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गैंडों का आशियाना बन सकता था उत्तराखंड, NTCA की आपत्ति ने रोकी 'राह', जानिए वजह - World Rhino Day

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : 3 hours ago

Updated : 2 hours ago

World Rhino Day दुनियाभर में गैंडों की सिकुड़ती आबादी इस विशालकाय वन्यजीव को विलुप्त होने की तरफ धकेल रही है. हालांकि एक समय ऐसा भी था जब इनकी नेपाल से भारत और पाकिस्तान तक में भी अच्छी खासी संख्या थी. लेकिन अवैध शिकार और बढ़ते इंसानी दबाव के कारण राइनो सर्वाइव नहीं कर पा रहे. आज भी ये अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहे हैं. हालांकि, एक समय था जब उत्तराखंड के पास गैंडों का संसार बसाने का अच्छा मौका था.

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वर्ल्ड राइनो डे (PHOTO- ETV Bharat)

देहरादूनः वन्यजीव प्रेमियों के लिए जंगल में टाइगर या हाथी देखना जितना रोमांच भरा होता है. उतना ही गैंडे का दीदार करना भी. लेकिन दुर्भाग्य से गैंडा उन वन्यजीवो में शामिल है, जिनका दुनियाभर में सबसे ज्यादा शिकार किया गया. और आज इनकी कई प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर है. दुनिया में गैंडों की 5 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें भारत और नेपाल में पाए जाने वाले गैंडों को एक सींग वाला गैंडा कहा जाता है.

दुनिया में बाकी चार प्रजातियों को जाने तो इनमें सुमात्रा गैंडा, काला गैंडा, सफेद गैंडा और जावन गैंडा शामिल है. दुनिया में काले गैंडे की 87 फीसदी आबादी नामीबिया दक्षिण अफ्रीका और केन्या में मौजूद है. इंटरनेशनल राइनो फाउंडेशन के अनुसार दुनिया में काले गैंडों की संख्या 6421 रह गई है. इसी तरह दुनिया में सबसे ज्यादा सफेद गैंडे हैं, जिनकी संख्या 17 हजार 464 बताई गई. जावन गैंडे पूरी दुनिया में केवल 50 के करीब ही बचे हैं. इसी तरह सुमात्रा गैंडे की आबादी भी पूरी दुनिया में 34 से 47 के बीच ही बची है. यह सभी प्रजातियां अधिकतर अफ्रीका में ही पाई जाती है.

समीर सिन्हा पीसीसीएफ वाइल्डलाइफ, उत्तराखंड वन विभाग (VIDEO- ETV Bharat)

दो देशों में 4 हजार गैंडे: भारतीय गैंडों या एक सींग वाले गैंडों की आबादी को देखे तो वाइल्डलाइफ पर काम करने वाली संस्था वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (WWF) के अनुसार भारत और नेपाल में इनकी संख्या करीब 4 हजार मौजूद है. हालांकि, 20वीं सदी के दौरान दुनिया में इनकी संख्या 100 से 200 के बीच ही रह गई थी. लेकिन भारत में गैंडों के संरक्षण को लेकर जिस तरह बेहतर कार्य हुए उसके बाद अब इनकी संख्या भारत और नेपाल में मिलाकर करीब 4000 तक पहुंच गई है. भारतीय गैंडों की औसत लंबाई 12 फुट और ऊंचाई पांच से छह फुट तक होती है. मादा गैंडे का वजन 1500 किलो और नर गैंडे का वजन लगभग 2000 किलो तक होता है.

दुनियाभर में घटी गैंडों की संख्या: वैसे पूरी दुनिया में गैंडों की संख्या पर आंकड़े बेहद चौंकाने वाले हैं. डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के अनुसार, 20वीं सदी की शुरुआत में अफ्रीका और एशिया में करीब 5 लाख गैंडे मौजूद थे. जिनकी संख्या 1970 के करीब घटकर 70 हजार रह गई और आज दुनिया में करीब 27 हजार गैंडे ही बचे हैं.

