मेरठ : औद्योगिक इकाइयों से निकला प्रदूषित जल अब सूरज की रोशनी से साफ हो सकेगा. इसके लिए बिजली की भी जरूरत नहीं पड़ेगी. चौ.चरण सिंह यूनिवर्सिटी के भौतिक विज्ञान के रिसर्च स्कॉलर्स ने इस अनूठे तरीके की खोज की है. इसके लिए एक खास किस्म की झिल्ली (मेम्ब्रेन) विकसित की गई है. यह दूषित पानी से प्रदूषित कणों को हटा देगी. साल 2024 से चल रहे रिसर्च के बाद अब इसमें कामयाबी मिली है.
दुनिया में औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला प्रदूषित बड़ी समस्या के रूप में लोगों के सामने आ रहा है. इससे पानी की काफी बर्बादी होती है. साथ ही उसके ट्रीटमेंट का तरीका भी काफी महंगा रहता है. इन बातों को ध्यान में रखकर चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के भौतिक विज्ञान विभाग के शोधार्थियों ने नैनो संघटकों से एक विशेष झिल्ली यानी मेम्ब्रेन ईजाद की है. यह झिल्ली बिना बिजली के सूर्य की रोशनी से निकलने वाली किरणों से मिलने वाली पावर से ही प्रदूषित जल से अतिरिक्त एवं प्रदूषित कणों को हटा देगी. जो पानी इस झिल्ली से होकर गुजरेगा वह साफ हो जाएगा.
कई साल की मेहनत के बाद मिली सफलता : भौतिक विज्ञान विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर संजीव कुमार शर्मा ने ईटीवी भारत को बताया कि भौतिक विज्ञान विभाग के शोध छात्र दीपक कुमार ने कई वर्ष की मेहनत के बाद यह सफलता हासिल की है. कहीं भी इस खास मेम्ब्रेन को सूर्य की एनर्जी मिलेगी तो मेम्ब्रेन में रुके सभी प्रदूषक विभिन्न गैस और गाद में बदल जाएंगे. इस पूरी प्रक्रिया में प्रदूषण फैलाने वाले किसी भी पदार्थ का इस्तेमाल नहीं होगा.
जर्मनी के जर्नल में रिसर्च प्रकाशित : इस रिसर्च को जर्मनी के प्रतिष्ठित जर्नल एडवांस्ड साइंस न्यूज ने नैनो-माइक्रो स्माल जर्नल में प्रकाशित किया है. प्रोफेसर के अनुसार शोध कर रहे स्टूडेंट्स ने इस प्रोजेक्ट में तमाम महत्वपूर्ण अध्ययन किए. सैकड़ों प्रयोग किए. आखिरकार वह सफल रहे. प्रो. संजीव ने बताया कि रिसर्च स्कॉलर दीपक कुमार ने सीटीसी नैनोकंपोजिट तैयार किए हैं, सीटीसी में सेरियम डॉइ-ऑक्साइड (सीईओटू) और टाइटेनियम डॉइऑक्साइड (टीआईओटू) घटक हैं.
झिल्ली में काम करते हैं कई घटक : सीईओटू पर्यावरण अनुकूल एवं एंटी ऑक्सीडेंट है. यह हानिकारक प्रतिक्रियाशील ऑक्सीजन प्रजातियों को बेअसर कर देता है. वहीं टीआईओटू सर्वश्रेष्ठ उत्प्रेरक का काम करता है. टीआईओटू कार्बनिक प्रदूषकों को पानी, कार्बन-डाई-ऑक्साइड और हानिरहित पदाथों में तोड़ देता है. वह बताते हैं कि इन घटकों से झिल्लीनुमा कार्बन नैनोट्यूब विकसित की है. इसमें नैनो घटकों को कॉटन पर लगाया गया है. इसके बाद सूर्य की रोशनी में यह फोटोरिडॉक्स प्रभाव पैदा करती है. इससे कार्बनिक प्रदूषक विभिन्न ऑक्साइड या ठोस में बदल जाते हैं.
