देहरादून: महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने महिलाओं के खिलाफ हिंसा समेत तमाम अपराधों से निपटने के लिए 'वन स्टॉप सेंटर' की स्थापना की है. इन वन स्टॉप सेंटर के जरिए किसी भी तरह से पीड़ित महिला बिना पुलिस और कोर्ट के चक्कर लगाए घर बैठे आसानी से मदद ले सकती हैं. वन स्टॉप सेंटर किस तरह से काम करता है और कैसे एक आम महिला सरकार की ओर से दी रही 24x7 इस योजना का लाभ उठा सकती हैं? इसकी जानकारी से ईटीवी भारत आपको रूबरू करवाएगा.
पीड़ित महिलाओं के लिए मददगार वन स्टॉप सेंटर: लगातार बढ़ते नारी उत्पीड़न के अलावा पुलिस और न्यायालय की कई चुनौतियां के दबाव में अन्याय सहन कर रही पीड़ित महिलाओं के लिए सखी 'वन स्टॉप सेंटर' एक मददगार के रूप में आगे आ रहा है. कोई भी पीड़ित महिला राष्ट्रीय महिला हेल्पलाइन 181 पर संपर्क कर के कहीं पर भी वन स्टॉप सेंटर की रेस्क्यू टीम को बुला सकते हैं. उत्तराखंड में भी महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास विभाग इसका सभी जिलों में संचालन कर रहा है.
देहरादून वन स्टॉप सेंटर की केंद्र प्रशासक माया नेगी बताती हैं कि वन स्टॉप सेंटर के जरिए वो हर तरह की पीड़ित महिला की मदद करते हैं. चाहे महिला घर के अंदर पीड़ित हो या फिर घर के बाहर. उन्होंने बताया कि आजकल साइबर क्राइम और स्टॉकिंग की भी कई महिलाएं शिकार हो रही हैं, ऐसे मामलों में भी ये वन स्टॉप सेंटर महिलाओं की मदद करता है.
वन स्टॉप सेंटर में महिला को मिलती है क्या-क्या सुविधाएं? किसी भी तरह से पीड़ित महिला यदि वन स्टॉप सेंटर में जाती हैं या फिर राष्ट्रीय महिला हेल्पलाइन नंबर पर कॉल करके मदद लेती है तो वन स्टॉप सेंटर में महिला को 5 दिन तक का अस्थायी सुरक्षित निवास दिया जा सकता है. इसके अलावा वन स्टॉप सेंटर की ओर से काउंसलिंग और न्यायिक मदद भी दी जाती है.
माया नेगी बताती हैं कि पीड़ित महिला को कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए वकील भी दिया जाता है, जो कि निशुल्क होता है. उन्होंने बताया कि वन स्टॉप सेंटर के साथ पुलिस विभाग से एक महिला पुलिसकर्मी भी केंद्र के साथ जुड़ी रहती हैं. ऐसे में पुलिस से जुड़ी हुई जो भी असुविधा होती है, उनको लेकर भी यहां पर समाधान किया जाता है.
उन्होंने बताया कि कई बार महिलाएं वन स्टॉप सेंटर तक आने में असमर्थ रहती हैं और कहीं पर यदि उनके साथ उत्पीड़न हो रहा है तो वो वन स्टॉप सेंटर की रेस्क्यू टीम को भी बुला सकती हैं. जिस पर तत्काल वन स्टॉप सेंटर की रेस्क्यू टीम महिला की मदद के लिए जाती है. जिसके बाद अगर उस पर किसी से खतरा है तो उसे सेंटर भी लाया जाता है.
एक हजार से ज्यादा महिलाओं की हो चुकी मदद, हर जिले में 'वन स्टॉप सेंटर': देहरादून वन स्टॉप सेंटर की केंद्र प्रशासक माया नेगी बताती हैं कि उनके पास आए दिन महिलाओं की शिकायत आती रहती हैं. जिसमें वो लगातार उनकी मदद भी करते हैं. कई बार छोटी-मोटी काउंसलिंग से ही समस्या का समाधान हो जाता है, यदि महिला को लीगल हेल्प तक की जरूरत तक पड़ती है तो उसे लीगल हेल्प दी जाती है.
इतना ही नहीं महिला की लड़ाई को उसके साथ खड़े होकर भी लड़ा जाता है. उन्होंने बताया कि महिला बाल विकास विभाग की ओर से साल 2017 में शुरू हुई इस स्कीम के जरिए अब तक 1 हजार से ज्यादा महिलाओं की मदद की जा चुकी है. हाल ही के एक मामले का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि एक बालिका के लापता होने के बाद उसके नजदीकी थाने में उसकी माता की शिकायत को नहीं सुना जा रहा था.
जिस पर वन स्टॉप सेंटर ने तत्काल कार्रवाई करते हुए महिला की एफआईआर दर्ज करवाई गई. अगले 4 दिनों में गुमशुदा बालिका को खोज दिया गया. उन्होंने बताया कि इस तरह की मदद की जरूरत लगातार समाज में देखी जा रही है और इसी के चलते उत्तराखंड के सभी 13 जिला मुख्यालय में वन स्टॉप सेंटर बनाए गए हैं तो वहीं अल्मोड़ा में दो वन स्टॉप सेंटर स्थापित किए गए हैं.
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