ETV Bharat / state

'हाथी' को रास नहीं आती राजस्थान की राजनीति, प्रदेश में बसपा के साथ तीसरी बार हुआ 'खेला', जानिए पहले कब-कब पलटे बसपा विधायक - BSP does not suit Rajasthan

कभी उत्तरप्रदेश की राजनीति में दबदबा रखने वाली बहुजन समाज पार्टी को राजस्थान की सियासत रास नहीं आ रही है. प्रदेश में 2008 से अब तक 16 साल के इतिहास में तीन बार बसपा के टिकट पर जीतकर आए. सभी विधायकों ने बाद में पाला बदला​ लिया, जबकि एक बार 2013 में जीते बसपा के सभी तीन विधायक पार्टी के साथ रहे. पढ़िए यह रिपोर्ट.

BSP does not suit the politics of Rajasthan, MLAs leaves the party
'हाथी' को रास नहीं आती राजस्थान की राजनीति
author img

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Apr 17, 2024, 12:43 PM IST

Updated : Apr 17, 2024, 12:49 PM IST

जयपुर. देश की राजनीति में अपनी अहम जगह रखने वाले राज्य उत्तर प्रदेश में कभी अपना दबदबा रखने वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को राजस्थान की आबो-हवा रास नहीं आ रही. साल 2008 से अब तक हुए चार विधानसभा चुनावों में बसपा के खाते में कुल 17 सीट आई. लेकिन पार्टी के विधायकों ने तीन बार पाला बदला. यानी कुल 14 सीटों से विधायकों ने पाला बदला. मात्र एक बार 2013 में जीते बसपा के विधायक पूरे विधानसभा कार्यकाल में पार्टी के साथ ही रहे हैं.

चूरू की सादुलपुर सीट से बसपा के टिकट पर जीतकर विधानसभा पहुंचे मनोज न्यांगली और बाड़ी (धौलपुर) से 'हाथी' पर सवार होकर विधानसभा पहुंचे जसवंत सिंह गुर्जर ने हाल ही तीर कमान संभालते हुए शिवसेना (शिंदे) का दामन थाम लिया है.

पढ़ें: राजस्थान के दो विधायकों ने छोड़ा 'हाथी' का साथ, थामा तीर-कमान, शिवसेना (शिंदे) में शामिल हुए बसपा विधायक न्यांगली और जसवंत गुर्जर

वर्ष 2008 में छह विधायक कांग्रेस में गए: राजस्थान में 2008 में हुए विधानसभा चुनाव में बसपा के खाते में छह सीटें आई थी. उस समय नवलगढ़ से राजकुमार शर्मा, उदयपुरवाटी से राजेंद्र सिंह गुढ़ा, गंगापुर से रामकेश मीणा, सपोटरा से रमेश मीणा, दौसा से मुरारीलाल मीणा और बाड़ी से गिर्राज सिंह मलिंगा बसपा के टिकट पर जीते थे. पहले इन्होंने बाहर से समर्थन देकर अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनाई. करीब एक साल बाद 2019 में ये सभी कांग्रेस में ही शामिल हो गए थे.

2019 में फिर दोहराया गया इतिहास: प्रदेश में 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में एक बार फिर बसपा के खाते में 6 सीट आई. इस बार उदयपुरवाटी से राजेंद्र सिंह गुढ़ा, नदबई से जोगेंद्र सिंह अवाना, किशनगढ़बास से दीपचंद खैरिया, करौली से लाखन सिंह, नगर से वाजिब अली और तिजारा से संदीप कुमार 'हाथी' पर सवार होकर विधानसभा पहुंचे, लेकिन 2019 में सियासी संकट के बाद ये सभी विधायक अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली सरकार को बचाने के लिए कांग्रेस में शामिल हो गए.

यह भी पढ़ें: गहलोत की सभा में नहीं पहुंची शोभारानी कुशवाह, CM की सभा की कमान BSP विधायक के बेटे के हाथ, क्या फिर कोई नया सियासी भूचाल ?

2013 में जीते तीन विधायक रहे पार्टी के साथ: राज्य में 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला और वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री बनीं. उस समय बसपा के तीन विधायक जीतकर आए थे. सादुलपुर (चूरू) से मनोज न्यांगली पहली बार बसपा के टिकट पर जीतकर विधानसभा पहुंचे, जबकि खेतड़ी से पूरणमल सैनी और धौलपुर से बीएल कुशवाहा बसपा से चुनाव लड़े और जीतकर विधानसभा पहुंचे. बीते 16 साल की बात करें तो 2013 से 2018 तक बसपा के तीनों विधायक पूरे पांच साल अपनी पार्टी के साथ रहे.