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उत्तराखंड का सुरई रेंज गैंडों के लिए मुफीद इलाका (PHOTO- ETV Bharat)

किताबों में दर्ज है उत्तराखंड में गैंडे होने की जानकारी: पीसीसीएफ वाइल्डलाइफ डॉ समीर सिन्हा का कहना है कि किताबों में यह बात दर्ज है कि नेपाल से लेकर पाकिस्तान तक बड़ी संख्या में गैंडों की मौजूदगी रही है. उत्तराखंड के तराई क्षेत्र में भी गैंडे होने की बात किताबों में मिलती है. उनके अनुसार, वाइल्डलाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया के सर्वे में उत्तराखंड के सुरई रेंज के कुछ क्षेत्रों को गैंडों के वास स्थल के रूप में बेहतर होने के लिए चिन्हित किया गया है.

उत्तराखंड में गैंडे नहीं: एक सींग के गैंडों के लिए असम के काजीरंगा उद्यान को दुनियाभर में जाना जाता है. इनके संरक्षण के लिए भी यहां के प्रयासों को सराहा जाता है. हालांकि, ऐसा ही एक मौका उत्तराखंड के पास भी रहा, जब उत्तराखंड टाइगर्स की तरह गैंडों के संरक्षण में भी खुद को साबित कर सके. खास बात यह है कि वन्यजीवों के लिए मुफीद माने जाने वाले उत्तराखंड में गैंडों की कोई मौजूदगी नहीं है. यानी प्रदेश में गैंडे वन्य जीव प्रेमियों के लिए उपलब्ध नहीं हैं. जबकि पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश ने गैंडों के संरक्षण की परियोजना चलाकर दुधवा राष्ट्रीय उद्यान में इनके संरक्षण को लेकर देशभर में वाहवाही लेने में कामयाबी पाई है.

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2019 में गैंडों को उत्तराखंड में बसाने का था बना था प्रोजेक्ट (PHOTO- ETV Bharat)

NTCA ने जताई थी आपत्ति: ऐसा नहीं है कि उत्तराखंड के पास गैंडों के संरक्षण को लेकर मौका ना रहा हो. उत्तराखंड टाइगर्स की तरह ही राइनो संरक्षण में भी देश और दुनिया को अपना लोहा मनवा सकता था. इसके लिए बाकायदा नवंबर 2019 में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की अध्यक्षता में केंद्रीय वन्य बोर्ड को प्रस्ताव भेजा गया था. प्रस्ताव पर प्रोजेक्ट भी तैयार कर लिया गया था. राज्य वन्यजीव बोर्ड ने असम के काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान से 12 गैंडों को लाने की मंजूरी भी दे दी गई थी. लेकिन केंद्रीय स्तर पर नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (NTCA) ने ये कहते हुए आपत्ति जताई थी कि इस प्रोजेक्ट से वन्यजीव संघर्ष के मामले बढ़ेंगे. और बाघों के संरक्षण में अड़चन पैदा होगी. इसके बाद उत्तराखंड में गैंडों के संसार को बसाने का सपना अधूरा रह गया.

सुरई रेंज गैंडों के लिए मुफीद: यह स्थिति तब है जब वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (डब्ल्यूआईआई) सुरई रेंज के कुछ क्षेत्रों को राइनो के लिहाज से मुफीद बता चुके हैं. हालांकि, एनटीसीए ने सुरई रेंज में बाघों की संख्या की उपस्थिति बताते हुए सुरई रेंज में गैंडों के संरक्षण के प्रोजेक्ट को न करने की पैरवी की थी.

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भारत में पाए जाते हैं एक सींग वाले गैंडे (PHOTO- ETV Bharat)

कुल मिलाकर देखा जाए तो उत्तराखंड ने राइनो प्रोजेक्ट को आगे बढ़ने का मौका खो दिया है. जबकि टाइगर्स के बाद राइनो प्रोजेक्ट्स के जरिए उत्तराखंड एक नए मेहमान का स्वागत कर सकता था.

