पटनाः वैसे तो बिहार को धोबी समाज राज्य में 20 लाख से अधिक आबादी होने का दावा करता है लेकिन नीतीश सरकार की जातीय जनगणना के मुताबिक बिहार में इस जाति की संख्या 15 लाख से अधिक है. इन 15 लाख में 4 लाख के आसपास मुस्लिम धोबी की भी आबादी है. इतनी बड़ी संख्या के बावजूद बिहार की सियासत में धोबी समाज इन दिनों हाशिये पर है.
दलित वर्ग में दबदबाः बिहार में अनुसूचित जाति और उसमें भी महादलित की श्रेणी में आनेवाला धोबी समाज बौद्धिक और आर्थिक रूप से सबसे समृद्ध दलित समुदाय है. शिक्षा के क्षेत्र में दलितों में सबसे अधिक पढ़े-लिखे लोग धोबी समुदाय से है.आंकड़ों के अनुसार दलितों में आरक्षण का सबसे अधिक लाभ धोबी समुदाय ही ले रहा है और 3.14 फीसदी धोबी जाति के लोग सरकारी जॉब में हैं.आर्थिक मामले में भी धोबी जाति दलित में सबसे बेहतर स्थिति में है. सिर्फ 35.82% धोबी ही गरीबी रेखा से नीचे है. 67% से अधिक लोगों के पास पक्का घर है.
"धोबी दलित वर्ग में बौद्धिक रूप से आगे हैं. आर्थिक स्थिति भी इनकी दलित वर्ग में अन्य जातियों से बेहतर है. संपन्नता के मामले में और पढ़ाई लिखाई के मामले में धोबी जाति बेहतर है. सरकारी जॉब में भी इस वर्ग से अधिक लोग हैं साथ ही उच्च पदों पर भी हैं. जिससे अपने समाज के अन्य वर्गों को प्रभावित भी कर रहे हैं."-चंद्रभूषण राय, प्रोफेसर, पटना कॉलेज.
सियासत में हाशिये परः बौद्धिक और आर्थिक रूप से समृद्ध होने के बादजूद इन दिनों बिहार की सियासत में धोबी समुदाय हाशिये पर दिख रहा है. फिलहाल बिहार में इस जाति के ना तो एक विधायक हैं और न ही एक सांसद. एक एमएलसी मुन्नी रजक हैं जिसे राजद ने बनाया है. हां अभी श्याम रजक इस समाज के सबसे बड़े चेहरे हैं जो 6 बार विधायक रहे हैं और बिहार सरकार मं 14 साल तक मंत्री भी रहे हैं.
कभी सियासत में थी अच्छी उपस्थिति: ऐसा नहीं है कि धोबी समुदाय हमेशा से बिहार की सियासत में हाशिए पर रहा है. एक जमाना था जब इस समाज के नेता के हाथों में प्रदेश कांग्रेस की कमान थी. इस समुदाय से कई सांसद और विधायक हुए हैं तो कई नेता केंद्रीय मंत्री तक रह चुके हैं.
डूमरलाल बैठा थे बड़े नेताः धोबी समुदाय के सियासी इतिहास की बात करें तो 1952 में हुए बिहार विधानसभा के पहले चुनाव में इस समुदाय से रघुनी बैठा और डूमरलाल बैठा विधायक बने. डूमरलाल बैठा तो 1972 तक विधायक रहे. इसके अलावा वो 1980 और 1984 में लगातार दो बार अररिया से सांसद रहे. डूमरलाल बैठा 1985 से 1988 तक बिहार प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे और राजीव गांधी कैबिनेट में मंत्री पद भी सुशोभित किया.
बगहा से लगातार सांसद रहे महेंद्र बैठाः इसके अलावा बगहा लोकसभा और विधानसभा सीट से भी धोबी समुदाय के ही सांसद-विधायक बनते रहे. महेंद्र बैठा बगहा लोकसभा से 1989, 1991,1996, 1998 और 1999 तक पांच बार सांसद रहे तो 2004 में बगहा से कैलाश बैठा भी सांसद बने. इसके अलावा नरसिंह बैठा बगहा विधानसभा से 6 बार विधायक रहे. 2009 में परिसीमन के बाद बगहा लोकसभा का अस्तित्व समाप्त हो गया और धोबी जाति का प्रतिनिधित्व भी समाप्त हो गया.
फिलहाल श्याम रजक हैं बड़ा चेहराः वर्तमान में देखा जाए तो श्याम रजक बिहार में धोबी समुदाय के बड़े नेता नजर आते हैं. श्याम रजक जहां अखिल भारतीय धोबी महासंघ के अध्यक्ष रह चुके हैं तो सियासत में भी जोरदार जलवा दिखाया है. वे फुलवारीशरीफ विधानसभा सीट से 6 बार विधायक रहे तो लालू-राबड़ी, नीतीश और जीतन राम मांझी के मंत्रिमंडल में 14 साल तक मंत्री भी रहे. 2020 में श्याम रजक को फुलवारीशरीफ से टिकट नहीं मिल पाया लेकिन जेडीयू में आने के बाद फिर से उन्हें टिकट मिलने की उम्मीद है.
"राजनीतिक रूप से जितनी भागीदारी धोबी समाज को मिलनी चाहिए उतनी नहीं मिली है. लेकिन श्याम रजक के आने से इस समाज की उम्मीद जगी है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ऐसे सभी वंचित वर्ग को आगे बढ़ाने में अपनी भूमिका निभाते रहे हैं.इस समाज के आने वाले लोगों को भी उन्होंने संसद और विधायक बनाया है."-विद्यानंद विकल, अध्यक्ष, स्टेट फूड कमीशन
राज धोबी की स्थिति बेहतर नहींः बिहार में धोबी जाति की एक उपजाति राज धोबी है जिसे अति पिछड़ा वर्ग में रखा गया है. राज धोबी के लोग अनुसूचित जाति में शामिल करने की मांग लगातार करते रहे हैं. इसको सम्मेलन भी करते रहे हैं. राज धोबी को लेकर पटना एन सिंह इंस्टिट्यूट में एक अध्ययन भी किया गया था जिसमें ये कहा गया था कि उनकी राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है.
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