राजसमंद : श्रीनाथजी मंदिर का इतिहास 351 साल पुराना है. विक्रम संवत 1728 फाल्गुन कृष्ण सप्तमी (20 फरवरी 1672 शनिवार) को श्रीनाथजी पाट पर विराजे थे. तब से लेकर आज तक कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव विशेष तौर पर मनाया जाता है. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर ठाकुरजी के जन्म पर सोमवार रात 12 बजे तोपों से 21 बार सलामी का दृश्य देखते ही बनता है. जन्माष्टमी को लेकर तोपों को रसाला चौक में बने क्वाटर गार्ड में लाकर साफ-सफाई कर रंग रोगन कर दिया गया है.
विशेष आकर्षण होती है 21 तोपों की सलामी : मंदिर में नंद के घर लालन होने की खुशी में 21 तोपों की सलामी दी जाती है. इसके पीछे यह भावना है कि गांव के मुखिया नंदराय के गांव व उसके आसपास के गांवों में लोगों को यह सूचना मिल जाए कि नंदराय के घर उनके तारणहार का जन्म हो चुका है और वे लोग इसकी खुशियां मनाना प्रारंभ करें. मुगलकाल में मुगलों के आतंक के बीच प्रभु श्रीनाथजी को सुरक्षित रखने के लिए मथुरा के जतीपुरा से भगवान को यहां लाया गया था. मथुरा से आगरा, कोटा, जोधपुर होते हुए काफी लंबी यात्रा के बाद मेवाड़ के राजा राजसिंह ने श्रीनाथजी की सुरक्षा का वचन देते हुए उन्हें यही ठहरने की गुजारिश की थी, तब से वे यहीं विराजित है.
श्रीनाथजी आज से करीब 350 वर्ष पूर्व जब से मेवाड़ पधारे, तब से अब तक जन्माष्टमी पर इस परंपरा को हर वर्ष मनाया जा रहा है. नाथद्वारा को ब्रिज का ही एक रूप मानकर यहां भी आसपास के गांवों में लोगों में भगवान श्री कृष्ण को लेकर गहरी आस्था है और लोग रात्रि 12:00 बजे तोपों की आवाज सुनकर श्री कृष्ण जन्म की खुशियां मनाते हैं. जन्माष्टमी के उपलक्ष्य में पूरे नगर में उत्सव और हर्षोल्लास देखते ही बनता है. सिर्फ नाथद्वारा ही नहीं आसपास के कई गांवों-शहरों से लोग श्रीनाथजी के दर्शन करने को आते हैं और रात्रि को 12:00 बजे होने वाले इस आयोजन को देखने के लिए भी काफी संख्या में लोग एकत्रित होते हैं.
जन्माष्टमी ओर नन्द महोत्सव की लेकर तैयारियां पूरी : नाथद्वारा में 26 अगस्त को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव और 27 अगस्त को नंद महोत्सव मनाया जाएगा. जन्माष्टमी पर्व को लेकर मंदिर की ओर से तैयारियां पूरी कर ली गई हैं. शनिवार को पंचमी के शुभ अवसर पर तिलकायत राकेश महाराज और गोस्वामी विशाल बावा ने श्रीजी प्रभु एवं श्री नवनीत प्रिया जी के जन्माष्टमी के अवसर पर धारण करने वाले वस्त्रों को केसर में रंग कर प्रभु के वस्त्र रंगने की सेवा परंपरा का निर्वाह किया.
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कृष्ण जन्मोत्सव पर मंदिर में होगा आयोजन : जन्माष्टमी के दिन प्रातः मंगला की झांकी के दर्शन खुलेंगे. इसके बाद श्रीजी बावा को केसर का तिलक लगाया जाएगा. फिर श्रीजी बावा को केसर कस्तूरी युक्त पंचामृत से तिलकायत राकेश महाराज व युवराज विशाल बावा द्वारा स्नान कराया जाएगा. इस दौरान दर्शन लगभग दो घंटे से भी अधिक समय तक खुले रहेंगें. शाम को मंदिर मंडल के तत्वावधान में शोभायात्रा निकाली जाएगी. वहीं, रात 12 बजे श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर 21 तोपों की सलामी दी जाएगी.
श्रीकृष्ण जन्मोत्सव के दूसरे दिन नंद महोत्सव के अवसर पर संपूर्ण मन्दिर में श्रीजी के बड़े मुखिया जी द्वारा नंद बाबा का स्वरूप धारण कर केसर-युक्त दही छाछ का छिड़काव ग्वाल-बालों के संग मिलकर किया जाता है. इस दौरान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप को श्रीजी के सन्मुख पलने में झुलाए जायेंगे और छठी पूजन की रस्म परम्परानुसार की जाएगी. मंदिर के द्वारों पर कुमकुम, दूध-दही के छापे लगाए जाएंगे.