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सिजोफ्रेनिया से पीड़ित मरीज देते हैं बड़ी वारदातों को अंजाम, जानें कैसे होता है इलाज - LUCKNOW NEWS

सिजोफ्रेनिया को कुछ लोग स्प्लिट पर्सनैलिटी समझते हैं, तो कुछ लोगों के लिए यह एक डिसऑर्डर है.

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सिजोफ्रेनिया गंभीर मानसिक बीमारी (photo credit; Etv Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 26, 2024, 8:15 PM IST

लखनऊ: हाल ही में हाथरस में एक 14 साल के लड़के ने एक 11 साल के लड़के की हत्या कर दी थी. पुलिस ने अपनी जांच-पड़ताल में इस मामले का खुलासा किया. बड़ी बात यह है कि एक 14 साल का लड़का बालक ऐसे बिना किसी बात के किसी को कैसे मार सकता है. इस पर ईटीवी भारत ने अधिक जानकारी के लिए लखनऊ के सिविल अस्पताल की मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. दिप्ती सिंह और बलरामपुर अस्पताल के मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. सौरभ से बातचीत की. विशेषज्ञों ने इसे एक गंभीर बीमारी बताया है.

सिजोफ्रेनिया गंभीर मानसिक बीमारी: विशेषज्ञों का कहना है कि सिजोफ्रेनिया एक गंभीर मानसिक बीमारी है. ये बीमारी ज्यादातर बचपन में या फिर किशोरावस्था में होती है. सिजोफ्रेनिया के मरीज को ज्यादातर भ्रम और डरावने साए दिखने की शिकायत होती है. कई अन्य समस्याएं भी इस बीमारी के मरीज को हो सकती हैं. सिजोफ्रेनिया के मरीज को इस बीमारी से जूझने में जिंदगी भर भी संघर्ष करना पड़ सकता है. सिजोफ्रेनिया को मानसिक रोगों में सबसे खतरनाक समस्या माना जाता है. सिजोफ्रेनिया का मरीज बहुत आसानी से जिंदगी से निराश हो सकता है. कई बार तो मरीज को आत्महत्या करने की भी प्रबल इच्छा होती है.

इसे भी पढ़ें - एचपीवी वायरस का अटैक; 1000 में से 20 महिलाएं सर्वाइकल कैंसर की शिकार, बचाव के लिए अपनाएं ये तरीका - HPV VIRUS ATTACK

सिविल अस्पताल की मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. दीप्ति सिंह ने बताया कि सिजोफ्रेनिया एक मानसिक बीमारी है, जो बहुत ही गंभीर मानी जाती है. सिजोफ्रेनिया के मरीज अक्सर एक तरह के भ्रम की स्थिति में रहते हैं. ये बीमारी पुरुष और महिलाओं को किसी भी उम्र में हो सकती है. कई लोग इस बीमारी को स्प्लिट पर्सनैलिटी समझते हैं. जबकि ये एक दूसरे तरह का डिसऑर्डर है.

उन्होंने कहा कि सिजोफ्रेनिया के कुछ मरीज एक काल्पनिक दुनिया में रहते हैं. वास्तविक दुनिया से दूर इनके अलग विचार होते हैं. इसकी वजह से इनकी भावना, व्यवहार और क्षमता में बदलाव आ जाते हैं. ये लोग अपने भावनाओं को सही तरीके से व्यक्त नहीं कर पाते हैं. जिंदगी से इनकी दिलचस्पी खत्म हो जाती है. किसी भी बात को लेकर ये बहुत ज्यादा भावुक या अक्रामक हो जाते हैं. कभी-कभी ऐसे मरीज खुद को एकदम अकेला बना लेते हैं.

ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान बलरामपुर अस्पताल के मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. सौरभ ने कहा कि महीने में ही नहीं बल्कि एक दिन में आठ से दस सिजोफ्रेनिया से पीड़ित मरीज अस्पताल की ओपीडी में पहुंचते हैं. इन मरीजों में एक समान लक्षण होते हैं. इनको ऐसा लगता है कि इनके पास कोई ऐसा सबूत है या फार्मूला है जो पड़ोसी मुल्क उससे लेना चाह रहा है. ऐसे मरीजों को लगता है कि कोई उसे मारना चाह रहा है.

उसे भगा रहा है. परेशान कर रहे हैं. इस तरह के विचार मरीज के मस्तिष्क में बनते हैं. कई बार ऐसा होता है, कि इन्हीं सब विचारों के कारण मरीज आत्महत्या या मर्डर जैसा कदम भी उठा लेता है. कभी-कभी ऐसे मरीज खुद को ही नुकसान पहुंचा लेते हैं तो कभी-कभी यह मरीज अपराधी समझ कर दूसरों पर ही वार कर देते हैं.


