पटनाः जिस राज्य को देश के पिछड़े और गरीब राज्यों में गिना जाता है उस राज्य में खाद्यान्न बर्बादी के आंकड़े बेहद ही चौंकाने वाले हैं. अनुमान के मुताबिक में बिहार में हर साल 70 लाख टन से ज्यादा खाद्दान्न यूं ही बर्बाद हो जाता है. यकीन मानिए इतने अनाज में छोटे-मोटे राज्य की साल भर की खाने की जरूरत पूरी हो सकती है.
हर साल 70 लाख टन बर्बाद: बिहार खाद्यान्न के पैदावार में अव्वल है लेकिन खाद्यान्न का एक बड़ा हिस्सा बर्बाद हो जाता है. आंकड़ों के मुताबिक बिहार में हर साल 200 लाख टन अनाज की पैदावार होती है. इतने उत्पादन के बावजूद बिहार के किसान खुशहाल नहीं है.वजह यह है कि लाखों मीट्रिक टन फसल किसानों के बर्बाद हो जाते हैं. बिहार में लगभग 70 लाख टन फल सब्जी और अनाज गोदाम की उपलब्धता के अभाव में बर्बाद हो जाते हैं.
फल और सब्जी की ज्यादा बर्बादीः आंकड़ों के मुताबिक बिहार में 11.2 लाख टन आम हर साल बर्बाद होते हैं. इसके अलावा 3.2 लाख टन केला, 3.4 लाख टन अमरूद, 28.3 लाख टन आलू, 5.5 टन प्याज, 5.5 लाख टन टमाटर, 3.2 लाख टन पत्ता गोभी और 4.5 लाख टन फूलगोभी हर साल बर्बाद होते हैं. इसके अलावा 1.5 लाख टन गेहूं और 2 लाख टन चावल की बर्बादी होती है. सब्जी बर्बादी के मामले में बिहार पूरे देश में पांचवें नंबर पर है तो फल बर्बादी में चौथे स्थान पर है.
अनाज के साथ-साथ फल और सब्जी की बंपर पैदावारः उत्पादन की अगर बात कर लें तो बिहार में 200 लाख टन अनाज की पैदावार होती है और 163 लाख टन सब्जी की पैदावार है फल की अगर बात कर ले तो बिहार में 52 लाख टन फल का उत्पादन होता है. सब्जी के उत्पादन में बिहार जहां चौथे स्थान पर है तो फल उत्पादन में आठवें स्थान पर है.
12 जिले में नहीं है कोल्ड स्टोरेजः बिहार में खाद्यान्न की बर्बादी की सबसे बड़ा कारण है स्टोरेज की क्षमता में कमी. स्टोरेज के मामले में भी बिहार की स्थिति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बिहार के 12 जिले ऐसे हैं जहां कोल्ड स्टोरेज ही नहीं हैं. अब समझिये ! बिहार जैसे राज्य की कोल्ड स्टोरेज क्षमता जहां सिर्फ 22.51 लाख मीट्रिक टन है वहीं पंजाब की स्टोरेज क्षमता 233.99 लाख मीट्रिक टन है.
प्रखंड स्तर पर कोल्ड स्टोरेज का प्लान नहीं चढ़ पाया परवानः बिहार सरकार ने राज्य के हर प्रखंड में कोल्ड स्टोरेज खोलने की योजना बनाई थी और इसको लेकर कैबिनेट ने स्वीकृति भी दे रखी है. जिसके मुताबिक हर प्रखंड में 2000 मीट्रिक टन की क्षमता वाले गोदाम का निर्माण किया जाना है, लेकिन अब तक योजना अधूरी पड़ी है.
भारत में 19 करोड़ लोग भूखे सोते हैंः नेशनल हेल्थ सर्वे की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 19 करोड़ लोग भूखे सोते हैं जबकि देश में 40% खाद्यान्न बर्बाद हो जाते हैं.खाद्यान्न बर्बाद होने के मामले में भारत दूसरे स्थान पर है और हर साल करीब 92 हजार करोड़ रुपये के खाद्यान्न बर्बाद होते हैं.
'भंडारण की कमी से नुकसान': इसको लेकर किसान रघुवीर मोची का कहना है कि बिहार में खाद्यान्नों का उत्पादन तो पर्याप्त होता है लेकिन बड़े पैमाने पर खाद्यान्न बर्बाद होते हैं. भंडारण नहीं होने के चलते किसानों को भारी नुकसान होता है.सरकार को चाहिए कि पंचायत स्तर पर कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्था करें ताकि किसानों को फसल की उचित कीमत मिल सके.
बिहार के लिए बड़ी चुनौती है खाद्यान्न बर्बादीः वहीं अर्थशास्त्री डॉक्टर अविरल पांडेय का मानना है कि खाद्यान्न की बर्बादी बिहार जैसे राज्य के लिए चुनौती है.बिहार की निर्भरता कृषि पर है और किसानों की आय तभी बढ़ेगी जब किसानों को उनकी फसल की उचित कीमत मिलेगी. किसानों को उचित कीमत तभी मिलेगी जब उनकी फसल बर्बाद नहीं होंगी.
" बिहार में लगभग 70 लाख टन अनाज फल और सब्जियां हर साल बर्बाद होते हैं, जिसकी कीमत 3000 करोड़ के आसपास होती है.सरकार को चाहिए कि अनाज के भंडारण के लिए व्यवस्था करे." डॉ. अविरल पांडेय, अर्थशास्त्री
'स्थानीय स्तर पर गोदामों की जरूरत': अर्थशास्त्री डॉक्टर विद्यार्थी विकास कहते हैं कि किसानों की फसल कम से कम बर्बाद हो इसके लिए स्थानीय स्तर पर वेयरहाउस का निर्माण होना चाहिए. किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य स्थानीय स्तर पर मिल जाए और स्थानीय स्तर पर मंडी के व्यवस्था हो जाए तो किसान अपनी फसल बेच पाएंगे और उन्हें उचित कीमत भी मिल जाएगी.
केरल की 1 साल की जरूरत के बराबर होती है बर्बादीः एनएसएस के आंकड़ों के अनुसार अनुमानित प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष अनाज-फल-सब्जी का उपभोग 180 किलोग्राम के आसपास है. जबकि बिहार में लगभग 70 लाख टन खाद्यान्न बर्बाद हो रहा है. ऐसे में बिहार में अनाज, फल और सब्जियों की बर्बादी पर गौर करें तो समझ में आएगा कि यहां साल भर में जितना बर्बाद होता है उससे केरल की 3.50 करोड़ की आबादी की साल भर के खाने की जरूरत पूरी हो सकती है.
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