अब दोनों विधायकों ने थामा तीर-कमान: राजस्थान में पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में बसपा के दो ही विधायक जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं. सादुलपुर से मनोज न्यांगली कांग्रेस की कृष्णा पूनिया को हराकर और बाड़ी से जसवंत सिंह गुर्जर भाजपा के गिर्राज सिंह मलिंगा को चुनाव हराकर विधायक बने, लेकिन लोकसभा चुनाव से ठीक पहले दोनों ने एनडीए की घटक पार्टी शिवसेना (शिंदे) से नाता जोड़ लिया है. अब ये दोनों चूरू और धौलपुर में कमल खिलाने में जुट सकते हैं.

इसे भी देख़ें: भाजपा के संकल्प पत्र पर डोटासरा का प्रहार, कहा- 70 बार मोदी के नाम का जिक्र, फिर क्यों न कहे मोदी पत्र

जाएगी या बचेगी विधायकी: दल बदल कानून कहता है कि किसी पार्टी के दो तिहाई विधायक या सांसद पार्टी छोड़ते हैं तो उन पर दल-बदल कानून लागू नहीं होगा. वे दूसरी पार्टी में शामिल हो सकते हैं लेकिन अपनी खुद की पार्टी नहीं बना सकते हैं. इस बार बसपा के दो ही विधायक हैं और दोनों पार्टी छोड़कर शिवसेना (शिंदे) में शामिल हो चुके हैं. ऐसे में इनके विधायक पद को खतरा नहीं है. दोनों विधायकों को एक पत्र विधानसभा स्पीकर को सौंपना है. विधानसभा स्पीकर की स्वीकृति के बाद इनका विधायक पद बरकरार रहेगा. हालांकि, शिवसेना (शिंदे) एनडीए का घटक दल है. इसलिए यह प्रक्रिया आसानी से पूरी होने की प्रबल संभावना है.

गुढ़ा ने किया पर्दे के पीछे से खेल: बसपा के विधायक जब 2009 और 2019 में कांग्रेस में शामिल हुए थे, तब राजेंद्र सिंह गुढ़ा दोनों बार बसपा के विधायक थे और सभी विधायकों को कांग्रेस में शामिल करवाने में उनकी अहम भूमिका थी. इस बार विधानसभा चुनाव से पहले वे शिवसेना (शिंदे) में शामिल हो चुके. चुनाव लड़ा लेकिन जीते नहीं. अब बसपा के दोनों विधायकों के शिवसेना शिंदे में शामिल होने में पर्दे के पीछे राजेंद्र सिंह गुढ़ा की ही भूमिका होने की संभावना जताई जा रही है.

जयपुर. देश की राजनीति में अपनी अहम जगह रखने वाले राज्य उत्तर प्रदेश में कभी अपना दबदबा रखने वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को राजस्थान की आबो-हवा रास नहीं आ रही. साल 2008 से अब तक हुए चार विधानसभा चुनावों में बसपा के खाते में कुल 17 सीट आई. लेकिन पार्टी के विधायकों ने तीन बार पाला बदला. यानी कुल 14 सीटों से विधायकों ने पाला बदला. मात्र एक बार 2013 में जीते बसपा के विधायक पूरे विधानसभा कार्यकाल में पार्टी के साथ ही रहे हैं.

चूरू की सादुलपुर सीट से बसपा के टिकट पर जीतकर विधानसभा पहुंचे मनोज न्यांगली और बाड़ी (धौलपुर) से 'हाथी' पर सवार होकर विधानसभा पहुंचे जसवंत सिंह गुर्जर ने हाल ही तीर कमान संभालते हुए शिवसेना (शिंदे) का दामन थाम लिया है.

पढ़ें: राजस्थान के दो विधायकों ने छोड़ा 'हाथी' का साथ, थामा तीर-कमान, शिवसेना (शिंदे) में शामिल हुए बसपा विधायक न्यांगली और जसवंत गुर्जर

वर्ष 2008 में छह विधायक कांग्रेस में गए: राजस्थान में 2008 में हुए विधानसभा चुनाव में बसपा के खाते में छह सीटें आई थी. उस समय नवलगढ़ से राजकुमार शर्मा, उदयपुरवाटी से राजेंद्र सिंह गुढ़ा, गंगापुर से रामकेश मीणा, सपोटरा से रमेश मीणा, दौसा से मुरारीलाल मीणा और बाड़ी से गिर्राज सिंह मलिंगा बसपा के टिकट पर जीते थे. पहले इन्होंने बाहर से समर्थन देकर अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनाई. करीब एक साल बाद 2019 में ये सभी कांग्रेस में ही शामिल हो गए थे.

