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मुमुक्षु निशा बोथरा की कहानी: कोरोना ने बदली जीवन की दिशा, सांसारिक जीवन त्यागकर बनेंगी साध्वी - NISHA BOTHRA

बाड़मेर की रहने वाली निशा बोथरा 16 फरवरी को दीक्षा ग्रहण करेंगी. उन्होंने सांसारिक जीवन छोड़कर संयम जीवन अपनाने का निर्णय लिया है.

निशा बोथरा 16 फरवरी को दीक्षा ग्रहण करेंगी
निशा बोथरा 16 फरवरी को दीक्षा ग्रहण करेंगी (ETV Bharat Barmer)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Feb 8, 2025, 4:53 PM IST

बाड़मेर : बीकॉम कर चुकी निशा बोथरा का सपना था कि वह बैंकिंग सेक्टर में नौकरी करें, लेकिन कोरोना काल ने उनके जीवन में एक नया मोड़ ला दिया. इस दौरान उनके मन में वैराग्य का भाव आया और उन्होंने सांसारिक जीवन छोड़ने का निर्णय लिया. अब, 16 फरवरी को वे दीक्षा ग्रहण करने जा रही हैं. ईटीवी भारत से खास बातचीत में मुमुक्षु निशा बोथरा ने अपने इस यात्रा के बारे में बताया है.

कोरोना काल ने सिखाया जीवन का कोई मोल नहीं : निशा बोथरा बाड़मेर जिले के बिशाला गांव की रहने वाली हैं, हालांकि अब वे ओडिशा में अपने परिवार के साथ रहती हैं. उनके परिवार में दादी, माता-पिता, तीन बहनें और एक भाई हैं. निशा बताती हैं कि कोरोना काल में बहुत से लोग अपनी जान गंवा रहे थे और यह देखकर उन्हें एहसास हुआ कि जीवन का कोई स्थिर मोल नहीं है, और कभी भी मृत्यु आ सकती है.

मुमुक्षु बनी निशा बोथरा (ETV Bharat Barmer)

इसे भी पढ़ें- 21 वर्षीय कनिष्का जैन ने चुना मोक्षगामी मार्ग, नीट की तैयारी करते आया साध्वी बनने का ख्याल

बचपन में चंचल रही निशा : निशा बताती हैं कि वह बचपन में बहुत चंचल थी और स्कूटी पर घूमने का शौक था. वह कभी आध्यात्मिक नहीं रही, लेकिन कोरोना काल में ऐसा महसूस हुआ कि उन्हें अब कुछ और करना चाहिए. इस दौरान उनकी मां ने उन्हें जैन गुरुवर के पास भेजा. वहां रहने के बाद उन्हें घर लौटने का मन नहीं हुआ. निशा ने कहा कि कोरोना काल में उनके मन में वैराग्य का भाव उत्पन्न हुआ.

मम्मी की इच्छाएं और दीक्षा का निर्णय : निशा की मां चाहती थी कि उनकी बेटी कभी किसी ऐसे पुरुष का हाथ न थामे, जो उसे दासी बना कर रखे, बल्कि वह चाहती थी कि उनकी बेटी रानी की तरह जीवन जीए. मम्मी की यह इच्छा थी कि उनकी बेटी दीक्षा ग्रहण करे, लेकिन पापा इस फैसले के पक्ष में नहीं थे. फिर भी बाद में वे भी इस निर्णय से सहमत हो गए.

निशा बोथरा सांसारिक जीवन त्यागकर बनेंगी साध्वी
निशा बोथरा सांसारिक जीवन त्यागकर बनेंगी साध्वी (ETV Bharat Barmer)

इसे भी पढ़ें- घोड़े पर सवार मुमुक्षु भावना की डीजे की धुन पर निकाली बन्दोली

रजोहरण के पल का इंतजार : निशा ने बताया कि धीरे-धीरे उनका संयम जीवन की ओर रुझान बढ़ने लगा. परिवार और गुरु के आशीर्वाद से वह इस पंथ पर चलने जा रही हैं. निशा का मानना है कि मनुष्य जीवन बहुत मुश्किल से मिलता है, और इसके भोगों में डूबने से अच्छा है कि मुक्ति का प्रयास किया जाए. अब वह 16 फरवरी के इंतजार में हैं, जब उन्हें रजोहरण मिलेगा और उनका जीवन नया रूप लेगा.

