नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली के नागरिकों के लिए दिल्ली के सभी सरकारी अस्पतालों को मिलाकर केवल छह सीटी स्कैन मशीनों के उपलब्ध होने पर कड़ी आपत्ति जताई है. कार्यकारी चीफ जस्टिस मनमोहन की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि दिल्ली में हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने की जरूरत है और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सभी पदों पर नियुक्ति जरुरी है.
हाई कोर्ट ने कहा कि दिल्ली में लोगों की जान इसलिए जा रही है कि सरकारी अस्पतालों में मरीजों को अटैंड करनेवाला कोई नहीं होता. ऐसा इसलिए है क्योंकि सुविधाएं और स्टाफ नहीं हैं. आज इस मामले पर दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सौरभ भारद्वाज ने स्टेटस रिपोर्ट दाखिल किया. रिपोर्ट पर गौर करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि दिल्ली में स्वास्थ्य क्षेत्र में काफी कमियां हैं. डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ और दवाईयों की कमी है.
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हाई कोर्ट में दाखिल स्टेटस रिपोर्ट में सौरभ भारद्वाज ने कहा है कि उन्होंने कई सरकारी अस्पतालों का निरीक्षण किया है और अस्पताल के स्टाफ की बैठकें की हैं. लेकिन उन बैठकों में दिल्ली के स्वास्थ्य सचिव एसबी दीपक कुमार हमेशा अनुपस्थित रहे हैं. हालांकि एसबी दीपक कुमार ने कोर्ट में सुनवाई के दौरान इन आरोपों को खारिज कर दिया और कहा कि वे बैठकों में उपस्थित रहे हैं. दीपक कुमार ने कहा कि वे स्वास्थ्य मंत्री के साथ कई अस्पतालों में गए हैं और जब भी अस्पतालों में जाना संभव नहीं हुआ तो उन्होंने अपने ओएसडी को स्वास्थ्य मंत्री के साथ भेजा है. एसबी दीपक कुमार ने कहा कि मीटिंग्स के मिनट्स में मेरी उपस्थिति दर्ज है.
दिल्ली सरकार की ओर से पेश वकील संतोष त्रिपाठी ने कहा कि दिल्ली के वर्तमान अस्पतालों में डॉक्टरों के स्वीकृत पदों में से करीब 33 फीसदी से ज्यादा पद खाली हैं. पैरामेडिकल के स्वीकृत पदों में से 20 फीसदी पद खाली हैं. इसकी वजह से इंफ्रास्ट्रक्चर का पूरा-पूरा इस्तेमाल नहीं हो पाता है.
सौरभ भारद्वाज की स्टेटस रिपोर्ट में कहा गया है कि उन्होंने दिल्ली के उप-राज्यपाल को 2 जनवरी को पत्र लिखकर डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ की भर्ती के लिए यूपीएससी को निर्देशित कर नियुक्ति प्रक्रिया में तेजी लाने का अनुरोध किया था. दरअसल 2017 में हाईकोर्ट ने दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में आईसीयू बेड की उपलब्धता और वेंटिलेटर की सुविधा पर स्वत: संज्ञान लेकर सुनवाई शुरु की थी.
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