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आखिर क्यों बिलासपुर में बेहतर नहीं रहा वोटिंग प्रतिशत ? - Bilaspur Loksabha election

बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र में इस बार वोटिंग प्रतिशत 64.77 रहा है. वोटिंग प्रतिशत को लेकर प्रदेश के पॉलिटिकल एक्सपर्ट ने चिंता जाहिर की है. इस बार का वोटिंग ट्रेंड कैसा रहा इस पर भी राजनीतिक के जानकारों ने अपना मत जाहिर किया है.

voting percentage in Bilaspur
बिलासपुर वोटिंग प्रतिशत (ETV BHARAT CHHATTISGARH)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : May 8, 2024, 10:14 PM IST

Updated : May 8, 2024, 10:57 PM IST

बिलासपुर में वोटिंग प्रतिशत ने बढ़ाई चिंता (ETV BHARAT CHHATTISGARH)

बिलासपुर: छत्तीसगढ़ में तीन चरणों में लोकसभा चुनाव हुआ. तीसरे चरण का मतदान 7 मई को संपन्न हुआ. अब प्रदेश में लोकसभा चुनाव खत्म हो चुका है. यहां के प्रत्याशियों का भाग्य का फैसला ईवीएम में कैद हो गया है. वहीं, वोटिंग प्रतिशत बहुत ज्यादा न बढ़ने पर पॉलिटिकल एक्सपर्ट ने चिंता जाहिर की है. राजनीति के जानकारों की मानें तो भले ही यह चुनाव राजनीतिक पार्टियां आस्था, महंगाई और महिला सुरक्षा, संविधान की रक्षा के मुद्दे को लेकर लड़ी हो पर बिलासपुर लोकसभा में मतदान में उन मुद्दों का कोई खास असर नहीं पड़ा. बिलासपुर के 64 प्रतिशत मतदान को देखा जाए तो यह प्रतिशत बहुत ज्यादा नहीं है. पिछले चुनाव के मुकाबले भले ही दो-तीन पर्सेंट मतदान अधिक हुआ है, लेकिन इस बार मतदाताओं में किसी खास मुद्दा का असर नहीं देखने को मिला.

वोटरों पर नहीं पड़ा योजनाओं का प्रभाव: दरअसल, बिलासपुर लोकसभा सीट पर पिछले तीन चुनाव के मुकाबले इस बार अधिक वोटिंग हुई है. इस मामले में राजनीतिक जानकार अपनी अलग-अलग राय दे रहे हैं. यह बात तो साफ है कि चुनाव आयोग के साथ ही राजनीतिक पार्टियों के द्वारा किए गए प्रचार-प्रसार का बहुत ज्यादा असर मतदाताओं पर नहीं पड़ा है. एक तरफ निर्वाचन आयोग ने स्वीप कार्यक्रम के माध्यम से मतदान जागरूकता के लिए सैकड़ों कार्यक्रम करवाए. वहीं, दूसरी तरफ देश की दो बड़ी राजनीतिक पार्टी मतदाताओं को रिझाने के लिए कई योजनाओं का जिक्र किया. कई मुद्दों को चुनाव में उछाला गया.

जानिए क्या कहते हैं पॉलिटिकल एक्सपर्ट: इस बारे में ईटीवी भारत ने पॉलिटिकल एक्सपर्ट शशांक दुबे से बातचीत की. उन्होंने कहा कि, "जिस तरह से देश में दोनों ही पार्टियां देशव्यापी मुद्दों के साथ ही स्थानीय मुद्दों को लेकर चुनावी मैदान में उतरी और चुनाव लड़ा, उसमें बिलासपुर लोकसभा का चुनाव मुद्दा विहीन रहा. जिस तरह से भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवार चुनावी मैदान में जिन मुद्दों को लेकर उतरे थे, उनमें आस्था, महंगाई, सनातन धर्म और संविधान का मुद्दा रहा. जिस तरह से भाजपा प्रत्याशी तोखन साहू ने सनातन धर्म की रक्षा की बात कहते हुए वोट की अपील की. वहीं कांग्रेस प्रत्याशी देवेंद्र यादव ने संविधान की रक्षा को लेकर मतदाताओं से वोट मांगा. हालांकि मतदाताओं पर दोनों के वक्तव्य का कोई प्रभाव नहीं पड़ा. ऐसे में बिलासपुर लोकसभा मुद्दा विहीन रहा.

मतदाताओं को लुभाना नहीं आसान: ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान पॉलिटिकल एक्सपर्ट निर्मल माणिक ने कहा कि, "जिस तरह देश में बड़े-बड़े मुद्दों को लेकर चुनाव लड़ा गया. जैसे आस्था, मंदिर निर्माण से लेकर और भी जितने सारे मुद्दे आए. उसका वोटरों पर खास असर नहीं पड़ा. जनता को प्रत्याशियों पर भरोसा नहीं है. अगर जनता को भरोसा होता तो निश्चित तौर पर मतदान का प्रतिशत 80–85 फीसदी तक पहुंच सकता था. 65 फीसदी के आसपास की वोटिंग ये जाहिर करता है कि मतदाताओं को अब लुभाया नहीं जा सकता है. मतदाता अपनी मर्जी से वोट करते हैं."

