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'वन नेशन, वन इलेक्शन' का बिहार चुनाव पर क्या होगा असर? समझिए राजनीति की परतें - One Nation One Election - ONE NATION ONE ELECTION

Bihar Assembly election रामनाथ कोविंद कमेटी ने 2029 में वन नेशन वन इलेक्शन कराने की सिफारिश की है. उससे पहले कई राज्यों में विधानसभा का चुनाव है, जिसमें से एक बिहार भी है. वन नेशन वन इलेक्शन के लागू होने के बाद बिहार विधानसभा चुनाव पर क्या असर डालेगा, राजनीति के जानकारों से समझिये.

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'वन नेशन, वन इलेक्शन' (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Sep 19, 2024, 6:28 PM IST

पटना: बिहार में अगले साल यानी कि 2025 में विधानसभा का चुनाव होना है. लेकिन, उससे पहले केंद्र सरकार की कैबिनेट ने वन नेशन वन इलेक्शन के प्रारुप को पास कर दिया. हालांकि, अभी शीतकालीन सत्र में इस पर लोकसभा में बहस होगी और उसके बाद इसे किस प्रारूप में लागू किया जाएगा, यह फैसला होगा. राजनीति के जानकारों का मानना है कि यदि 2029 में वन नेशन वन इलेक्शन के तहत चुनाव होते हैं तो 2025 में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव का टेन्योर साढ़े तीन साल का ही माना जाएगा.

साढ़े तीन साल का होगा कार्यकालः ऐसे में बिहार में 2025 में जिसकी भी सरकार बनेगी उसका कार्यकाल साढ़े तीन साल का ही होगा. बिहार के संदर्भ में वरिष्ठ पत्रकार सुनील पांडेय बताते हैं कि आने वाले 2025 के विधानसभा पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा. क्योंकि यह जो वन नेशन वन इलेक्शन है यह 2029 में लोकसभा चुनाव के साथ होगा. चूंकी, उस समय क्या मुद्दे रहते हैं, किस मुद्दे पर चुनाव लड़ना है, उस समय चुनाव में तय होगा. वन नेशन वन इलेक्शन में वोट देने के अलावा आम लोगों को बहुत लेना-देना नही होगा.

ETV GFX.
ETV GFX. (ETV Bharat)

"बिहार में आने वाले साल में जो चुनाव होना है उसका टेन्योर साढे़ तीन साल का हो सकता है. इसमें पॉलीटिकल पार्टी और नेताओं को फायदा नुकसान हो सकता है. इससे सीधा संबंध आम लोगों से नहीं होने वाला है." - सुनील पांडेय, राजनीतिक विश्लेषक

अल्पमत सरकारों का क्या होगा भविष्यः सुनील पांडेय बताते है कि पहली बार लगातार चार चुनाव वन नेशन वन इलेक्शन के तहत ही हुए थे. बाद में राज्य की सरकारें जो है वह बीच में गिरी और उनका टेन्योर पूरा करने को लेकर यह सिलसिला टूट गया. लेकिन, इसको पूरी तरह से सफल करने को लेकर कुछ फॉर्मूले तो जरूर अपनाने होंगे ताकि यह वन नेशन वन इलेक्शन सफल हो. इसमें यह तय करना होगा कि यदि कोई सरकार अल्पमत में होती है तो बाकी समय के लिए सरकार कैसे बनाई जाए.

आर्थिक रूप से सही है फैसलाः वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय बताते हैं कि वन नेशन वन इलेक्शन के पूरे मसौदे को शीतकालीन सत्र में रखा जाएगा. उसके बाद पब्लिक डोमेन में यह बातें आएंगी कि किस तरह से चुनाव होंगे. लेकिन, इससे यह तो तय है कि आर्थिक रूप से चुनाव कराने का बोझ बढ़ता था वह कम हो जाएगा. हर साल या एक दो साल में स्कूल, कॉलेज, शिक्षक सभी डिस्टर्ब रहते हैं, उससे मुक्ति मिलेगी. लेकिन, सवाल यह उठता है कि मध्यावधि चुनाव होते हैं तो, किस तरह से आगे के टेन्योर को मैनेज किया जाएगा.?

