जयपुर. कहते हैं सियासत हर करवट बदलती है, किरदार हैं कि बदला नहीं करते...ईटीवी भारत की विशेष पेशकश नेताजी नॉन पॉलिटिकल में ऐसे ही किरदारों के भीतर झांकने की कोशिश हमने की है. गुफ्तगू और मुलाकात के इस दौर में हमारी टीम का सामना हुआ जयपुर ग्रेटर की महापौर डॉक्टर सौम्या गुर्जर से. जिस वक्त ईटीवी की टीम ग्रेटर महापौर के घर पहुंची, वे घर पर अपने बेटे और पेट्स के साथ खेलने में मसरूफ थीं.
इस दौरान हमारे जहन में उनकी सियासी जिंदगी से परे दिखने वाले पहलुओं को लेकर कई सवाल थे. मसलन जयपुर ग्रेटर की महापौर को घर पर वक्त कैसे बिताना पंसद है. दोपहर का वक्त क्या बच्चों के साथ ही बिताती हैं. क्या वे खुद घर पर खाना बनाती हैं या फिर बच्चों की पसंद के मुताबिक कुछ पकाती हैं. जाहिर है कि इन सवालों का जवाब शायद आपके पास भी ना हो. जब ईटीवी भारत की टीम मेयर से मिलने पहुंची तो वे लाल रंग की साड़ी में थीं और आहते में बेटे सोहम के साथ खेल रही थीं. इस दौरान बचपन की बातों के साथ किस्सों का सिलसिला बना और कई पहलुओं से रूबरू करवाता रहा.
दिल तो बच्चा है जी : महापौर सौम्या गुर्जर ने अपने बचपन की यादों को साझा करते हुए बताया कि कैसे छोटी-छोटी शरारतें उन्हें आज भी बीते वक्त की याद दिलाती हैं. वे एक किस्से का जिक्र करते हुए कहती हैं कि स्कूल के वक्त में कैसे सहेली की नेल पॉलिश को देखकर उन्होंने क्लास में ही नेल पॉलिश लगाना शुरू कर दिया और फिर कैसे टीचर की गुस्से से उन्हें रूबरू होना पड़ा. वे बताती हैं कि जब हायर क्लासेज में पहुंचीं तो सब्जेक्ट को लेकर पसोपेश रही, लेकिन बाद में संस्कृति, साहित्य और प्रकृति ने उन्हें साइंस फैकल्टी से बाहर कर अपनी दिलचस्पी से जोड़ दिया.
सौम्या गुर्जर को निराला की पंक्तियां आज भी बदलाव और विस्तार की प्रेरणा देती हैं. शिक्षा के क्षेत्र में कैसे योग से जुड़ाव हुआ और कैसे प्राकृत भाषा सीखीं, हर बात उन्होंने साझा की. बचपन को याद करते हुए सौम्या गुर्जर बताती हैं कि वे सरकारी स्कूल में पढ़ती थीं और उनके लिए नानी का घर वेकेशन का बेस्ट डेस्टिनेशन होता था. अब वह घर और शहर दोनों को संभाल रही हैं. घर से बाहर निकलते ही मेयर बन जाती हैं और घर में आते ही मां और पत्नी की भूमिका में होती हैं. सौम्या गुर्जर का मानना है कि महिलाएं मल्टी टास्किंग होती हैं, इसलिए आसानी से घर और बाहर के काम भी संभाल लेती हैं.
बचपन में राम और हनुमान का कनेक्शन : घर के ड्राइंग हॉल में लगी हनुमान प्रतिमा को लेकर डॉक्टर सौम्या कहती हैं कि यह उनके बचपन का कनेक्शन है. उन्होंने अपनी नानी के घर पर रामायण, सुंदरकांड और हनुमान चालीसा का पाठ करना सीखा था. शुरुआती दौर में परिवार में किसी के जन्मदिन पर उन्हें हनुमान चालीसा के पाठ की सीख मिलती थी. 21 चालीसा पाठ के बाद हलवा वाले केक मिलते थे. वे बताती हैं कि भगवत गीता से उन्हें हमेशा प्रेरणा मिलती है.
