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नए साल पर इसकी खूब होती थी डिमांड, अब सोशल मीडिया के जमाने में पहुंचा लुप्त होने की कगार पर - GREETING CARDS

सोशल मीडिया के इस युग में ग्रीटिंग कार्ड अब लुप्त होने की कगार पर हैं. ग्रीटिंग कार्ड बाजार से भी गायब होने लगे हैं.

greeting cards
ग्रीटिंग्स कार्ड (ईटीवी भारत)
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Dec 26, 2024, 7:34 AM IST

रांची: डिजिटल युग में त्योहारों की खुशियां अब मोबाइल फोन तक सीमित रह गई है. एक समय था जब क्रिसमस और नए साल के आगमन पर बाजार ग्रीटिंग कार्ड से पटा रहता था. आज बाजार में ढूंढने से भी दुकान में ग्रीटिंग कार्ड नहीं मिलेंगे.

इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक समय राजधानी रांची के चर्च कॉम्प्लेक्स स्थित देश की एक प्रतिष्ठित कार्ड निर्माण कंपनी की दुकान पर नए साल और क्रिसमस के मौके पर ग्रीटिंग कार्ड खरीदने वालों की इतनी भीड़ होती थी कि दिन में कई बार दुकान का शटर गिरा दिया जाता था और ग्राहकों को एक-एक कर अंदर जाने दिया जाता था. आज यहां सन्नाटा पसरा रहता है.

लुप्त होने की कगार पर ग्रीटिंग कार्ड (ईटीवी भारत)

नए साल और क्रिसमस को लेकर युवाओं में ज्यादा खुशी रहती है और यही वजह है कि इस मौके पर सबसे ज्यादा ग्रीटिंग कार्ड खरीदने में युवा सबसे आगे रहते थे, लेकिन समय बदला और लोगों की सोच भी बदली और मिनटों में सब कुछ हो जाने की चाहत ने त्योहार मनाने के चलन को भी तेजी से बदल दिया है.

हर्षिता के मुताबिक ऑनलाइन ग्रीटिंग देना आसान और सुलभ है, शायद इसीलिए इसे ज्यादा पसंद किया जाता है. ग्रीटिंग कार्ड बहुत करीबी लोगों को ही भेजे जाते हैं. बाजार में मांग नहीं होने के कारण दुकानदार इसे रखना पसंद नहीं करते.

रांची के सुजाता चौक स्थित दुकानदार मोहम्मद रजा कहते हैं कि सोशल मीडिया के अंधे युग ने ग्रीटिंग कार्ड को भी ग्रहण लगा दिया है. स्थिति यह है कि अब तक कोई ग्राहक ग्रीटिंग कार्ड मांगने नहीं आया है, तो मोबाइल के इस युग में जब मांग ही नहीं है तो दुकान में ग्रीटिंग कार्ड क्यों रखे जाएं.

डाकिया के हाथ से ग्रीटिंग कार्ड गायब

नए साल के मौके पर भेजे जाने वाले शुभकामना संदेशों में डाक विभाग अहम भूमिका निभाता रहा है. एक समय था जब नए साल और क्रिसमस के मौके पर डाकघर शुभकामना संदेशों से भरे ग्रीटिंग कार्ड से भरा रहता था. लेकिन स्थिति यह है कि अब डाकिया के हाथ से ग्रीटिंग कार्ड गायब हो गए हैं. हर साल की तरह इस बार भी दिल्ली ने डाक विभाग को नए साल पर लोगों तक प्राथमिकता के आधार पर शुभकामना कार्ड पहुंचाने के निर्देश दिए हैं और इसके लिए हर डाकघर में एक विशेष टीम बनाई गई है, लेकिन जब शुभकामना संदेश से संबंधित डाक ही नहीं आएगी तो इस टीम का क्या फायदा.

डोरंडा डाकघर के पोस्टमास्टर अरुण कुमार सिंह कहते हैं कि डिजिटल युग में नये साल पर आने वाले कार्ड से संबंधित डाक कम हो गयी है. लोग सोशल मीडिया के जरिये शुभकामनाएं देना ज्यादा पसंद करते हैं, यही वजह है कि अब शुभकामना संदेश भेजने का पारंपरिक तरीका बदल गया है.

डाक विभाग के एपीएम चितरंजन कुमार कहते हैं कि सोशल मीडिया भले ही मिनटों और सेकेंडों में शुभकामना संदेश पहुंचा देता है, लेकिन यह दिल को नहीं छूता जो ग्रीटिंग कार्ड भेजने की हमारी पारंपरिक प्रथा रही है. जब हम ग्रीटिंग कार्ड खरीदते हैं तो उस पर कुछ भावनात्मक बातें भी लिखते हैं जो प्राप्तकर्ता को जोड़ती है लेकिन डिजिटल संदेश हमें यह एहसास दिलाते हैं कि हम सिर्फ और सिर्फ मशीनी युग में हैं जो किसी तरह की भावना पैदा नहीं करता. बावजूद इसके आज यह तेजी से फैल रहा है और सबकुछ नष्ट कर रहा है.

