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नूंह की बांस बस्ती में तैयार किए जाते हैं शानदार मूढ़ी, देशभर में मशहूर है यह हस्तकला - FAMOUS MUDHI OF NUH

नूंह में बर्षों से मूढ़ी बनाई जा रही है, जो कि अब लोगों को रोजगार बनती जा रही है. ये मूढ़ियां देशभर में प्रसिद्ध है.

Nuh Mudhi Bass Village
Nuh Mudhi Bass Village (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Haryana Team

Published : Dec 5, 2024, 2:22 PM IST

Updated : Dec 5, 2024, 2:52 PM IST

नूंह: हरियाणा के नूंह में लुहिंगा कला ग्राम पंचायत के मूढ़ी बांस गांव, मूढ़ी बनाने से भारत के अलग-अलग राज्यों में मशहूर है. यहां पर सभी किस्म की मूढियां सरकंडे व रस्सी तथा साइकिल के टायर की मदद से तैयार की जाती है. सबसे छोटी मूढ़ी बनाने में तकरीबन 2 घंटे लगते हैं. जिसकी कीमत करीब 120 रुपये है और सबसे महंगी व पसंदीदा मूढ़ी बनाने में करीब 6-7 घंटे लगते हैं. जिसका 5 मूढ़ों का सेट करीब 8 हजार से 10 हजार रुपये तक बिकता है.

वर्षों से बनाई जा रही मूढ़ी: मूढ़ी बांस गांव में करीब 40 साल पहले एक बुजुर्ग ने अपने खेतों पर निवास किया था. जो मूढ़ी बनाने का काम करता था. धीरे-धीरे लोग बसते गए और सभी मूढियों का काम सीखते हुए और मूढियों का कारोबार करने लग गए. जो मूढियों के कारोबार से आज हजारों लाखों रुपये कमाते हैं और अपना जीवन बसर खूब बेहतर तरीके से कर रहे हैं.

Nuh Mudhi Bass Village (Etv Bharat)

देशभर में मशहूर हैं नूंह की मूढ़ियां: बता दें कि मूढियां बनाने का हुनर अलग ही तरह का देखने को मिलता है. मूढ़ी बनाने के वक्त अगर मूढ़ी बनाने वाले को देख ले तो किसी इंजीनियर से कम नहीं दिखाई देता. क्योंकि मूढियों की बनावट ही कुछ अलग होती है. मूढियां खरीदने के लिए व्यापारी भारत के अलग-अलग राज्यों से आते हैं. सभी राज्यों में मूढियां नूंह जिले के लुहिंगा कलां की ढाणी मूढ़ीबास ग्राम पंचायत लुहिंगा कला से ही जाती है. जो मूढियों को लेकर पूरे देश में मशहूर है. यहां महिलाएं-पुरुष व छोटे-छोटे बच्चे समेत सैकड़ों लोग मूढियां बनाने का काम करते हैं. अपना पालन पोषण करते हैं.

रोजगार का साधन बन रही मूढ़ी: वहीं, मूढ़ी बनाने वालों ने बताया कि यहां रोजगार नहीं होने के चलते गांव के 80 प्रतिशत लोग मूढ़ी बनाने का कार्य करते हैं. सर्दियों में तो ऑर्डर के थ्रू मूढियां बनाई जाती हैं. इतनी ज्यादा यहां की मूढियों की डिमांड होती है न केवल पौराणिक कला को ये कारीगर जीवित रखे हैं. बल्कि बदलते हालात के चलते यह अच्छी कमाई का जरिया भी बन चुका है. देखने में यहां की मूढ़े-मुढ़ियां किसी राजा महाराजाओं की तरह चौपाल में रखे डिजाइन फर्नीचर की तरह दिखाई देती हैं. बेहद आकर्षक दिखाई देने वाली मुढ़ियां पुला के सरकंडे से बनाई जाती हैं. इसलिए लागत कम और मुनाफा अधिक होता है. यही वजह है की अब यह गांव मूढ़ी बास के नाम से ही जाना जाता है.