जयपुर से मिली राह : उच्च शिक्षा के लिए जयपुर आने के बाद डॉक्टर सौम्या गुर्जर ने राजस्थान यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया और गाइड की मदद से पीएचडी की उपाधि हासिल की. राजनीति की शुरुआत को लेकर उनका कहना है कि यह सफर तय नहीं था. हालांकि, समाज के लिए कुछ करने की तमन्ना थी, लेकिन कैम्पस में दाखिले के वक्त ही चुनाव पर पाबंदी लगी और रुखसत होने के वक्त चुनाव शुरू हुए. ऐसे में लोकतंत्र की पहली सीढ़ी का सफर तो वह तय नहीं कर सकीं. कैम्पस से जुड़ी यादों में उन्हें एक शादी में बिन बुलाए मेहमान की हैसियत से खाना खाना भी याद है. सौम्या गुर्जर बताती हैं कि वह हॉस्टल में असिस्टेंट वार्डन थीं और कैसे रात के वक्त औचक निरीक्षण के जरिए गर्ल्स हॉस्टल की लड़कियों को चौंका दिया करती थीं. हॉस्टल में बिना बताए रहने वाले मेहमानों को कैसे उन्होंने खोज निकाला.
कपिला और गोमती का मिला साथ : डॉक्टर सौम्या गुर्जर के घर पर एक गाय भी है, जिसे वे कपिला बुलाती हैं और साथ ही उसकी बछड़ी भी है, जिसे वह गोमती बोलती हैं. इन दोनों के साथ घर पर रहते हुए वक्त बिताना भी जयपुर ग्रेटर की मेयर को काफी पसंद है. खास तौर पर गोमती का साथ उन्हें रास आता है. वह बताती हैं कि कैसे सुबह के वक्त उनका गोमती और कपिला इंतजार करती हैं. वे बताती हैं कि उन्हें कुकिंग ज्यादा पसंद नहीं है, लेकिन घर में सभी लोगों को उनके हाथ का बना इडली-सांभर काफी पसंद है.
कैसे होती है सुबह की शुरुआत : दिन की शुरुआत का हर किसी का अलग अंदाज है. ग्रेटर निगम की मेयर के मुताबिक उनकी सुबह की शुरुआत मंत्रोच्चार के साथ होती है और धरती माता को प्रणाम करते हुए 'ऊँ भु भौमाय नम:' का मंत्र बोलकर प्रार्थना करती हैं. इस दौरान वे अपने बचपन में नानी से मिली प्रेरणा के आधार पर पृथ्वी को धन्यवाद करती हैं. बचपन में नानी से मिली सीख के आधार पर उनका प्रयास रहता है कि दिनभर की भागदौड़ के बीच कम से कम अपने से जुड़े ज्यादा से ज्यादा लोगों का शुक्रिया अदा कर सकें.
सौम्या बताती हैं कि मेयर बनने से पहले वह योग करती थीं और बैडमिंटन खेलती थीं, लेकिन अब उन्हें इसका वक्त नहीं मिल पाता है. सड़क किनारे गोलगप्पे खाना उन्हें काफी पसंद था, लेकिन महापौर बनने के बाद यह सब मुमकिन नहीं होता है. यूनिवर्सिटी के जमाने को याद करते हुए नियमों को तोड़ने की बात पर जयपुर की मेयर पुरानी यादों में खो जाती हैं. उन्हें याद है कि कैसे एक शादी में बिन बुलाए मेहमान की हैसियत से अपने दोस्तों के साथ पहुंचीं और खाने का लुत्फ लिया. उन्होंने कहा कि स्टूडेंट लाइफ में उनका मिजाज था कि वह लड़कियां लड़कों से कम नहीं हैं की सोच रखती थीं.
प्रकृति और बागवानी से लगाव : मेयर सौम्या गुर्जर ने कभी राजनीति को अपना करियर नहीं माना था, लेकिन हमेशा उनके मन में सेवा भाव था. जिसके लिए राजनीति में उन्हें अवसर मिला. महापौर के घर के अहाते में छोटा बगीचा भी है, जिसकी देखभाल वह स्वयं करती हैं. उनका कहना है कि पेड़ पौधे और प्रकृति उन्हें पसंद है. इसके लिए वे अपने बिजी शेड्यूल से वक्त निकालती हैं. सौम्या गुर्जर का कहना है कि यह सब तनाव को दूर करने का जरिया है. इस बगीचे के नजदीक महापौर सौम्या ने किचन वेस्ट से खाद तैयार करने का सिस्टम भी बनाया है.
ईटीवी भारत से बातचीत में उन्होंने बताया कि वे खाना बनाने से बेहतर बातें बना सकती हैं. आम तौर पर उन्हें किसी और के हाथ का बना खाना पसंद है, लेकिन वे अपने बच्चों की फरमाइश पर रसोई का मोर्चा भी संभाल लेती हैं. हाल में उन्होंने अपने बेटे सोहम के लिए बनाना केक बनाया था. खुद की कुकिंग में उन्हें अपने हाथ का बना इडली-सांभर पसंद है.