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हजारीबाग के जिस गांव की रग-रग में है देशभक्ति, लकड़ी के पुल पर टिकी है वहां के लोगों की जिंदगी - People of Ara village

No bridge in Hazaribag Ara village. हजारीबाग का एक गांव है आरा. यहां के लोगों में देश सेवा की भावना कूट-कूट कर भरी है. गांव के कई लोग सेना में हैं. कुछ रिटायर भी हो चुके हैं. देश के लिए सर्वस्व न्योछावर करने का जज्बा रखने वाले इस गांव के लोग एक पुल के लिए परेशान है. शर्मनाक बात यह है कि इनकी परेशानी की ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है.

People of Ara village of Hazaribag dependent on wooden bridge
डिजाइन इमेज (ईटीवी भारत)
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Jul 10, 2024, 12:22 PM IST

Updated : Jul 10, 2024, 12:53 PM IST

हजारीबागः जब विकास की गाड़ी लकड़ी के पुल पर सवार होकर गांव पहुंचे तो समझा जा सकता है कि उस जिले की स्थिति क्या है. हजारीबाग जिला मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर दूर इचाक प्रखंड के आरा गांव में लोग अपने घर पहुंचने के लिए लकड़ी के पुल का सहारा लेते हैं. शायद यह सुनने में आपको अटपटा अवश्य लगता होगा लेकिन वस्तु स्थिति यही है.

लकड़ी के पुल के सहारे आरा गांव के लोग (ईटीवी भारत)

इचाक प्रखंड कभी पदमा राजा की राजधानी हुआ करती थी. आजादी के 75 वर्ष बीत जाने के बाद भी प्रखंड का आरा गांव बुनियादी सुविधा से कोसों दूर है. आलम यह है कि प्रखंड मुख्यालय आने के लिए इन लोगों को कई मुसीबत का सामना करना पड़ता है. 12 किलोमीटर की दूरी तय करने के लिए गांव वालों को नदी पार करना पड़ता है.

आरा और पोखरिया गांव के बीच स्थित बड़की नदी पर पुल नहीं है. गांव के दर्जनों युवा मिलकर हर साल बरसात आने से पूर्व बड़की नदी पर लकड़ी, बांस और टायर का उपयोग कर करीब 25 फीट लंबा लकड़ी का पुल बनाते हैं. ताकि गांव के लोगों को शहर पहुंचने में आसानी हो सके.

गांव में रहने वाले सेवानिवृत नायक सुबेदार रामजी दास कहते हैं कि 6 सेवानिवृत जवान गांव में रह रहे हैं. जबकि 11 युवा देश की सेवा इस वक्त सेना में रह कर कर रहे हैं. स्थानीय जिला प्रशासन को इस गांव की चिंता तक नहीं है. कई बार सांसद, विधायक और जिला प्रशासन को पत्राचार भी किया है लेकिन अब तक उनकी नींद खुली नहीं है. देश आजादी की 75वीं सालगिरह मना रहा है, लेकिन इतने सालों में गांव को एक पुल तक नहीं मिला.

बड़की नदी पर पुल न होने से आरा गांव की गर्भवती महिलाएं प्रसव पीड़ा से कराहती नवजात को जन्म देने से पूर्व ही दम तोड़ देती हैं. ग्रामीणों ने बताया कि गांव का तीन किमी रास्ता पूरी तरह कच्चा और जंगल झाड़ से घिरा है. सरकारी सुविधा के नाम पर एक प्राइमरी स्कूल है. स्वास्थ्य केंद्र जाने के लिए भी नदी पार करना पड़ता है.

यह खबर दिखाने का एकमात्र उद्देश्य यह है कि जिला प्रशासन और सरकार तक यह बात पहुंचे कि एक ऐसा गांव है, जहां के युवा देश के लिए सेवा दे रहे हैं. लेकिन उनके परिवार वालों के लिए एक पुल भी सिस्टम नहीं दे पा रहा है.

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लकड़ी के पुल के सहारे आरा गांव के लोग (ईटीवी भारत)

इचाक प्रखंड कभी पदमा राजा की राजधानी हुआ करती थी. आजादी के 75 वर्ष बीत जाने के बाद भी प्रखंड का आरा गांव बुनियादी सुविधा से कोसों दूर है. आलम यह है कि प्रखंड मुख्यालय आने के लिए इन लोगों को कई मुसीबत का सामना करना पड़ता है. 12 किलोमीटर की दूरी तय करने के लिए गांव वालों को नदी पार करना पड़ता है.

आरा और पोखरिया गांव के बीच स्थित बड़की नदी पर पुल नहीं है. गांव के दर्जनों युवा मिलकर हर साल बरसात आने से पूर्व बड़की नदी पर लकड़ी, बांस और टायर का उपयोग कर करीब 25 फीट लंबा लकड़ी का पुल बनाते हैं. ताकि गांव के लोगों को शहर पहुंचने में आसानी हो सके.

गांव में रहने वाले सेवानिवृत नायक सुबेदार रामजी दास कहते हैं कि 6 सेवानिवृत जवान गांव में रह रहे हैं. जबकि 11 युवा देश की सेवा इस वक्त सेना में रह कर कर रहे हैं. स्थानीय जिला प्रशासन को इस गांव की चिंता तक नहीं है. कई बार सांसद, विधायक और जिला प्रशासन को पत्राचार भी किया है लेकिन अब तक उनकी नींद खुली नहीं है. देश आजादी की 75वीं सालगिरह मना रहा है, लेकिन इतने सालों में गांव को एक पुल तक नहीं मिला.

बड़की नदी पर पुल न होने से आरा गांव की गर्भवती महिलाएं प्रसव पीड़ा से कराहती नवजात को जन्म देने से पूर्व ही दम तोड़ देती हैं. ग्रामीणों ने बताया कि गांव का तीन किमी रास्ता पूरी तरह कच्चा और जंगल झाड़ से घिरा है. सरकारी सुविधा के नाम पर एक प्राइमरी स्कूल है. स्वास्थ्य केंद्र जाने के लिए भी नदी पार करना पड़ता है.

यह खबर दिखाने का एकमात्र उद्देश्य यह है कि जिला प्रशासन और सरकार तक यह बात पहुंचे कि एक ऐसा गांव है, जहां के युवा देश के लिए सेवा दे रहे हैं. लेकिन उनके परिवार वालों के लिए एक पुल भी सिस्टम नहीं दे पा रहा है.

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Last Updated : Jul 10, 2024, 12:53 PM IST
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