भारत में इन जगहों पर पाए जाते हैं एक सींग वाले गैंडे

  • दुधवा नेशनल पार्क, उत्तर प्रदेश
  • ओरंग नेशनल पार्क, दारंग और सोनितपुर जिला असम
  • काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान, कंचनजुरी जिला असम
  • पोबितोरा वन्यजीव अभयारण्य, गुवाहाटी
  • जलदापारा नेशनल पार्क, पश्चिम बंगाल
  • गोरूमारा नेशनल पार्क, पश्चिम बंगाल

ये भी पढ़ेंः Rhino Day Special : 100 साल बाद पुरखों की धरती पर बसे दुधवा के गैंडे, देखिए खास रिपोर्ट

देहरादूनः वन्यजीव प्रेमियों के लिए जंगल में टाइगर या हाथी देखना जितना रोमांच भरा होता है. उतना ही गैंडे का दीदार करना भी. लेकिन दुर्भाग्य से गैंडा उन वन्यजीवो में शामिल है, जिनका दुनियाभर में सबसे ज्यादा शिकार किया गया. और आज इनकी कई प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर है. दुनिया में गैंडों की 5 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें भारत और नेपाल में पाए जाने वाले गैंडों को एक सींग वाला गैंडा कहा जाता है.

दुनिया में बाकी चार प्रजातियों को जाने तो इनमें सुमात्रा गैंडा, काला गैंडा, सफेद गैंडा और जावन गैंडा शामिल है. दुनिया में काले गैंडे की 87 फीसदी आबादी नामीबिया दक्षिण अफ्रीका और केन्या में मौजूद है. इंटरनेशनल राइनो फाउंडेशन के अनुसार दुनिया में काले गैंडों की संख्या 6421 रह गई है. इसी तरह दुनिया में सबसे ज्यादा सफेद गैंडे हैं, जिनकी संख्या 17 हजार 464 बताई गई. जावन गैंडे पूरी दुनिया में केवल 50 के करीब ही बचे हैं. इसी तरह सुमात्रा गैंडे की आबादी भी पूरी दुनिया में 34 से 47 के बीच ही बची है. यह सभी प्रजातियां अधिकतर अफ्रीका में ही पाई जाती है.

समीर सिन्हा पीसीसीएफ वाइल्डलाइफ, उत्तराखंड वन विभाग (VIDEO- ETV Bharat)

दो देशों में 4 हजार गैंडे: भारतीय गैंडों या एक सींग वाले गैंडों की आबादी को देखे तो वाइल्डलाइफ पर काम करने वाली संस्था वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (WWF) के अनुसार भारत और नेपाल में इनकी संख्या करीब 4 हजार मौजूद है. हालांकि, 20वीं सदी के दौरान दुनिया में इनकी संख्या 100 से 200 के बीच ही रह गई थी. लेकिन भारत में गैंडों के संरक्षण को लेकर जिस तरह बेहतर कार्य हुए उसके बाद अब इनकी संख्या भारत और नेपाल में मिलाकर करीब 4000 तक पहुंच गई है. भारतीय गैंडों की औसत लंबाई 12 फुट और ऊंचाई पांच से छह फुट तक होती है. मादा गैंडे का वजन 1500 किलो और नर गैंडे का वजन लगभग 2000 किलो तक होता है.

दुनियाभर में घटी गैंडों की संख्या: वैसे पूरी दुनिया में गैंडों की संख्या पर आंकड़े बेहद चौंकाने वाले हैं. डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के अनुसार, 20वीं सदी की शुरुआत में अफ्रीका और एशिया में करीब 5 लाख गैंडे मौजूद थे. जिनकी संख्या 1970 के करीब घटकर 70 हजार रह गई और आज दुनिया में करीब 27 हजार गैंडे ही बचे हैं.

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उत्तराखंड का सुरई रेंज गैंडों के लिए मुफीद इलाका (PHOTO- ETV Bharat)

किताबों में दर्ज है उत्तराखंड में गैंडे होने की जानकारी: पीसीसीएफ वाइल्डलाइफ डॉ समीर सिन्हा का कहना है कि किताबों में यह बात दर्ज है कि नेपाल से लेकर पाकिस्तान तक बड़ी संख्या में गैंडों की मौजूदगी रही है. उत्तराखंड के तराई क्षेत्र में भी गैंडे होने की बात किताबों में मिलती है. उनके अनुसार, वाइल्डलाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया के सर्वे में उत्तराखंड के सुरई रेंज के कुछ क्षेत्रों को गैंडों के वास स्थल के रूप में बेहतर होने के लिए चिन्हित किया गया है.

