निशिकांत दुबे ने कहा कि अगला चुनाव 2029 में पीरपैंती तक रेल लाइन बिछ जाएगा. इसके बाद पीरपैंती से बटेश्वर स्थान पर गंगा पूल के माध्यम से नवगछिया तक रेल जुड़ जाएगा. बता दें कि सांसद निशिकांत दुबे का घर बटेश्वर स्थान भवानीपुर में ही है. वो कहते हैं कि अगली बार टिकट मिला तो नामांकन करने के बाद ट्रेन से ही घर जाएंगे.

ट्रेन के मुद्दे पर सियासतः

रेल के मुद्दे को लेकर राजनीति भी खूब हो रही है. कांग्रेस की राष्ट्रीय सचिव व महगामा विधायक दीपिका पांडेय सिंह कहती हैं कि जिस विकास और रेल की बात भाजपा सांसद निशिकांत दुबे करते हैं वह मनमोहन सरकार व कांग्रेस की देन है. 2012-2013 में मनमोहन सिंह की सरकार ने 915 करोड़ जसीडीह-पीरपैंती रेल लाइन के लिए दिए उसे सांसद अपना काम गिना रहे हैं. विधायक का आरोप है कि इतने साल में ये काम कब का हो जाना चाहिए था लेकिन रेल अभी गोड्डा पहुंची है और चुनाव आता है तो जमीन का नाप शुरू हो जाता है. कांग्रेस के इन आरोपों का जवाब देते हुए सांसद निशिकांत दुबे कहते हैं कि 5 साल में रेल देवघर से गोड्डा आया है, ये कम बड़ी उपलब्धि नहीं है. इसके साथ ही सांसद कई अन्य रेल योजनाओं की धीमी प्रगति का उदाहरण भी देते हैं.

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