भरतपुर. संभाग मुख्यालय से करीब 32 किलोमीटर दूर स्थित खानवा एक साधारण सा गांव था, लेकिन मेवाड़ के राणा सांगा और मुगल आक्रमणकारी बाबर के बीच हुए युद्ध ने भारतीय इतिहास में इस गांव को एक महत्वपूर्ण स्थल बना दिया. आज ही के दिन 17 मार्च, 1527 को राणा सांगा और बाबर के बीच खानवा में भयंकर युद्ध हुआ था. राणा सांगा की सेना मुगल आक्रमणकारी बाबर के 20 हजार सैनिकों से भिड़ गई, लेकिन इस युद्ध में बाबर ने गोला, बारूद और तोपखाने का जमकर इस्तेमाल किया, जिससे राणा सांगा का जीता हुआ युद्ध हारना पड़ा. खानवा की धरती पर आज भी बारूद के निशान मौजूद हैं. भारत के इतिहास में इसी युद्ध में पहली बार गोला, बारूद और तोप का इस्तेमाल हुआ था. आइए जानते हैं खानवा युद्ध के कई रोचक तथ्यों के बारे में.
दोनों सेनाओं के बीच हुआ भयंकर युद्ध : इतिहासकार प्रो. सतीश त्रिगुणायत ने बताया कि उत्तर प्रदेश के फतेहपुर सीकरी से करीब 15 किलोमीटर दूर और भरतपुर से करीब 32 किलोमीटर दूर स्थित खानवा गांव में मेवाड़ के राणा सांगा और मुगल आक्रमणकारी बाबर की फौज 13 मार्च 1527 को पहुंची थी. कई दिनों तक दोनों सेनाएं आमने-सामने पड़ी रही. बाबर को युद्ध के परिणाम को लेकर संदेह था, इसलिए उसने राणा सांगा से समझौता वार्ता शुरू की, लेकिन इसका कोई परिणाम नहीं निकला. जब समझौता वार्ता का कोई निष्कर्ष नहीं निकला तो 17 मार्च, 1527 को दोनों सेनाओं के बीच भयंकर युद्ध शुरू हुआ.
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पहली बार इसी युद्ध में हुआ था तोपों का इस्तेमाल : राजपूत सेना का इतना प्रचंड आक्रमण था कि मुगल सेना में खलबली मच गई. राणा सांगा के साथ युद्ध मैदान में हसन खां मेवाती, राजा मैदानी राय समेत कई राजा डटे हुए थे. मारवाड़, अंबर, ग्वालियर, अजमेर भी युद्ध में साथ दे रहे थे. राणा सांगा ने अपने प्रचंड आक्रमण और रणनीति से लगभग युद्ध जीत ही लिया था, लेकिन तभी बाबर ने अपने तोपखाने से हमला शुरू कर दिया. भारत के इतिहास में यह पहला अवसर था, जब किसी युद्ध में गोला बारूद और तोपखाने का इस्तेमाल किया गया था.
युद्ध भूमि में मूर्छित होकर गिर पड़े राणा : तोपखाने ने जब आग बरसाना शुरू किया तो राजपूत सेना हताहत होने लगी. तोपखाने के हमले से राणा सांगा की जीत हार में बदल गई. युद्ध के मैदान में राणा सांगा गंभीर रूप से जख्मी हो गए. सिर में गहरा आघात लगने से राणा सांगा मूर्छित हो गए. राणा सांगा को युद्ध भूमि से ले जाया गया. अब राजपूत सेना का नेतृत्व झाला अज्जा ने संभाला, लेकिन राणा सांगा के घायल होने की सूचना से राजपूत सेना हताश हो गई और बाबर युद्ध जीत गया. इतिहासकार बाबर की जीत का कारण उसकी सेना की वीरता को नहीं, बल्कि आधुनिक तोपखाने को मानते हैं.
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राणा सांगा की मृत्यु : राणा सांगा को युद्ध स्थल से घायल अवस्था में बसवा नामक स्थान पर सुरक्षित पहुंचाया गया, लेकिन जब राणा सांगा को होश आया तो उन्होंने फिर से बाबर से युद्ध कर अपनी हार का बदला लेने की इच्छा जताई. राणा सांगा ने प्रण लिया कि जब तक बाबर को पराजित नहीं कर देंगे, तब तक चित्तौड़ नहीं लौटेंगे. डॉ. केएस गुप्ता ने अपनी पुस्तक 'महाराणा सांगा' में लिखा है कि राणा सांगा रणथंभौर के दुर्ग में एकांतवास में चले गए. उन्होंने पगड़ी बांधना छोड़ दिया और सिर पर सिर्फ एक कपड़े का टुकड़ा लपेटा करते थे. राणा सांगा के शरीर पर 80 घाव थे. एक आंख, एक हाथ और एक पैर भी गंवा चुके थे.
वहीं, राणा सांगा फिर से बाबर से युद्ध करने के लिए अपने सामंत और सरदारों को पत्र लिखना शुरू कर दिए. राणा सांगा सेना के साथ मध्यप्रदेश के ईरिच नामक स्थान पर पहुंचे. राणा के कुछ सरदार युद्ध के पक्ष में नहीं थे. इसलिए युद्ध शुरू होने से पहले ही राणा के सरदारों ने उन्हें विष दे दिया और 30 जनवरी, 1528 को उनका निधन हो गया. इसके बाद राणा सांगा की पार्थिव देह मांडलगढ़ लाई गई, जहां उनकी अंत्येष्टि हुई. आज भी मांडलगढ़ में राणा सांगा का स्मारक मौजूद है.
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आज भी खानवा धरती छलनी : खानवा का युद्ध इतिहास के पन्नों में हमेशा हमेशा के लिए दर्ज हो गया. युद्ध के दौरान बाबर ने जमकर गोला बारूद का इस्तेमाल किया था, जिसके निशान आज भी खानवा गांव की चट्टानों पर दिखने को मिलते हैं. इस युद्ध के बाद भारत के अन्य राजाओं ने भी गोला बारूद और तोपों का निर्माण शुरू कर दिया था. इसी युद्ध के बाद तोप हर युद्ध का आधार बन गई थी.