उत्तराखंड में गैंडे नहीं: एक सींग के गैंडों के लिए असम के काजीरंगा उद्यान को दुनियाभर में जाना जाता है. इनके संरक्षण के लिए भी यहां के प्रयासों को सराहा जाता है. हालांकि, ऐसा ही एक मौका उत्तराखंड के पास भी रहा, जब उत्तराखंड टाइगर्स की तरह गैंडों के संरक्षण में भी खुद को साबित कर सके. खास बात यह है कि वन्यजीवों के लिए मुफीद माने जाने वाले उत्तराखंड में गैंडों की कोई मौजूदगी नहीं है. यानी प्रदेश में गैंडे वन्य जीव प्रेमियों के लिए उपलब्ध नहीं हैं. जबकि पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश ने गैंडों के संरक्षण की परियोजना चलाकर दुधवा राष्ट्रीय उद्यान में इनके संरक्षण को लेकर देशभर में वाहवाही लेने में कामयाबी पाई है.

World Rhino Day
2019 में गैंडों को उत्तराखंड में बसाने का था बना था प्रोजेक्ट (PHOTO- ETV Bharat)

NTCA ने जताई थी आपत्ति: ऐसा नहीं है कि उत्तराखंड के पास गैंडों के संरक्षण को लेकर मौका ना रहा हो. उत्तराखंड टाइगर्स की तरह ही राइनो संरक्षण में भी देश और दुनिया को अपना लोहा मनवा सकता था. इसके लिए बाकायदा नवंबर 2019 में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की अध्यक्षता में केंद्रीय वन्य बोर्ड को प्रस्ताव भेजा गया था. प्रस्ताव पर प्रोजेक्ट भी तैयार कर लिया गया था. राज्य वन्यजीव बोर्ड ने असम के काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान से 12 गैंडों को लाने की मंजूरी भी दे दी गई थी. लेकिन केंद्रीय स्तर पर नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (NTCA) ने ये कहते हुए आपत्ति जताई थी कि इस प्रोजेक्ट से वन्यजीव संघर्ष के मामले बढ़ेंगे. और बाघों के संरक्षण में अड़चन पैदा होगी. इसके बाद उत्तराखंड में गैंडों के संसार को बसाने का सपना अधूरा रह गया.

सुरई रेंज गैंडों के लिए मुफीद: यह स्थिति तब है जब वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (डब्ल्यूआईआई) सुरई रेंज के कुछ क्षेत्रों को राइनो के लिहाज से मुफीद बता चुके हैं. हालांकि, एनटीसीए ने सुरई रेंज में बाघों की संख्या की उपस्थिति बताते हुए सुरई रेंज में गैंडों के संरक्षण के प्रोजेक्ट को न करने की पैरवी की थी.

World Rhino Day
भारत में पाए जाते हैं एक सींग वाले गैंडे (PHOTO- ETV Bharat)

कुल मिलाकर देखा जाए तो उत्तराखंड ने राइनो प्रोजेक्ट को आगे बढ़ने का मौका खो दिया है. जबकि टाइगर्स के बाद राइनो प्रोजेक्ट्स के जरिए उत्तराखंड एक नए मेहमान का स्वागत कर सकता था.

भारत में इन जगहों पर पाए जाते हैं एक सींग वाले गैंडे

  • दुधवा नेशनल पार्क, उत्तर प्रदेश
  • ओरंग नेशनल पार्क, दारंग और सोनितपुर जिला असम
  • काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान, कंचनजुरी जिला असम
  • पोबितोरा वन्यजीव अभयारण्य, गुवाहाटी
  • जलदापारा नेशनल पार्क, पश्चिम बंगाल
  • गोरूमारा नेशनल पार्क, पश्चिम बंगाल

ये भी पढ़ेंः Rhino Day Special : 100 साल बाद पुरखों की धरती पर बसे दुधवा के गैंडे, देखिए खास रिपोर्ट

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