लोहरदगा: सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2013 में नोटा के विकल्प को अनिवार्य किया था. इसके बाद साल 2014 और साल 2019 के चुनाव में मतदाताओं ने नोटा का उपयोग किया. मजेदार बात यह है कि लोहरदगा लोकसभा सीट में नोटा को जितने वोट मिले हैं, उतने वोट कई निर्दलीय प्रत्याशियों को भी नहीं मिले. कह सकते हैं कि निर्दलीय प्रत्याशियों पर नोटा ज्यादा भारी है. नोटा का गणित बेहद रोचक है.
पहली बार में डेढ़ प्रतिशत वोट नोटा को
चुनाव मैदान में उतरे प्रत्याशियों के प्रति नाराजगी कहिए या लोगों में जागरुकता का अभाव, कारण चाहे जो भी हो, लोहरदगा में पिछले दो लोकसभा चुनाव में नोटा को जो वोट मिले हैं, वह चौंकाने वाले हैं. साल 2014 में तो डेढ़ प्रतिशत वोट नोटा को मिले थे. साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में कुल 651460 वोट में से नोटा को 16764 वोट प्राप्त हुए थे.
साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में कुल 817550 वोट में से कुल 10783 वोट नोटा को दिए गए थे. इससे काफी कम वोट कई निर्दलीय प्रत्याशियों को मिले थे. नोटा को इतनी अधिक वोट मिलना निश्चित रूप से लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत तो नहीं हो सकता है. सर्वोच्च न्यायालय ने नोटा को अनिवार्य इस वजह से किया था कि लोग अपनी इच्छा के अनुसार मतदान करें. लोहरदगा लोकसभा सीट में नोटा को मिले वोट प्रत्याशियों के लिए भी चिंता का विषय है.
वर्ष 2014 के चुनाव परिणाम
- सुदर्शन भगत - भाजपा - 226666
- डॉ. रामेश्वर उरांव - कांग्रेस - 220177
- चमरा लिंडा - एआईटीसी - 118355
- वीरेंद्र भगत - जेवीएम - 26109
- नोटा - 16764
- लाल साय कुमार भगत - सीपीआई (एमएल) (एल) - 13252
- जयराम इंदवार - बीएसपी - 11794
- महेंद्र उरांव - निर्दलीय प्रत्याशी - 6436
- रंजीत उरांव - निर्दलीय प्रत्याशी - 6037
- नवल किशोर सिंह, निर्दलीय प्रत्याशी - 5870
साल 2019 के चुनाव परिणाम
- सुदर्शन भगत - भाजपा - 371595
- सुखदेव भगत - कांग्रेस - 361232
- देव कुमार धान - जेकेपी - 19546
- नोटा - 10783
- संजय उरांव - निर्दलीय - 10663
- दिनेश उरांव - एआईटीसी - 9643
- रघुनाथ महली - निर्दलीय - 8950
- संजय उरांव - निर्दलीय - 5263
- कलिंदर उरांव - निर्दलीय - 4061
- श्रवण कुमार पन्ना - निर्दलीय - 4048
- अजीत कुमार भगत - निर्दलीय - 2880
- एकुस धान - निर्दलीय - 2341
- आनंद पॉल - निर्दलीय - 2339
- एलोन बाखला - निर्दलीय - 2317
- अम्बेर सौरव कुमार - निर्दलीय - 1889
हर बार कई निर्दलीय प्रत्याशी भी चुनाव मैदान में उतरते हैं. महत्वपूर्ण बात यह है कि निर्दलीय प्रत्याशियों से कहीं अधिक लोग नोटा को वोट दे रहे हैं. यह स्थिति कई सवालों को जन्म देती है. साल 2014 के बाद से नोटा को अनिवार्य किया गया है. नोटा को मिलने वाले वोट के पीछे की वजह क्या है, यह भी एक विचार करने योग्य बात है.
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