"अभी कई बातें आने बाकी हैं. जब तक की लोकसभा में इस पर चर्चा नहीं हो जाएगी, तब तक का इस पर बहुत कुछ कहा नहीं जा सकता है. लेकिन, कई बातों को लेकर निश्चिंतता हो जाएगी कि एक बार में चुनाव हो जाएगा, स्कूल कॉलेज डिस्टर्ब नहीं होंगे."- रवि उपाध्याय, राजनीतिक विश्लेषक

क्या-क्या आ सकती है परेशानीः रवि उपाध्याय कहते हैं 2029 में वन नेशन वन इलेक्शन करने की जो बात कही जा रही है उससे पहले कई चीजों को क्लियर करना होगा. जिस तरह से एससी-एसटी को लेकर परिसीमन बनाया गया, महिला आरक्षण बिल पास हो गया है अब महिलाओं को आरक्षण के लिए भी जगह देनी होगी तो, उसके लिए भी परिसीमन बनाना होगा. सभी बातें जब तक क्लियर नहीं होगी तब तक 2029 में वन नेशन वन इलेक्शन के तहत चुनाव नहीं हो सकते है. कुल मिलाकर देखा जाए तो यह देश हित में है.

ONOE के तहत हो चुके हैं चुनावः देश में वन नेशन वन इलेक्शन के तहत चुनाव हो चुके हैं. आजादी के बाद देश में पहली बार 1951 में लोकसभा और राज्य के विधानसभाओं का चुनाव एक साथ कराया गया था. उसके बाद लगातार यह सिलसिला तीन चुनाव तक चलता रहा. 1957, 1962 और 1967 में एक साथ लोकसभा चुनाव और राज्य में विधानसभाओं का चुनाव कराया गया था. वन नेशन वन इलेक्शन को सुचारू रूप से चलाने के लिए पहली बार 1951 में बिहार, मुंबई, मद्रास, मैसूर, पंजाब, यूपी और पश्चिम बंगाल का कार्यकाल बीच में समाप्त कर दिया गया था.

कब टूटा चुनाव का यह सिलसिलाः 1967 के बाद यह सिलसिला टूट गया. बीच-बीच में कई राज्य में उपचुनाव हुए और अब तक फिर से एक साथ पूरे देश का चुनाव नहीं हो पाया है. अब पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में कमेटी बनाकर इसे फिर से करने की एक पूरी रूपरेखा तैयार की गई है. जिसे केंद्रीय कैबिनेट ने मंजूरी देकर 2029 में चुनाव करने की बात कही जा रही है. यदि 2019 में वन नेशन वन इलेक्शन के तहत चुनाव होते हैं तो बिहार के साथ-साथ कई राज्यों के विधानसभा को भंग करके फिर से इलेक्शन कराया जाएगा.

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पटना: बिहार में अगले साल यानी कि 2025 में विधानसभा का चुनाव होना है. लेकिन, उससे पहले केंद्र सरकार की कैबिनेट ने वन नेशन वन इलेक्शन के प्रारुप को पास कर दिया. हालांकि, अभी शीतकालीन सत्र में इस पर लोकसभा में बहस होगी और उसके बाद इसे किस प्रारूप में लागू किया जाएगा, यह फैसला होगा. राजनीति के जानकारों का मानना है कि यदि 2029 में वन नेशन वन इलेक्शन के तहत चुनाव होते हैं तो 2025 में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव का टेन्योर साढ़े तीन साल का ही माना जाएगा.

साढ़े तीन साल का होगा कार्यकालः ऐसे में बिहार में 2025 में जिसकी भी सरकार बनेगी उसका कार्यकाल साढ़े तीन साल का ही होगा. बिहार के संदर्भ में वरिष्ठ पत्रकार सुनील पांडेय बताते हैं कि आने वाले 2025 के विधानसभा पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा. क्योंकि यह जो वन नेशन वन इलेक्शन है यह 2029 में लोकसभा चुनाव के साथ होगा. चूंकी, उस समय क्या मुद्दे रहते हैं, किस मुद्दे पर चुनाव लड़ना है, उस समय चुनाव में तय होगा. वन नेशन वन इलेक्शन में वोट देने के अलावा आम लोगों को बहुत लेना-देना नही होगा.

