पटनाः 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजों ने बिहार सहित पूरे देश का राजनीतिक परिदृश्य बदल दिया है. जिन्हें कल तक मजबूर कहा जा रहा था वो एक बार फिर न सिर्फ मजबूत होकर उभरे हैं बल्कि उन पर निर्भर रहना दूसरों की मजबूरी बन गयी है. इस चुनाव ने बिहार के सीएम नीतीश कुमार को भी बड़ा सियासी सामर्थ्य प्रदान किया है जो अपनी पार्टी के 12 सांसदों के बल पर केंद्र में बनने वाली सरकार के नियंताओं में शामिल हो गये हैं.
बदल गये आरजेडी के सुरः 2024 के नतीजों ने नीतीश कुमार को न सिर्फ बल्कि पूरे देश में फिर से प्रासंगिक बना दिया है. तभी तो चुनाव प्रचार के दौरान जो आरजेडी नेता नीतीश पर हमले का एक भी मौका नहीं छोड़ रहे थे, जिन्हे अब थका-हारा नेता बता रहे थे, अब नीतीश को ही इंडी गठबंधन का सूत्रधार बता रहे हैं. तेजस्वी यादव और मनोज झा तो नीतीश को लेकर राजनीति में लंबी लकीर खींचने की बात कह रहे हैं.
बिहार में फिर बड़े भाई की भूमिका में नीतीशः 2024 के लोकसभा चुनाव में पहली बार ऐसा हुआ जब जेडीयू को बीजेपी से एक सीट पर समझौता करना पड़ा. बीजेपी ने 17 और जेडीयू ने 16 सीटों पर चुनाव लड़ा, जबकि 2019 में दोनों पार्टियों ने 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ा था. ऐसे में लगा कि बिहार में अब बीजेपी बड़े भाई की भूमिका में है, लेकिन नतीजों के बाद स्थिति बदल गयी है. दोनों पार्टियों को बराबर यानी 12-12 सीट मिली हैं, लेकिन सब समझ सकते हैं कि अब बिहार में नीतीश ही बड़े भाई की भूमिका में होंगे.
NDA के प्रदर्शन में अहम भूमिकाः 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान बिहार में NDA भले ही 2019 वाली सफलता नहीं दोहरा पाया, लेकिन ये भी सच है कि बिहार में जितनी उलटफेर की आशंका जाहिर की जा रही थी वो नहीं हुआ. सूबे की 40 सीटों में से 30 सीटें जीतना NDA के लिए बेहद ही संतोष जनक कहा जा सकता है. इस नतीजे के बाद सियासी पंडित अब मान रहे हैं कि अगर नीतीश कुमार ने बीजेपी का साथ नहीं दिया होता तो आज की तारीख में केंद्र में NDA की सरकार बनना मुश्किल हो जाता.
" नीतीश कुमार के वोटर्स इन्टैक्ट हैं, जिन्होंने न सिर्फ नीतीश कुमार के अभी तक सत्ता के शिखर पर बैठा रखा है बल्कि बीजेपी को भी ताकत दे रहे हैं.बीजेपी अगर एक बार फिर नीतीश कुमार के साथ आई और नीतीश कुमार बीजेपी के पास गये तो अच्छी संख्या में सीट जीतने में सफल रहे." संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक
2025 के विधानसभा चुनाव में होंगे NDA का चेहराः बिहार में जिस तरह से लोकसभा चुनाव के नतीजे आए हैं उसके बाद एक बात पूरी तरह साफ हो गयी है कि आनेवाले विधानसभा चुनाव में भी अब NDA की बागडोर सीएम नीतीश कुमार के हाथों में ही होगी. इसको लेकर बुधवार को ही जेडीयू नेता और मंत्री विजय चौधरी ने स्पष्ट कर दिया था तो गुरुवार को बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने भी कहा कि 2025 का विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा.
बीजेपी को सच्चाई का है अहसासः 2005 के विधानसभा चुनाव में NDA की प्रचंड जीत के बाद मुख्यमंत्री बने नीतीश कुमार बिहार की सियासत में कभी बैक सीट पर नहीं रहे. चाहे बीजेपी के साथ रहे या आरजेडी के साथ सरकार का चेहरा नीतीश कुमार ही रहे. बीजेपी को भी इस बात का बखूबी अहसास है कि वो अपने दम पर अकेले तो बिहार में सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है. 2015 के विधानसभा चुनाव के नतीजे इस बात के गवाह हैं कि सरकार उसी की बनेगी जिसके साथ नीतीश कुमार हैं.
