जयपुर. उपमुख्यमंत्री प्रेमचंद बैरवा ईटीवी भारत की पेशकश नेताजी नॉन पॉलिटिकल में इस बार प्रदेश के लोगों से रूबरू हुए. उन्होंने इस मौके पर अपनी निजी जिंदगी के सफर को कैमरे पर बताया. छुटपन से लेकर मौजूदा दौर तक के कई पहलू इस चर्चा के दरमियान सामने आए. बचपन में मां को खो देने के बाद अकाल के दौर में पिता मजदूरी के लिए बाहर गए और उन्हें खुद भी जयपुर आकर भवन निर्माण श्रमिक के रूप में काम करना पड़ा.
दो बड़े भाइयों के साथ पग-पग घर से जुड़ी जिम्मेदारियों को संभालने में छोटी उम्र में कई मुश्किलों से रूबरू होना पड़ा. बड़े भाई के गंभीर चोट लगी, तो बैलों की जोड़ी के सहारे पहली बार खेत में हल जोत दिए. बैरवा बताते हैं कि हर सफर में उन्होंने अपनी पढ़ाई को जारी रखा. उनकी पत्नी ने भी खेतों पर मजदूरी के अलावा मनरेगा में भी काम किया. बैरवा मानते हैं कि परिवार के साथ-साथ उनकी पत्नी ने जीवन में उन्हें आगे बढ़ने की सीख दी और संघर्ष की लड़ाई में साथ दिया. वे भजन गाते हुए रामायण के अरण्य कांड की चौपाइयों को भजनों के रूप में गाते भी हैं.
कपड़े सिलाई का भी किया काम : एग्रीकल्चर कॉलेज में नंबर आने के बाद फीस भरने के लिए किसी दौर में डॉक्टर प्रेमचंद बैरवा के पास पैसे नहीं थे, तो गांव के एक परिचित की मदद से जयपुर की गारमेंट फैक्ट्री में सिलाई का काम शुरू कर दिया. वे बताते हैं कि कैसे उन्होंने हर परिस्थिति में पढ़ाई को जारी रखा. डॉक्टर बैरवा का मानना है कि जज्बा अगर बुलंद हो तो मुश्किलें मंजिल को हासिल करने की राह में आगे नहीं आती हैं. यही कारण है कि बारहवीं पास करने के बाद उन्होंने अपनी फीस के लिए कभी घरवालों की तरफ नहीं देखा. वे तालीम के मामले में अव्वल रहे और एलएलबी करने के बाद एमफिल और पीएचडी भी की.
एलआईसी एजेंट के रूप में किया काम : साल 2000 में अपनी राजनीतिक पारी में जिला परिषद सदस्य के रूप में दाखिल होने से पहले उपार्जन के लिए सूबे के डिप्टी सीएम प्रेमचंद बैरवा ने कई उतार-चढ़ाव देखे. पहले मजदूरी और खेतों में काम, फिर सिलाई का काम और इसके आगे एलआईसी एजेंट के रूप में भी उन्होंने काम किया. डॉक्टर बैरवा ने इस दौरान आय के साथ परिवार का सहारा बनना शुरू कर दिया और अपनी कमाई के एक हिस्से से गांव में दो बड़े भाइयों का हाथ बंटाने लगे. उन्होंने इसी दौरान जयपुर में जमीन ली और घर बनाकर परिजनों को भी राजधानी में शिफ्ट करने का काम किया. छात्र जीवन की यादों में उन्हें 70 किलोमीटर की दूरी साइकिल से तय कर जयपुर आने से फिल्में देखने के प्रसंग आज भी जहन पर पुरानी यादों के रूप में इंगित हैं.
अध्यात्म और किताबों से दोस्ती : डॉक्टर प्रेमचंद बैरवा शिक्षक होने के साथ किताबों से भी जुड़े रहे. वे हर तरह की किताब पढ़ना पसंद करते हैं, लेकिन उन्हें धर्म और आध्यात्म हमेशा प्रिय रहा है. बैरवा का कहना है कि जीवन में मिलने वाले हर शख्स के सकारात्मक बिन्दुओं से वे कुछ ना कुछ सीख लेते हैं. सत्संगी दादा के साथ अक्सर समाज सुधार के प्रसंगों ने उन्हें प्रेरणा दी है. बैरवा बताते हैं कि उनके दादा संत कल्याण दास जी महाराज ने उनसे कहा था कि माता-पिता और बड़ों का सम्मान करते हुए संस्कार मत छोड़ो. बैरवा दादा की बातों को याद करते हुए कहते हैं कि वे उन्हें मेहनत करते हुए संघर्ष करते रहने की प्रेरणा देते हैं. वे बताते हैं कि दोनों विधानसभा चुनाव की जीत से पहले उन्होंने पिता और बड़े भाई को खो दिया था. इस बार भाभी का निधन हुआ. ऐसे में चुनाव से ज्यादा उनके लिए वह वक्त बेहद भावुक करने वाले लम्हों में शुमार था.
बच्चों को लेकर कही यह बात : बच्चों के करियर को लेकर वे कहते हैं कि ज्यादातर माता-पिता बच्चों की नौकरी पर ज्यादा ध्यान देते हैं, लेकिन वे कभी भी उनकी रूचि का ख्याल नहीं रखते हैं. बैरवा मानते हैं कि बच्चों को अपने घरेलू और परंपरागत धंधों से जोड़कर देखना चाहिए, ताकि खानदानी हुनर के दम पर और आगे बढ़ें. वे कहते हैं कि फिर नौकरी मांगने वाला ही नौकरी देने लगेगा. बैरवा अपने बच्चों को डांटने की जगह समझाइश के साथ काम करने का मशविरा देते हैं. खाली समय में बैरवा गार्डनिंग के अलावा खेतों की सार-संभाल और पशुओं को संभालते हैं.
परिवार है सियासी जीवन से दूर : डॉक्टर प्रेमचंद बैरवा कहते हैं कि उनके परिवार के लोग राजनीति में दिलचस्पी नहीं रखता है, ना ही उनके बच्चे और ना ही भाइयों में से किसी भी इस तरह दिलचस्पी लगती है. बैरवा कहते हैं कि अपने परिवार में वह अकेले शख्स हैं, जो राजनीतिक जीवन के जरिए समाज से जुड़े हैं. बैरवा मानते हैं कि इच्छी शक्ति हो तो किसी भी काम को किया जा सकता है, ना कि समय काल और परिस्थिति का हवाला देकर मजबूरी और बेबस नजर आएं.