हालांकि इंग्लैंड में 1843 में शुरू हुआ क्रिसमस कार्ड का चलन आज भी जिंदा है. ब्रिटिश व्यवसायी हेनरी कोल ने 1846 में इसे व्यवसायिक रूप दिया और समय के साथ यह खास होता गया. आज डिजिटल युग में इसकी उपयोगिता भले ही कम मानी जाती हो लेकिन यह आज भी खास है और हमेशा रहेगी.

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रांची: डिजिटल युग में त्योहारों की खुशियां अब मोबाइल फोन तक सीमित रह गई है. एक समय था जब क्रिसमस और नए साल के आगमन पर बाजार ग्रीटिंग कार्ड से पटा रहता था. आज बाजार में ढूंढने से भी दुकान में ग्रीटिंग कार्ड नहीं मिलेंगे.

इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक समय राजधानी रांची के चर्च कॉम्प्लेक्स स्थित देश की एक प्रतिष्ठित कार्ड निर्माण कंपनी की दुकान पर नए साल और क्रिसमस के मौके पर ग्रीटिंग कार्ड खरीदने वालों की इतनी भीड़ होती थी कि दिन में कई बार दुकान का शटर गिरा दिया जाता था और ग्राहकों को एक-एक कर अंदर जाने दिया जाता था. आज यहां सन्नाटा पसरा रहता है.

लुप्त होने की कगार पर ग्रीटिंग कार्ड (ईटीवी भारत)

नए साल और क्रिसमस को लेकर युवाओं में ज्यादा खुशी रहती है और यही वजह है कि इस मौके पर सबसे ज्यादा ग्रीटिंग कार्ड खरीदने में युवा सबसे आगे रहते थे, लेकिन समय बदला और लोगों की सोच भी बदली और मिनटों में सब कुछ हो जाने की चाहत ने त्योहार मनाने के चलन को भी तेजी से बदल दिया है.

हर्षिता के मुताबिक ऑनलाइन ग्रीटिंग देना आसान और सुलभ है, शायद इसीलिए इसे ज्यादा पसंद किया जाता है. ग्रीटिंग कार्ड बहुत करीबी लोगों को ही भेजे जाते हैं. बाजार में मांग नहीं होने के कारण दुकानदार इसे रखना पसंद नहीं करते.

रांची के सुजाता चौक स्थित दुकानदार मोहम्मद रजा कहते हैं कि सोशल मीडिया के अंधे युग ने ग्रीटिंग कार्ड को भी ग्रहण लगा दिया है. स्थिति यह है कि अब तक कोई ग्राहक ग्रीटिंग कार्ड मांगने नहीं आया है, तो मोबाइल के इस युग में जब मांग ही नहीं है तो दुकान में ग्रीटिंग कार्ड क्यों रखे जाएं.

डाकिया के हाथ से ग्रीटिंग कार्ड गायब

नए साल के मौके पर भेजे जाने वाले शुभकामना संदेशों में डाक विभाग अहम भूमिका निभाता रहा है. एक समय था जब नए साल और क्रिसमस के मौके पर डाकघर शुभकामना संदेशों से भरे ग्रीटिंग कार्ड से भरा रहता था. लेकिन स्थिति यह है कि अब डाकिया के हाथ से ग्रीटिंग कार्ड गायब हो गए हैं. हर साल की तरह इस बार भी दिल्ली ने डाक विभाग को नए साल पर लोगों तक प्राथमिकता के आधार पर शुभकामना कार्ड पहुंचाने के निर्देश दिए हैं और इसके लिए हर डाकघर में एक विशेष टीम बनाई गई है, लेकिन जब शुभकामना संदेश से संबंधित डाक ही नहीं आएगी तो इस टीम का क्या फायदा.

डोरंडा डाकघर के पोस्टमास्टर अरुण कुमार सिंह कहते हैं कि डिजिटल युग में नये साल पर आने वाले कार्ड से संबंधित डाक कम हो गयी है. लोग सोशल मीडिया के जरिये शुभकामनाएं देना ज्यादा पसंद करते हैं, यही वजह है कि अब शुभकामना संदेश भेजने का पारंपरिक तरीका बदल गया है.

डाक विभाग के एपीएम चितरंजन कुमार कहते हैं कि सोशल मीडिया भले ही मिनटों और सेकेंडों में शुभकामना संदेश पहुंचा देता है, लेकिन यह दिल को नहीं छूता जो ग्रीटिंग कार्ड भेजने की हमारी पारंपरिक प्रथा रही है. जब हम ग्रीटिंग कार्ड खरीदते हैं तो उस पर कुछ भावनात्मक बातें भी लिखते हैं जो प्राप्तकर्ता को जोड़ती है लेकिन डिजिटल संदेश हमें यह एहसास दिलाते हैं कि हम सिर्फ और सिर्फ मशीनी युग में हैं जो किसी तरह की भावना पैदा नहीं करता. बावजूद इसके आज यह तेजी से फैल रहा है और सबकुछ नष्ट कर रहा है.

हालांकि इंग्लैंड में 1843 में शुरू हुआ क्रिसमस कार्ड का चलन आज भी जिंदा है. ब्रिटिश व्यवसायी हेनरी कोल ने 1846 में इसे व्यवसायिक रूप दिया और समय के साथ यह खास होता गया. आज डिजिटल युग में इसकी उपयोगिता भले ही कम मानी जाती हो लेकिन यह आज भी खास है और हमेशा रहेगी.

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