ये भी पढ़ें: हरियाणा के राशनकार्ड धारकों के लिए गुड न्यूज, अब दो टाइम खुलेंगे राशन डीपो, सीसीटीवी से भी की जाएगी निगरानी

ये भी पढ़ें: रेल यात्रियों को बड़ी राहत, कोहरे के चलते ट्रेन कैंसिल की समस्या से मिलेगा छुटकारा, जानें क्या है योजना

नूंह: हरियाणा के नूंह में लुहिंगा कला ग्राम पंचायत के मूढ़ी बांस गांव, मूढ़ी बनाने से भारत के अलग-अलग राज्यों में मशहूर है. यहां पर सभी किस्म की मूढियां सरकंडे व रस्सी तथा साइकिल के टायर की मदद से तैयार की जाती है. सबसे छोटी मूढ़ी बनाने में तकरीबन 2 घंटे लगते हैं. जिसकी कीमत करीब 120 रुपये है और सबसे महंगी व पसंदीदा मूढ़ी बनाने में करीब 6-7 घंटे लगते हैं. जिसका 5 मूढ़ों का सेट करीब 8 हजार से 10 हजार रुपये तक बिकता है.

वर्षों से बनाई जा रही मूढ़ी: मूढ़ी बांस गांव में करीब 40 साल पहले एक बुजुर्ग ने अपने खेतों पर निवास किया था. जो मूढ़ी बनाने का काम करता था. धीरे-धीरे लोग बसते गए और सभी मूढियों का काम सीखते हुए और मूढियों का कारोबार करने लग गए. जो मूढियों के कारोबार से आज हजारों लाखों रुपये कमाते हैं और अपना जीवन बसर खूब बेहतर तरीके से कर रहे हैं.

Nuh Mudhi Bass Village (Etv Bharat)

देशभर में मशहूर हैं नूंह की मूढ़ियां: बता दें कि मूढियां बनाने का हुनर अलग ही तरह का देखने को मिलता है. मूढ़ी बनाने के वक्त अगर मूढ़ी बनाने वाले को देख ले तो किसी इंजीनियर से कम नहीं दिखाई देता. क्योंकि मूढियों की बनावट ही कुछ अलग होती है. मूढियां खरीदने के लिए व्यापारी भारत के अलग-अलग राज्यों से आते हैं. सभी राज्यों में मूढियां नूंह जिले के लुहिंगा कलां की ढाणी मूढ़ीबास ग्राम पंचायत लुहिंगा कला से ही जाती है. जो मूढियों को लेकर पूरे देश में मशहूर है. यहां महिलाएं-पुरुष व छोटे-छोटे बच्चे समेत सैकड़ों लोग मूढियां बनाने का काम करते हैं. अपना पालन पोषण करते हैं.

रोजगार का साधन बन रही मूढ़ी: वहीं, मूढ़ी बनाने वालों ने बताया कि यहां रोजगार नहीं होने के चलते गांव के 80 प्रतिशत लोग मूढ़ी बनाने का कार्य करते हैं. सर्दियों में तो ऑर्डर के थ्रू मूढियां बनाई जाती हैं. इतनी ज्यादा यहां की मूढियों की डिमांड होती है न केवल पौराणिक कला को ये कारीगर जीवित रखे हैं. बल्कि बदलते हालात के चलते यह अच्छी कमाई का जरिया भी बन चुका है. देखने में यहां की मूढ़े-मुढ़ियां किसी राजा महाराजाओं की तरह चौपाल में रखे डिजाइन फर्नीचर की तरह दिखाई देती हैं. बेहद आकर्षक दिखाई देने वाली मुढ़ियां पुला के सरकंडे से बनाई जाती हैं. इसलिए लागत कम और मुनाफा अधिक होता है. यही वजह है की अब यह गांव मूढ़ी बास के नाम से ही जाना जाता है.

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Last Updated : Dec 5, 2024, 2:52 PM IST
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