सौर ऊर्जा से संचालित होगा TiO2 : वह कहते हैं कि उन्नत ऑक्सीकरण प्रक्रियाओं (एओपी) में लक्ष्य यौगिकों पर हमला करने के लिए अत्यधिक प्रतिक्रियाशील रेडिकल्स का निर्माण शामिल है. यह पारंपरिक अपशिष्ट जल उपचार प्रक्रियाओं की तुलना में बेहतर प्रदर्शन प्रदान कर सकता है. एओपी में, टाइटेनियम डाइऑक्साइड (TiO2) आधारित फोटोकैटलिसिस एक हरित और टिकाऊ तकनीक है. यह पानी से फार्मास्यूटिकल्स को हटाने के लिए सक्षम है. कारण, एक तो संशोधित TiO2 को अक्षय सौर ऊर्जा द्वारा संचालित किया जा सकता है, वहीं अतिरिक्त ऑक्सीकरण एजेंट की आवश्यकता नहीं है, तीसरा स्थिर फोटोकैटलिस्ट का कई बार पुन: उपयोग किया जा सकता है.
मेम्ब्रेन को 5 बार इस्तेमाल में लाना संभव : प्रोफेसर संजीव शर्मा बताते हैं कि नैनो संघटकों से विकसित मेम्ब्रेन से औद्योगिक इकाइयों का निष्कासित जल प्रवाहित किया जाएगा. जैसे से ही यह जल इस विशिष्ट मेम्ब्रेन से गुजरेगा तो नैनो संघटकों के संपर्क में आने से जल से अलग होकर टूट जाएगा. इससे कुछ गैस निष्कासित होगी और कुछ ठोस गाद के रूप में नीचे बैठ जाएंगे. इस तकनीक के बाद न सिर्फ भविष्य में औद्योगिक इकाइयों से निष्कासित जल को प्राकृतिक तरीके से बिना पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने सही करने का रास्ता खुलेगा, बल्कि यह काफी किफायती भी होगा. एक मेम्ब्रेन को पांच बार इस्तेमाल में लाया जा सकेगा.
इंडस्ट्री से निकलने वाले जल में होते हैं हानिकारिक रसायन : इसका पेटेंट भी फाइल किया जा चुका है. वहीं जो खास झिल्ली तैयार की गई है. उसमें भी गन्ने के वेस्ट यानी खोई समेत तमाम अलग-अलग ऐसे वेस्ट का इस्तेमाल किया है, जिनसे कॉस्ट भी नहीं बढ़ने वाली. अब आने वाले समय में इस विधि से पेंट, टैक्सटाइल, फॉर्मा, शुगर, कागज की औद्योगिक इकाइयों समेत अलग अलग तरह की इकाइयों से निकलने वाले वेस्टेज को साफ किया जा सकेगा. इंडस्ट्री से निकलने वाले जल में प्रयुक्त हानिकारिक रसायन होते हैं, जिनकी वजह से उस वेस्ट को उपयोग में भी नहीं लिया जा सकता. इस प्रक्रिया के बाद उन्हें उपयोग में लाया जा सकता है.
झिल्ली से साफ किए पानी पर भी होगा रिसर्च : प्रोफेसर संजीव शर्मा ने बताया कि अब जो अगला परीक्षण होना है, वह इस तकनीक के लिए है. जिसमें यह जानना है कि जो जल इस खास विधि से साफ होगा, क्या वह पानी पीने योग्य भी है या नहीं, इसके अलावा पानी साफ करने से जो गाद मिलेगी, क्या वह मिट्टी में पोषक तत्वों का विकल्प बन सकती है. उन्होंने बताया कि अब रिसर्च टीम इस तकनीक से डिवाइस विकसित करने में प्रत्यशील है. जहां पर्याप्त सूर्य की रोशनी नहीं होती है, जहां सिर्फ दिन का उजाला होता है, उसको लेकर भी एक रिसर्च स्टूडेंट कर रहे हैं. विश्वविद्यालय से पहले प्रोफेसर संजीव कुमार साऊथ कोरिया और दिल्ली विश्वविद्यालय में भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं.
अब इस रिसर्च को लैब ले लैंड तक ले जानी है. इसके बाद एक बार में यह कितना लीटर पानी साफ कर सकेगा. इसकी जानकारी सामने आ पाएगी. झिल्ली की लागत का भी अभी आकलन नहीं किया गया है.
यह भी पढ़ें : महाकुंभ से पहले गंगा-युमना के जल की शुद्धता पर सुनवाई, NGT कोर्ट ने आदेश किया सुरक्षित