2019 में फिर दोहराया गया इतिहास: प्रदेश में 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में एक बार फिर बसपा के खाते में 6 सीट आई. इस बार उदयपुरवाटी से राजेंद्र सिंह गुढ़ा, नदबई से जोगेंद्र सिंह अवाना, किशनगढ़बास से दीपचंद खैरिया, करौली से लाखन सिंह, नगर से वाजिब अली और तिजारा से संदीप कुमार 'हाथी' पर सवार होकर विधानसभा पहुंचे, लेकिन 2019 में सियासी संकट के बाद ये सभी विधायक अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली सरकार को बचाने के लिए कांग्रेस में शामिल हो गए.

यह भी पढ़ें: गहलोत की सभा में नहीं पहुंची शोभारानी कुशवाह, CM की सभा की कमान BSP विधायक के बेटे के हाथ, क्या फिर कोई नया सियासी भूचाल ?

2013 में जीते तीन विधायक रहे पार्टी के साथ: राज्य में 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला और वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री बनीं. उस समय बसपा के तीन विधायक जीतकर आए थे. सादुलपुर (चूरू) से मनोज न्यांगली पहली बार बसपा के टिकट पर जीतकर विधानसभा पहुंचे, जबकि खेतड़ी से पूरणमल सैनी और धौलपुर से बीएल कुशवाहा बसपा से चुनाव लड़े और जीतकर विधानसभा पहुंचे. बीते 16 साल की बात करें तो 2013 से 2018 तक बसपा के तीनों विधायक पूरे पांच साल अपनी पार्टी के साथ रहे.

अब दोनों विधायकों ने थामा तीर-कमान: राजस्थान में पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में बसपा के दो ही विधायक जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं. सादुलपुर से मनोज न्यांगली कांग्रेस की कृष्णा पूनिया को हराकर और बाड़ी से जसवंत सिंह गुर्जर भाजपा के गिर्राज सिंह मलिंगा को चुनाव हराकर विधायक बने, लेकिन लोकसभा चुनाव से ठीक पहले दोनों ने एनडीए की घटक पार्टी शिवसेना (शिंदे) से नाता जोड़ लिया है. अब ये दोनों चूरू और धौलपुर में कमल खिलाने में जुट सकते हैं.

इसे भी देख़ें: भाजपा के संकल्प पत्र पर डोटासरा का प्रहार, कहा- 70 बार मोदी के नाम का जिक्र, फिर क्यों न कहे मोदी पत्र

जाएगी या बचेगी विधायकी: दल बदल कानून कहता है कि किसी पार्टी के दो तिहाई विधायक या सांसद पार्टी छोड़ते हैं तो उन पर दल-बदल कानून लागू नहीं होगा. वे दूसरी पार्टी में शामिल हो सकते हैं लेकिन अपनी खुद की पार्टी नहीं बना सकते हैं. इस बार बसपा के दो ही विधायक हैं और दोनों पार्टी छोड़कर शिवसेना (शिंदे) में शामिल हो चुके हैं. ऐसे में इनके विधायक पद को खतरा नहीं है. दोनों विधायकों को एक पत्र विधानसभा स्पीकर को सौंपना है. विधानसभा स्पीकर की स्वीकृति के बाद इनका विधायक पद बरकरार रहेगा. हालांकि, शिवसेना (शिंदे) एनडीए का घटक दल है. इसलिए यह प्रक्रिया आसानी से पूरी होने की प्रबल संभावना है.

गुढ़ा ने किया पर्दे के पीछे से खेल: बसपा के विधायक जब 2009 और 2019 में कांग्रेस में शामिल हुए थे, तब राजेंद्र सिंह गुढ़ा दोनों बार बसपा के विधायक थे और सभी विधायकों को कांग्रेस में शामिल करवाने में उनकी अहम भूमिका थी. इस बार विधानसभा चुनाव से पहले वे शिवसेना (शिंदे) में शामिल हो चुके. चुनाव लड़ा लेकिन जीते नहीं. अब बसपा के दोनों विधायकों के शिवसेना शिंदे में शामिल होने में पर्दे के पीछे राजेंद्र सिंह गुढ़ा की ही भूमिका होने की संभावना जताई जा रही है.

Last Updated : Apr 17, 2024, 12:49 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.