यानी कि बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र के वोटरों पर सियासी दलों के दावों और वादों का कोई खास असर नहीं पड़ा. ये वोटर अपने अनुसार ही वोट करने पहुंचे. वहीं, क्षेत्र के वोटिंग प्रतिशत को लेकर पॉलिटिकल एक्सपर्ट ने चिंता जाहिर की है.

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बिलासपुर: छत्तीसगढ़ में तीन चरणों में लोकसभा चुनाव हुआ. तीसरे चरण का मतदान 7 मई को संपन्न हुआ. अब प्रदेश में लोकसभा चुनाव खत्म हो चुका है. यहां के प्रत्याशियों का भाग्य का फैसला ईवीएम में कैद हो गया है. वहीं, वोटिंग प्रतिशत बहुत ज्यादा न बढ़ने पर पॉलिटिकल एक्सपर्ट ने चिंता जाहिर की है. राजनीति के जानकारों की मानें तो भले ही यह चुनाव राजनीतिक पार्टियां आस्था, महंगाई और महिला सुरक्षा, संविधान की रक्षा के मुद्दे को लेकर लड़ी हो पर बिलासपुर लोकसभा में मतदान में उन मुद्दों का कोई खास असर नहीं पड़ा. बिलासपुर के 64 प्रतिशत मतदान को देखा जाए तो यह प्रतिशत बहुत ज्यादा नहीं है. पिछले चुनाव के मुकाबले भले ही दो-तीन पर्सेंट मतदान अधिक हुआ है, लेकिन इस बार मतदाताओं में किसी खास मुद्दा का असर नहीं देखने को मिला.

वोटरों पर नहीं पड़ा योजनाओं का प्रभाव: दरअसल, बिलासपुर लोकसभा सीट पर पिछले तीन चुनाव के मुकाबले इस बार अधिक वोटिंग हुई है. इस मामले में राजनीतिक जानकार अपनी अलग-अलग राय दे रहे हैं. यह बात तो साफ है कि चुनाव आयोग के साथ ही राजनीतिक पार्टियों के द्वारा किए गए प्रचार-प्रसार का बहुत ज्यादा असर मतदाताओं पर नहीं पड़ा है. एक तरफ निर्वाचन आयोग ने स्वीप कार्यक्रम के माध्यम से मतदान जागरूकता के लिए सैकड़ों कार्यक्रम करवाए. वहीं, दूसरी तरफ देश की दो बड़ी राजनीतिक पार्टी मतदाताओं को रिझाने के लिए कई योजनाओं का जिक्र किया. कई मुद्दों को चुनाव में उछाला गया.

जानिए क्या कहते हैं पॉलिटिकल एक्सपर्ट: इस बारे में ईटीवी भारत ने पॉलिटिकल एक्सपर्ट शशांक दुबे से बातचीत की. उन्होंने कहा कि, "जिस तरह से देश में दोनों ही पार्टियां देशव्यापी मुद्दों के साथ ही स्थानीय मुद्दों को लेकर चुनावी मैदान में उतरी और चुनाव लड़ा, उसमें बिलासपुर लोकसभा का चुनाव मुद्दा विहीन रहा. जिस तरह से भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवार चुनावी मैदान में जिन मुद्दों को लेकर उतरे थे, उनमें आस्था, महंगाई, सनातन धर्म और संविधान का मुद्दा रहा. जिस तरह से भाजपा प्रत्याशी तोखन साहू ने सनातन धर्म की रक्षा की बात कहते हुए वोट की अपील की. वहीं कांग्रेस प्रत्याशी देवेंद्र यादव ने संविधान की रक्षा को लेकर मतदाताओं से वोट मांगा. हालांकि मतदाताओं पर दोनों के वक्तव्य का कोई प्रभाव नहीं पड़ा. ऐसे में बिलासपुर लोकसभा मुद्दा विहीन रहा.

मतदाताओं को लुभाना नहीं आसान: ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान पॉलिटिकल एक्सपर्ट निर्मल माणिक ने कहा कि, "जिस तरह देश में बड़े-बड़े मुद्दों को लेकर चुनाव लड़ा गया. जैसे आस्था, मंदिर निर्माण से लेकर और भी जितने सारे मुद्दे आए. उसका वोटरों पर खास असर नहीं पड़ा. जनता को प्रत्याशियों पर भरोसा नहीं है. अगर जनता को भरोसा होता तो निश्चित तौर पर मतदान का प्रतिशत 80–85 फीसदी तक पहुंच सकता था. 65 फीसदी के आसपास की वोटिंग ये जाहिर करता है कि मतदाताओं को अब लुभाया नहीं जा सकता है. मतदाता अपनी मर्जी से वोट करते हैं."

यानी कि बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र के वोटरों पर सियासी दलों के दावों और वादों का कोई खास असर नहीं पड़ा. ये वोटर अपने अनुसार ही वोट करने पहुंचे. वहीं, क्षेत्र के वोटिंग प्रतिशत को लेकर पॉलिटिकल एक्सपर्ट ने चिंता जाहिर की है.

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Last Updated : May 8, 2024, 10:57 PM IST
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