अलवर. शास्त्रों में गाय को माता का दर्जा दिया गया है. गाय की हर तरह से सेवा और रक्षा करना पुण्य माना जाता है. अलवर जिले में वैसे तो बहुत गौशाला हैं, जिनमें गायों की सेवा की जाती है, लेकिन अलवर शहर के स्टेशन रोड स्थित सार्वजनिक गौशाला अलग है. यहां गायों की सेवा मानव की तरह की जाती है. भीषण गर्मी के इस दौर में इस गौशाला में कूलर-पंखे की भी व्यवस्था की गई है. साथ ही गोवंशों को तरबूज, ककड़ी और अन्य कई तरह की फल-सब्जियां दी जा रही हैं.
गौशाला में करीब 650 पशुधन हैं : सार्वजनिक गौशाला के व्यवस्थापक राधेश्याम ने बताया कि इस गौशाला की स्थापना अलवर के तत्कालीन राजा दुर्जन सिंह की ओर से एक गाय दान देकर 7 बीघा जमीन पर शुरू की गई थी. इसके बाद से इस गौशाला को व्यापारी वर्ग के सहयोग से संचालित किया गया. सन 1998 तक गौशाला में 60 गायें थीं. वहीं, गौशाला समिति के अध्यक्ष अजय अग्रवाल ने बताया कि 1998 के बाद इस गौशाला को चलाने में थोड़ी परेशानी आई, लेकिन सभी वर्गों ने एकजुट होकर कार्य किया और आज इसके परिणाम स्वरूप गौशाला में करीब 650 पशुधन हैं.
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नस्ल सुधार पर किया काम : अजय अग्रवाल ने बताया कि 2005 से 2015 तक गोवंशों में नस्ल सुधार के लिए इस गौशाला में कार्य किया गया, जिसमें सभी नस्लों को देखते हुए गाय की छटनी की गई और दूध देने वाली गायों को तैयार किया गया. व्यवस्थापक राधेश्याम ने बताया कि इस गौशाला में कर्मचारियों व मशीनों की ओर से गाय का दूध निकाला जाता है. गर्मियों के समय में करीब 250 किलो दूध निकलता है. शहर के लोग भी दूध लेने के लिए आते हैं. गौशाला में 68 रुपए प्रति लीटर के हिसाब से दूध दिया जाता है. यहां आने वाली जरूरतमंद महिलाओं को सबसे पहले दूध दिया जाता है, जिनके छोटे बच्चे हैं या जो गर्भवती हैं.
गर्मी के लिए पर्याप्त व्यवस्था : व्यवस्थापक राधेश्याम ने बताया कि सार्वजनिक गौशाला में गायों के लिए पर्याप्त व्यवस्था है. यहां पर गायों के लिए कूलर, पंखे पर्याप्त हैं. साथ ही हरे मैट से पूरी जगह को ढंका गया है, जिससे गर्मी के चलते किसी भी गोवंश को परेशानी का सामना न करना पड़े. गौशाला में दिन में 3 बार सफाई की जाती है. गायों को 3 हजार किलो हरा चारा, 300 किलो दाना डाला जाता है. इसके साथ ही गर्मी मे तरबूज, घीया, टमाटर, कोला सहित अन्य फल व सब्जी करीब 2 हजार किलो रोजाना खिलाया जाता है.
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यहां सबसे पहले हुआ वैक्सीनेशन : व्यवस्थापक राधेश्याम का अनुमान है कि संभवत: सार्वजनिक गौशाला प्रदेश की पहली ऐसी गौशाला है, जहां लंपी वायरस में सबसे पहले वैक्सीनेशन का कार्य हुआ. साथ ही इस गौशाला में लंपी वायरस के दौरान एक भी पशुधन की मौत नहीं हुई. सार्वजनिक गौशाला में गाय, बछड़े, बिनजार सभी को अलग-अलग रखा जाता है. इनकी समय समय पर खाने की व्यवस्था को भी परखा जाता है. साथ ही गौशाला मे एक वेटिनेरी डॉक्टर की सेवा भी निरंतर उपलब्ध रहती है.