हाथरस जिले की चन्दपा कोतवाली क्षेत्र के गांव अल्हेपुर चुरसेन के घनश्याम सिंह का बेटा कृतार्थ (11) गांव रासगवां के डीएल पब्लिक स्कूल में कक्षा 2 में पढ़ता था. वह स्कूल के हॉस्टल में रहता था. उसकी 22 सितंबर की रात हत्या कर दी गई थी. परिजनों ने इस मामले में मुकदमा दर्ज कराया था. पुलिस ने मामले में स्कूल संचालक दिनेश बघेल उसके पिता जशोधन सिंह, राम प्रकाश सोलंकी, लक्ष्मण सिंह तथा वीरपाल सिंह को जेल भेज दिया था.

अब पुलिस ने छात्र कृतार्थ की हत्या में मथुरा जिले के एक गांव के 14 साल के छात्र को आरोपी माना है. उन्होंने बताया कि छात्र को 16 दिसंबर को गिरफ्तार कर बाल सुधार गृह भेज दिया गया था. इस छात्र ने इसी साल स्कूल में प्रवेश लिया था. वह हॉस्टल में रहता था. वह स्कूल से घर जाना चाहता था, उसने कभी पहले मोबाइल पर देखा था कि किसी छात्र की मौत हो जाने पर स्कूल बंद हो जाता है तो उसने भी घर जाने के लिए यही तरीका अपनाया. सोते समय कृतार्थ की अंगोछे से गला दबाकर हत्या कर दी.


सिजोफ्रेनिया के लक्षण

  • किसी बात का डर होना.
  • कोई भी बात दिमाग में हमेशा चलते रहना, जिससे कि भय पैदा हो.
  • दोस्तों और परिवार से खुद को अलग कर लेना.
  • दोस्त या सोशल ग्रुप बदलते रहना.
  • किसी चीज पर फोकस न कर पाना.
  • नींद की समस्या और चिड़चिड़ापन.
  • पढ़ाई-लिखाई में समस्या होना.

    कारण
  • बायोलॉजिकल कारण से भी हो सकता हैं.
  • जेनेटिक कारण से भी हो सकता हैं.
  • सामाजिक स्थिति के कारण भी हो सकता हैं.

सिजोफ्रेनिया से बचाव : डॉ. दिप्ती ने बताया कि सिजोफ्रेनिया का कोई परमानेंट इलाज नहीं है. इसके लिए जरूरी है कि मरीज का अच्छे से ख्याल रखा जाये. घर परिवार के लोगों के बीच में रहे. मरीज को समय-समय पर मनोरोग विशेषज्ञ जरूर मिलाएं. इलाज में कोई गैप न करें.

यह भी पढ़ें - खुशखबरी ; गोरखपुर बीआरडी मेडिकल कॉलेज में बच्चों के टेढ़े मेढ़े हाथ पैरों का इलाज शुरू - BRD Medical College Gorakhpur - BRD MEDICAL COLLEGE GORAKHPUR

लखनऊ: हाल ही में हाथरस में एक 14 साल के लड़के ने एक 11 साल के लड़के की हत्या कर दी थी. पुलिस ने अपनी जांच-पड़ताल में इस मामले का खुलासा किया. बड़ी बात यह है कि एक 14 साल का लड़का बालक ऐसे बिना किसी बात के किसी को कैसे मार सकता है. इस पर ईटीवी भारत ने अधिक जानकारी के लिए लखनऊ के सिविल अस्पताल की मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. दिप्ती सिंह और बलरामपुर अस्पताल के मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. सौरभ से बातचीत की. विशेषज्ञों ने इसे एक गंभीर बीमारी बताया है.

सिजोफ्रेनिया गंभीर मानसिक बीमारी: विशेषज्ञों का कहना है कि सिजोफ्रेनिया एक गंभीर मानसिक बीमारी है. ये बीमारी ज्यादातर बचपन में या फिर किशोरावस्था में होती है. सिजोफ्रेनिया के मरीज को ज्यादातर भ्रम और डरावने साए दिखने की शिकायत होती है. कई अन्य समस्याएं भी इस बीमारी के मरीज को हो सकती हैं. सिजोफ्रेनिया के मरीज को इस बीमारी से जूझने में जिंदगी भर भी संघर्ष करना पड़ सकता है. सिजोफ्रेनिया को मानसिक रोगों में सबसे खतरनाक समस्या माना जाता है. सिजोफ्रेनिया का मरीज बहुत आसानी से जिंदगी से निराश हो सकता है. कई बार तो मरीज को आत्महत्या करने की भी प्रबल इच्छा होती है.

