लातेहार: हमारे पूर्वजों ने मानव जीवन को आसान बनाने के लिए कई तरह की परंपराओं का निर्माण किया. इन परंपराओं में से एक वस्तु विनिमय की प्रथा भी थी, जिसके तहत ग्रामीण एक वस्तु के बदले में दुकान से दूसरी वस्तु खरीद और बेच सकते थे. समय के साथ-साथ लोगों की जीवनशैली भी बदलती गई, लेकिन लातेहार जिले के ग्रामीण इलाकों में वस्तु-विनिमय की परंपरा आज भी जीवित है और ग्रामीणों के लिए यह फायदेमंद साबित हो रही है.
क्या है ये खास परंपरा
दरअसल, वस्तु विनिमय की प्रथा ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी जीवित है. इस प्रथा के तहत ग्रामीण अन्य सामग्रियों के बदले दुकान से अपनी आवश्यकता के अनुसार सामग्री खरीद और बेच सकते हैं. उदाहरण के तौर पर अगर किसी ग्रामीण को साबुन या किसी अन्य सामान की जरूरत है, लेकिन उसके पास पैसे नहीं हैं. इसलिए वे घर में रखा कोई भी अनाज या महुआ-लाख आदि लेकर दुकान पर जाते हैं और अपने साथ ले गए सामग्री के मूल्य के बराबर आवश्यकतानुसार अन्य सामग्री खरीदते हैं. गांव में इस परंपरा के बचे रहने से ग्रामीणों का जीवन काफी आसान हो गया है.
स्थानीय ग्रामीण शिव शंकर प्रसाद के अनुसार, अगर किसी ग्रामीण के पास नकदी नहीं है, तो भी उसे अपनी जरूरत की चीजों के लिए परेशान नहीं होना पड़ता है. उन्होंने बताया कि ग्रामीण अनाज लेकर दुकान पर जाते हैं और अनाज की कीमत के बराबर अन्य सामान लेकर घर लौटते हैं.
वर्षों से चली आ रही यह परंपरा
यह प्रथा ग्रामीण क्षेत्रों में कई वर्षों से चली आ रही है. लातेहार सदर प्रखंड के मोंगर गांव के दुकानदार चंदन कुमार ने बताया कि बदले में सामान देने की प्रथा पिछले कई वर्षों से चली आ रही है. बचपन में उन्होंने देखा था कि उनके पिता भी गांव वालों को अनाज के मूल्य के बराबर अन्य वस्तुएं उपलब्ध कराते थे. वे भी इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं. उन्होंने कहा कि इससे ग्रामीणों को सुविधा होती है और दुकानदारों को भी अच्छी बिक्री होती है. उन्होंने कहा कि इस प्रथा से ग्रामीणों को किसी बात की चिंता नहीं होती.
स्थानीय जन प्रतिनिधि भी करते हैं प्रशंसा
इधर, स्थानीय जन प्रतिनिधि भी वस्तु विनिमय की इस प्रथा की प्रशंसा करते हैं. मोंगर पंचायत के पंचायत समिति सदस्य पिंटू रजक ने कहा कि गांव में वस्तु विनिमय की प्रथा ग्रामीणों के लिए वरदान के समान है. उन्होंने कहा कि ग्रामीणों खासकर मजदूर वर्ग के लोगों के पास पैसे की कमी है. कई बार तो ग्रामीण मजदूरों को मजदूरी के बदले अनाज भी दे देते हैं. यह अनाज गरीब मजदूरों के लिए नकदी का भी काम करता है. ग्रामीण अनाज लेकर दुकान पर जाते हैं और अनाज के दाम के बराबर अन्य सामान आसानी से खरीद लेते हैं. उन्होंने कहा कि इस तरह की परंपरा से ग्रामीणों के बीच एकता और भाईचारा भी बढ़ता है. हमारे पूर्वजों द्वारा बनाई गई कई परंपराएं आज भी लोगों के जीवन के लिए वरदान बनी हुई हैं.
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