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ETV GFX. (ETV Bharat)

"बिहार में आने वाले साल में जो चुनाव होना है उसका टेन्योर साढे़ तीन साल का हो सकता है. इसमें पॉलीटिकल पार्टी और नेताओं को फायदा नुकसान हो सकता है. इससे सीधा संबंध आम लोगों से नहीं होने वाला है." - सुनील पांडेय, राजनीतिक विश्लेषक

अल्पमत सरकारों का क्या होगा भविष्यः सुनील पांडेय बताते है कि पहली बार लगातार चार चुनाव वन नेशन वन इलेक्शन के तहत ही हुए थे. बाद में राज्य की सरकारें जो है वह बीच में गिरी और उनका टेन्योर पूरा करने को लेकर यह सिलसिला टूट गया. लेकिन, इसको पूरी तरह से सफल करने को लेकर कुछ फॉर्मूले तो जरूर अपनाने होंगे ताकि यह वन नेशन वन इलेक्शन सफल हो. इसमें यह तय करना होगा कि यदि कोई सरकार अल्पमत में होती है तो बाकी समय के लिए सरकार कैसे बनाई जाए.

आर्थिक रूप से सही है फैसलाः वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय बताते हैं कि वन नेशन वन इलेक्शन के पूरे मसौदे को शीतकालीन सत्र में रखा जाएगा. उसके बाद पब्लिक डोमेन में यह बातें आएंगी कि किस तरह से चुनाव होंगे. लेकिन, इससे यह तो तय है कि आर्थिक रूप से चुनाव कराने का बोझ बढ़ता था वह कम हो जाएगा. हर साल या एक दो साल में स्कूल, कॉलेज, शिक्षक सभी डिस्टर्ब रहते हैं, उससे मुक्ति मिलेगी. लेकिन, सवाल यह उठता है कि मध्यावधि चुनाव होते हैं तो, किस तरह से आगे के टेन्योर को मैनेज किया जाएगा.?

"अभी कई बातें आने बाकी हैं. जब तक की लोकसभा में इस पर चर्चा नहीं हो जाएगी, तब तक का इस पर बहुत कुछ कहा नहीं जा सकता है. लेकिन, कई बातों को लेकर निश्चिंतता हो जाएगी कि एक बार में चुनाव हो जाएगा, स्कूल कॉलेज डिस्टर्ब नहीं होंगे."- रवि उपाध्याय, राजनीतिक विश्लेषक

क्या-क्या आ सकती है परेशानीः रवि उपाध्याय कहते हैं 2029 में वन नेशन वन इलेक्शन करने की जो बात कही जा रही है उससे पहले कई चीजों को क्लियर करना होगा. जिस तरह से एससी-एसटी को लेकर परिसीमन बनाया गया, महिला आरक्षण बिल पास हो गया है अब महिलाओं को आरक्षण के लिए भी जगह देनी होगी तो, उसके लिए भी परिसीमन बनाना होगा. सभी बातें जब तक क्लियर नहीं होगी तब तक 2029 में वन नेशन वन इलेक्शन के तहत चुनाव नहीं हो सकते है. कुल मिलाकर देखा जाए तो यह देश हित में है.

ONOE के तहत हो चुके हैं चुनावः देश में वन नेशन वन इलेक्शन के तहत चुनाव हो चुके हैं. आजादी के बाद देश में पहली बार 1951 में लोकसभा और राज्य के विधानसभाओं का चुनाव एक साथ कराया गया था. उसके बाद लगातार यह सिलसिला तीन चुनाव तक चलता रहा. 1957, 1962 और 1967 में एक साथ लोकसभा चुनाव और राज्य में विधानसभाओं का चुनाव कराया गया था. वन नेशन वन इलेक्शन को सुचारू रूप से चलाने के लिए पहली बार 1951 में बिहार, मुंबई, मद्रास, मैसूर, पंजाब, यूपी और पश्चिम बंगाल का कार्यकाल बीच में समाप्त कर दिया गया था.

कब टूटा चुनाव का यह सिलसिलाः 1967 के बाद यह सिलसिला टूट गया. बीच-बीच में कई राज्य में उपचुनाव हुए और अब तक फिर से एक साथ पूरे देश का चुनाव नहीं हो पाया है. अब पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में कमेटी बनाकर इसे फिर से करने की एक पूरी रूपरेखा तैयार की गई है. जिसे केंद्रीय कैबिनेट ने मंजूरी देकर 2029 में चुनाव करने की बात कही जा रही है. यदि 2019 में वन नेशन वन इलेक्शन के तहत चुनाव होते हैं तो बिहार के साथ-साथ कई राज्यों के विधानसभा को भंग करके फिर से इलेक्शन कराया जाएगा.

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