जोधपुर. डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज के माथुरादास माथुर अस्पताल के कार्डियो थोरेसिक विभाग में शरीर में खून में थक्का जमने से पीड़ित मरीजों की संख्या बढ़ रही है. यहां की ओपीडी में हर रोज 50 मरीज इससे पीड़ित आते हैं. इनमें ज्यादातर 40 से 50 साल की उम्र के लोग हैं. जिनके दवाइयों से थक्के जमने की परेशानी ठीक नहीं होती है उनके ऑपरेशन किए जा रहे हैं. इनमें हार्ट की बाईपास भी शामिल है. कोरोना के बाद इसमें 25 प्रतिशत तक का इजाफा हुआ है. पिछले दो साल में विभाग में 3,500 से ज्यादा सर्जरी हुई है.
विभागाध्यक्ष डॉ. सुभाष बलारा बताते हैं कि यह चिंता का विषय है कि ब्लड क्लॉटिंग के मरीजों में युवाओं की संख्या बढ़ रही है. यह कोविड के बाद ज्यादा बढ़ा है, लेकिन इसके अलावा लाइफ स्टाइल भी बड़ी वजह है. हर दिन नियमित व्यायाम और वॉक करके इससे काफी हद तक बचा जा सकता है. खाने में लहसुन और प्याज को शामिल करें तो भी फायदा मिलता है.
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दो साल में 3500 सर्जरी हुई : डॉ. बलारा के अनुसार दो साल में 3500 सर्जरी हुई है. महीने में 40 केस तो केवल वैस्कुलर सर्जरी के हो रहे हैं. इसके अलावा 1 महीने में 15 बाईपास औसतन हो रहे हैं. ब्लड क्लॉटिंग से जुड़े मामलों में सबसे ज्यादा पैर की पिंडलियों की नसों में थक्के जमने के मामले होते हैं. उन्होंने बताया कि वैस्कुलर सर्जरी के मामले में हमारे यहां एसएमएस से ज्यादा काम होता है.
ब्लड क्लॉटिंग के बड़े कारण :
- एक ही तेल में तली हुई वस्तुएं खाने से फ्री रेडिकल्स बनते हैं और थक्का बनने की आशंका रहती है.
- खाना खाकर थोड़ा टहलने की बजाय सो जाना.
- प्रतिदिन एक्सरसाइज नहीं करने से यह खतरा बनता है.
- जंक फूड भी इस खतरे को बढ़ाता है.
- कोविड के बाद इसकी शिकायतें करीब 25 प्रतिशत बढ़ी हैं.