सयंम जीवन के बारे में विचार : निशा कहती हैं कि इस संसार में बहुत सारी सुविधाएं हैं, जो शुरुआत में फूल जैसी लगती हैं, लेकिन समय के साथ ये हमारे लिए समस्याएं बन सकती हैं. वहीं, संयम जीवन में शुरुआत में मुश्किलें हो सकती हैं, लेकिन बाद में यही रास्ता फूलों से भरा होगा.

बाड़मेर : बीकॉम कर चुकी निशा बोथरा का सपना था कि वह बैंकिंग सेक्टर में नौकरी करें, लेकिन कोरोना काल ने उनके जीवन में एक नया मोड़ ला दिया. इस दौरान उनके मन में वैराग्य का भाव आया और उन्होंने सांसारिक जीवन छोड़ने का निर्णय लिया. अब, 16 फरवरी को वे दीक्षा ग्रहण करने जा रही हैं. ईटीवी भारत से खास बातचीत में मुमुक्षु निशा बोथरा ने अपने इस यात्रा के बारे में बताया है.

कोरोना काल ने सिखाया जीवन का कोई मोल नहीं : निशा बोथरा बाड़मेर जिले के बिशाला गांव की रहने वाली हैं, हालांकि अब वे ओडिशा में अपने परिवार के साथ रहती हैं. उनके परिवार में दादी, माता-पिता, तीन बहनें और एक भाई हैं. निशा बताती हैं कि कोरोना काल में बहुत से लोग अपनी जान गंवा रहे थे और यह देखकर उन्हें एहसास हुआ कि जीवन का कोई स्थिर मोल नहीं है, और कभी भी मृत्यु आ सकती है.

मुमुक्षु बनी निशा बोथरा (ETV Bharat Barmer)

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बचपन में चंचल रही निशा : निशा बताती हैं कि वह बचपन में बहुत चंचल थी और स्कूटी पर घूमने का शौक था. वह कभी आध्यात्मिक नहीं रही, लेकिन कोरोना काल में ऐसा महसूस हुआ कि उन्हें अब कुछ और करना चाहिए. इस दौरान उनकी मां ने उन्हें जैन गुरुवर के पास भेजा. वहां रहने के बाद उन्हें घर लौटने का मन नहीं हुआ. निशा ने कहा कि कोरोना काल में उनके मन में वैराग्य का भाव उत्पन्न हुआ.

मम्मी की इच्छाएं और दीक्षा का निर्णय : निशा की मां चाहती थी कि उनकी बेटी कभी किसी ऐसे पुरुष का हाथ न थामे, जो उसे दासी बना कर रखे, बल्कि वह चाहती थी कि उनकी बेटी रानी की तरह जीवन जीए. मम्मी की यह इच्छा थी कि उनकी बेटी दीक्षा ग्रहण करे, लेकिन पापा इस फैसले के पक्ष में नहीं थे. फिर भी बाद में वे भी इस निर्णय से सहमत हो गए.

निशा बोथरा सांसारिक जीवन त्यागकर बनेंगी साध्वी
निशा बोथरा सांसारिक जीवन त्यागकर बनेंगी साध्वी (ETV Bharat Barmer)

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रजोहरण के पल का इंतजार : निशा ने बताया कि धीरे-धीरे उनका संयम जीवन की ओर रुझान बढ़ने लगा. परिवार और गुरु के आशीर्वाद से वह इस पंथ पर चलने जा रही हैं. निशा का मानना है कि मनुष्य जीवन बहुत मुश्किल से मिलता है, और इसके भोगों में डूबने से अच्छा है कि मुक्ति का प्रयास किया जाए. अब वह 16 फरवरी के इंतजार में हैं, जब उन्हें रजोहरण मिलेगा और उनका जीवन नया रूप लेगा.

सयंम जीवन के बारे में विचार : निशा कहती हैं कि इस संसार में बहुत सारी सुविधाएं हैं, जो शुरुआत में फूल जैसी लगती हैं, लेकिन समय के साथ ये हमारे लिए समस्याएं बन सकती हैं. वहीं, संयम जीवन में शुरुआत में मुश्किलें हो सकती हैं, लेकिन बाद में यही रास्ता फूलों से भरा होगा.

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