संशय की सियासतः नीतीश को सियासत का माहिर खिलाड़ी कहा जाता है, वो इसलिए कि वो हमेशा एक साथ कई संभावनाओं को साध कर चलते हैं. 2013 से लेकर 2024 तक गठबंधनों के प्रति लगातार नीतीश की निष्ठा बदलना इस बात का प्रमाण भी है. लोकसभा चुनाव से ठीक पहले ही तो नीतीश कुमार ने केंद्र से बीजेपी सरकार को हटाने की मुहिम छेड़ी और इंडी गठबंधन साकार हुआ, लेकिन बाद में पलटी मारी और बीजेपी के साथ चले आए.
कहते कुछ हैं, करते कुछ हैंः 2024 के लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान नीतीश आरजेडी और लालू परिवार पर बेहद हमलावर नजर आए. उन्होंने लोगों को जंगलराज की याद दिलाई तो ये भी कहा कि उन्होंने दो बार बीजेपी को छोड़कर आरजेडी के साथ जाकर बहुत बड़ी गलती की थी और अब आगे बीजेपी के साथ ही बने रहेंगे, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से नीतीश कुमार की राजनीति के बारे में कहा जाता है कि नीतीश कुमार क्या करनेवाले हैं, ये सिर्फ नीतीश को ही पता होता है.
पिछड़ों का सबसा बड़ा चेहराःबिहार की राजनीति में नीतीश कुमार पिछड़ों के सबसे बड़े चेहरे बन चुके हैं. यही कारण है कि पिछले 18 वर्ष से वह सूबे की सत्ता के शिखर पर है. इसका कारण ये है कि बिहार का सबसे बड़ा वोट बैंक ओबीसी और ईबीसी नीतीश कुमार के साथ मजबूती के साथ खड़ा है. इसके अलावा महिला वोट बैंक पर भी नीतीश कुमार की मजबूत पकड़ बनी हुई है. शराबबंदी और सेल्फ हेल्प ग्रुप- इन दो कारणों से महिला वोट बैंक उनके साथ जुड़ा हुआ है.
किंग मेकर की भूमिका में नीतीश: 2024 के नतीजों को लेकर राजनीतिक विश्लेषक संजय कुमार का कहना है कि "12 सीटों के साथ नीतीश कुमार अब केंद्र में किंग मेकर की भूमिका में आ गये हैं. बीजेपी को अपने दम पर बहुमत नहीं मिला है, जाहिर है बीजेपी को अपने सहयोगियों पर निर्भर रहना पड़ेगा और चंद्रबाबू नायडू के बाद बीजेपी के सहयोगियों में सबसे बड़ा संख्या बल नीतीश के पास ही है.
खुलकर कर सकेंगे सियासी सौदेबाजीः इसमें कोई शक नहीं कि केंद्र में बीजेपी के नेतृत्व में NDA सरकार बनने जा रही है और नीतीश उसमें पूरा सहयोग भी करेंगे, लेकिन आनेवाले दिनों में नीतीश बड़े सियासी सौदागर की भूमिका में भी आ सकते हैं. एक तरफ वो केंद्र की सरकार के सामने खुलकर बिहार को विशेष राज्य के दर्जे की मांग कर सकते हैं तो अनुपात के हिसाब से केंद्र की सत्ता में भागीदारी की भी मांग कर सकते हैं.
" बिहार के लिए विशेष दर्जे की मांग को नीतीश कुमार को मुखर होकर उठाना चाहिए. मंत्रिमंडल में समानुपातिक प्रतिनिधित्व की बात करेंगे. बीजेपी का स्थानीय नेतृत्व जो नीतीश कुमार पर एक दबाव बनाने की कोशिश कर रहा था उससे नीतीश अब उबर चुके हैं.बीजेपी का प्रदेश नेतृत्व हो या केंद्रीय नेतृत्व हो अब किसी का दबाव नीतीश कुमार पर नहीं रहनेवाला है."संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक
बिहार की पुकार है, नीतीशे कुमार हैः इसमें शक नहीं कि पिछले कुछ सालों में लगातार पाला बदलने के कारण नीतीश का सियासी रुतबा कम हुआ था, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजों ने थके-हारे दिख रहे दिख रहे नीतीश के सियासी जीवन में एक नयी चमक भर दी है और ये चमक आनेवाले दिनों में बरकरार भी रहेगी.
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'2005 में नीतीश कुमार में जितना दम था, आज भी उतना ही है'- विजय चौधरी - JDU press conference