पटना : पटना हाईकोर्ट ने राज्य के माध्यमिक व उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) द्वारा नियुक्त शिक्षकों को विद्यालय के प्रधानाध्यापक का प्रभार सौंपने पर बड़ा फैसला लिया है. उच्च न्यायालय ने माध्यमिक शिक्षा निदेशालय द्वारा जारी आदेश पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाते हुए 7 अक्टूबर 2024 तक जवाब तलब किया.
4 सितंबर को जारी हुआ था आदेश : जस्टिस नानी तागिया की एकलपीठ ने किशोरी दास द्वारा दाखिल रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया. बता दें कि माध्यमिक शिक्षा निदेशक द्वारा इस आदेश को विगत 4 सितंबर को जारी किया गया था. जिसको लेकर नियोजित शिक्षक कई तरह के सवाल उठा रहे थे.
HC में रखा गया पक्ष : याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने बताया कि राज्य सरकार के शिक्षा निदेशालय द्वारा इस आशय का एक पत्र जारी किया गया है. जिसके अनुसार राज्य के जिस किसी भी माध्यमिक व उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में कोई भी नियोजित शिक्षक यदि प्रधानाध्यापक के प्रभार में हैं तो वह अविलंब बीपीएससी द्वारा नियुक्त शिक्षक को विद्यालय के प्रधानाध्यापक का प्रभार सौंप दें.
'8 वर्षों की सेवा अनुभव अनिवार्य' : बीपीएससी द्वारा नियुक्त शिक्षक, जो 1 वर्ष से कार्यरत हैं, जबकि नियमावली के अनुसार माध्यमिक विद्यालयों में प्रधानाध्यक पद के न्यूनतम 8 वर्षों की सेवा अनुभव अनिवार्य है. इस अधिसूचना के अनुसार शिक्षा विभाग ने बीपीएससी द्वारा नियुक्त ऐसे शिक्षकों को प्रधानाध्यापक बनाए जाने की बात कही है, जिनका अनुभव मात्र एक वर्ष का हीं है.
''माध्यमिक विद्यालयों में नियोजित शिक्षक, जिनका अनुभव 15 से 20 वर्षों का है, उनसे प्रभारी प्रधानाध्यक का पद वापस लेकर बीपीएससी के जरिये आये एक वर्ष से नियुक्त शिक्षकों को देने की बात कही गई है. यह कहां से न्यायोचित है?''- याचिकाकर्ता के अधिवक्ता
परिणाम आने के बाद पद भर जाएंगे : कोर्ट को यह भी बताया गया कि सरकार ने प्रधानाध्यापकों के पद पर नियमित नियुक्ति करने के लिए जो परीक्षा आयोजित करवाई थी, उसका परिणाम अभी तक नहीं आया है. परिणाम आने के बाद सभी विद्यालयों में प्रधानाध्यापक का पद स्वयं ही भर जाएगा.
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