इसे भी पढ़ें - एचपीवी वायरस का अटैक; 1000 में से 20 महिलाएं सर्वाइकल कैंसर की शिकार, बचाव के लिए अपनाएं ये तरीका - HPV VIRUS ATTACK

सिविल अस्पताल की मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. दीप्ति सिंह ने बताया कि सिजोफ्रेनिया एक मानसिक बीमारी है, जो बहुत ही गंभीर मानी जाती है. सिजोफ्रेनिया के मरीज अक्सर एक तरह के भ्रम की स्थिति में रहते हैं. ये बीमारी पुरुष और महिलाओं को किसी भी उम्र में हो सकती है. कई लोग इस बीमारी को स्प्लिट पर्सनैलिटी समझते हैं. जबकि ये एक दूसरे तरह का डिसऑर्डर है.

उन्होंने कहा कि सिजोफ्रेनिया के कुछ मरीज एक काल्पनिक दुनिया में रहते हैं. वास्तविक दुनिया से दूर इनके अलग विचार होते हैं. इसकी वजह से इनकी भावना, व्यवहार और क्षमता में बदलाव आ जाते हैं. ये लोग अपने भावनाओं को सही तरीके से व्यक्त नहीं कर पाते हैं. जिंदगी से इनकी दिलचस्पी खत्म हो जाती है. किसी भी बात को लेकर ये बहुत ज्यादा भावुक या अक्रामक हो जाते हैं. कभी-कभी ऐसे मरीज खुद को एकदम अकेला बना लेते हैं.

ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान बलरामपुर अस्पताल के मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. सौरभ ने कहा कि महीने में ही नहीं बल्कि एक दिन में आठ से दस सिजोफ्रेनिया से पीड़ित मरीज अस्पताल की ओपीडी में पहुंचते हैं. इन मरीजों में एक समान लक्षण होते हैं. इनको ऐसा लगता है कि इनके पास कोई ऐसा सबूत है या फार्मूला है जो पड़ोसी मुल्क उससे लेना चाह रहा है. ऐसे मरीजों को लगता है कि कोई उसे मारना चाह रहा है.

उसे भगा रहा है. परेशान कर रहे हैं. इस तरह के विचार मरीज के मस्तिष्क में बनते हैं. कई बार ऐसा होता है, कि इन्हीं सब विचारों के कारण मरीज आत्महत्या या मर्डर जैसा कदम भी उठा लेता है. कभी-कभी ऐसे मरीज खुद को ही नुकसान पहुंचा लेते हैं तो कभी-कभी यह मरीज अपराधी समझ कर दूसरों पर ही वार कर देते हैं.


हाथरस जिले की चन्दपा कोतवाली क्षेत्र के गांव अल्हेपुर चुरसेन के घनश्याम सिंह का बेटा कृतार्थ (11) गांव रासगवां के डीएल पब्लिक स्कूल में कक्षा 2 में पढ़ता था. वह स्कूल के हॉस्टल में रहता था. उसकी 22 सितंबर की रात हत्या कर दी गई थी. परिजनों ने इस मामले में मुकदमा दर्ज कराया था. पुलिस ने मामले में स्कूल संचालक दिनेश बघेल उसके पिता जशोधन सिंह, राम प्रकाश सोलंकी, लक्ष्मण सिंह तथा वीरपाल सिंह को जेल भेज दिया था.

अब पुलिस ने छात्र कृतार्थ की हत्या में मथुरा जिले के एक गांव के 14 साल के छात्र को आरोपी माना है. उन्होंने बताया कि छात्र को 16 दिसंबर को गिरफ्तार कर बाल सुधार गृह भेज दिया गया था. इस छात्र ने इसी साल स्कूल में प्रवेश लिया था. वह हॉस्टल में रहता था. वह स्कूल से घर जाना चाहता था, उसने कभी पहले मोबाइल पर देखा था कि किसी छात्र की मौत हो जाने पर स्कूल बंद हो जाता है तो उसने भी घर जाने के लिए यही तरीका अपनाया. सोते समय कृतार्थ की अंगोछे से गला दबाकर हत्या कर दी.


सिजोफ्रेनिया के लक्षण

  • किसी बात का डर होना.
  • कोई भी बात दिमाग में हमेशा चलते रहना, जिससे कि भय पैदा हो.
  • दोस्तों और परिवार से खुद को अलग कर लेना.
  • दोस्त या सोशल ग्रुप बदलते रहना.
  • किसी चीज पर फोकस न कर पाना.
  • नींद की समस्या और चिड़चिड़ापन.
  • पढ़ाई-लिखाई में समस्या होना.

    कारण
  • बायोलॉजिकल कारण से भी हो सकता हैं.
  • जेनेटिक कारण से भी हो सकता हैं.
  • सामाजिक स्थिति के कारण भी हो सकता हैं.

सिजोफ्रेनिया से बचाव : डॉ. दिप्ती ने बताया कि सिजोफ्रेनिया का कोई परमानेंट इलाज नहीं है. इसके लिए जरूरी है कि मरीज का अच्छे से ख्याल रखा जाये. घर परिवार के लोगों के बीच में रहे. मरीज को समय-समय पर मनोरोग विशेषज्ञ जरूर मिलाएं. इलाज में कोई गैप न करें.

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